मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

विकलांगता का दर्द समझ में आया


'कहते हैं गुरु जगह-जगह मिल जाते हैं,मुझे एक ऐसे ही गुरु मिले जिन्होंने मेरा नजरिया ही अशक्त व्यक्तियों को देखने का नजरिया ही बदल दिया..!
बात विभाजित मध्यप्रदेश के दिनों की है ,,मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह बिलासपुर आये थे,मैं उनदिनों दैनिक भास्कर का सम्पादक था, फोटोग्राफर जितेन्द्र ठाकुर सिटी चीफ प्रवीण शुक्ला कवर करने गए थे ,,मुझे प्रवीण जी का फोन आया की 'दिग्गी राजा' धान के खेत में फसल देखने रुके और जितेन्द्र ठाकुर फोटो लेने उतरा वो सड़क पार कर रहा था कि काफिले की किसी कार ने आगे बढने की होड़ में उसे टक्कर मार दी है ,,, मैं जिला अस्पताल पहुंचा, जितेन्द्र एक्सरे रूम में था, मैं सीधे सिविल सर्जन डा. त्रिपाठी से मिला और कहा- जितेन्द्र को अच्छा बेड और कमरा मिले.. और जब तक उसे छुट्टी न दी जाये जब तक वांछित मुआवजा न मिल जाये,,!
तीन दिन हो गए पर उसे कोई पैसा नहीं मिला नेता आज कल करते रहे,,,मैं चाहता था की उसे इतना मुआवजा तो मिले जिससे वो अपनी बाईक के ले और फिर वो अपना काम सहूलियत से कर सके,मैं फिर डा.त्रिपाठी से मिला और इस बार अपना मकसद पूरा करने जोर देते हुआ कहा- डा,प्लास्टर तो ठीक है पर उसे डिस्चार्ज नहीं कीजियेगा ,,साथ ये भी कहा- मुझे पता है आपको सुनाई कम देता है और कलेक्टर का फोन आपका बेटा सुनाता है फिर वो आपको बताता है ,,!
डा, त्रिपाठी ने कहा- ''आप इसे चाहो तो छाप दें मेरा तो रिटायर्मेंट होने वाला ही है,,पर एक बात आपको बता दूँ एक विकलांग या निशक्त व्यक्ति अपना जीवन किस तरह जीता है तुम उसकी दिक्कत जानते नहीं ,,,'वैसे मैं जितेन्द्र छुट्टी अभी नहीं दूंगा ,,! [बाद उसे मुआवजा मिला]
मैं हिल गया भीतर तक ,,मुझे जीवन के मोड़ पर एक गुरु मिल गया और जीवन का नजरिया,आज जितेन्द्र ठाकुर 'नई दुनिया' में है और डा, त्रिपाठी का क्लिनिक ,,जब मैं उधर से गुजरता हूँ उनके प्रति श्रद्धा से मन भर जाता है ,,! 
[पहली फोटो गूगल, से  नीचे की फोटो मेरी]

कोई टिप्पणी नहीं: