रविवार, 28 अप्रैल 2013

पाठकों की नब्ज पर दैनिक भास्कर का हाथ कैसे ..



दैनिक भास्कर के आज 65 संस्करण हैं और 13 राज्यों में विराट रूप है,बिलासपुर से 20 सित. 1993 को जब इसका 7 वां संस्करण प्रकाशित हुआ तब ये इसका वामन स्वरूप था, पर उसके विराट होने की संभावना रमेश अग्रवाल  सोच में और उनके सुपुत्र सुधीर अग्रवाल की कार्यशैली  में साफ दिखती थीं.

 पिता-पुत्र के जोड़ी एक पर एक ग्यारह लगती ,ये वो समय था, जब रमेशजी अपने पुत्र सुधीरजी को जिम्मेदारी देते हुए समूह को आगे बढ़ाते जा रहे थे. मैं नवभारत बिलासपुर से जुड़ा हुआ  था. दैनिक भास्कर ने पाठकों के लिए सर्व शुरू किया हुआ था. तभी एक दिन सुधीरजी ने मुझे होटल में बुलाकर सम्पादक पद का प्रस्ताव रखा, मैंने कहा, ‘जब प्रवेशांक का काम शुरू होगा मैं आ जाऊंगा. और फिर एक दिन सुधीरजी ने मुझे बुलाया और जानकारी दी की २० सितम्बर से दैनिक भास्कर का प्रकाशन होना है अब आप आ जाओ, उनके साथ रमेश नैयर जी भी थे.. रामबाबू सोनथालियाजी और कुछ  साथी पहले जुड़ चुके थे.

  अगले दिन सुबह मैं, सुधीरजी और सोंथलियाजी महामाया देवी के दर्शनार्थ रतनपुर गए, और वापस आ मैं कुर्सी पर बैठ गया. समाचार सम्पादक अरुण पाण्डेय थे. प्रवेशांक का काम चल पड़ा. फिर अजित सिंह, सूर्यकान्त चतुर्वेदी, सुनील गुप्ता, संजय दीक्षित,श्रीपति वाजपेयी ,संजय चन्देल ,अमित मिश्रा,राकेश श्रीवास्तव,केशव शुक्ल,अशोक व्यास ,अमिताभ तिवारी,दिलीप तिवारी स्नेहा जैन,फोटोग्राफर  गुड्डा नागरवाला सहित सभी ने मिल कर समय पर प्रवेशांक तैयार कर लिया. इस टीम में सुभाष ,धन्वेद्र जायसवाल,सुभाष तिवारी भी जुड़ गए. इस बीच सुधीरजी नवविवाहित पत्नी ज्योति के साथ आते-जाते रहे. सुधीरजी जब काम देखते तब ज्योति जी मोटी किताबों में डूबी रहती. रायपुर से भास्कर की सवा सौ प्रतियाँ बिलासपुर आतीं थीं,जिसका वितरण नगर में बंद कर दिया गया. सुधीरजी बिलासपुर के पाठकों की अपेक्षा के अनुरूप चाहते थे. इसके लिए वो शून्य से शुरुआत करने तैयार थे.

   प. नेहरू प्रतिमा चोराहे पर बने विशाल पंडाल में प्रवेशांक का विमोचन 20 सितम्बर को हुआ,श्री विद्याचरण शुक्ल,वैदिक जी,महेश श्रीवास्तव,रमेश नैयर,अशोकराव,बी.आर.यादव,लखीराम जी सहित अनेक प्रबुद्ध जनों  की गरिमामयी उपस्थिति रही. सुधीरजी की कार्यशैली नवभारत से अलग थी.वो जिन-जिन से बात करते या कार्य की अवधि तय करते, सब लिखित उनको देकर कापी सभी प्रमुखजनों को भी कापी  दे जाते, जिससे किसी को कोई भ्रम की स्थिति न बने न ही  कोई अधिकार क्षेत्र को ले कर विवाद की पैदा होती . ये नवभारत मैंने नहीं दिखा था. शुरू में वे एक माह यहाँ  रहने की बात करते थे, मगर  दस दिन बाद भोजन करते समय मुझसे कहा - 'जो  काम आप करा रहे हो, वही तो मैं भी कराता,जयपुर का काम  डिले हो रहा है. मैं जा रहा हूँ.'' फिर वे एक माह बाद आए और मेरा परिचय जगदीश पोद्दारजी से कराया. सुधीरजी ने कहा ‘राजस्थान में काम बढ़ रहा है,अब पोद्दार जी रायपुर संस्करण के साथ बिलासपुर का प्रभार देखेंगे .आप ये समझना कि वे मेरी जगह हैं.

  पाठकों की खोज के लिए किया गया सर्वे सही न था .सोलह हजार का प्रिंट आर्डर एक माह बाद
दस हजार रह गया. विज्ञापन बड़ी मुश्किल से तीन लाख मासिक पहुंचा दो मैनेजर बदलने के बाद सुधीर जी ने कहा- इस पोस्ट के लिए दस हजार माह में और खर्च करना नहीं चाहता ,आप में प्रबंधन की रूचि है ,आप ये काम भी देखिये .कोई तीन साल तक मैंने संपादक के साथ प्रबंधन का काम भी देखा, और भी मैनजेर आये, पर उनका कार्यकाल अल्प रहा.  इस बीच कार्यालय प. नेहरू चौक कमला कम्प्लेस से बेहतर स्थान गुम्बर कम्प्लेस में आ गया .प्रसार 27 हजार कापी के करीब हो गया.रीलांच करके अख़बार को नया कलेवर किया गया और मैनेजर [जीएम] पद का भार मनीष तिवारी को सौंपा गया.
   दैनिक भास्कर पत्रकारिता का स्कूल है, जहाँ समय-समय पर कुछ दिनों के बैठक ले कर संपादकों को नई चुनौतियों के निपटने और स्टाफ को और प्रशिक्षित करने के गुर बताये जाते हैं.जिससे ये अख़बार पाठकों की जरूरत को जानता है, और उनकी नब्ज पर हाथ बना रहता है.संस्करण अधिक होने और आयडिया शेयर का लाभ मिला है .  पाठकों की क्या चाहिए और उनकी  राय को अहमियत दी जाती है.अख़बार में कोई चूक न हो और दूसरे दिन यदि कोई गलती हुई तो उसकी जवाबदेही तय होती है ,रोज अख़बार की तुलनात्मक समीक्षा की जाती है.
कुछ और-
     *महामाया का दर्शन करने गये सुधीर अग्रवाल ने गुप्तदान दिया, बाद पता चला कि ये फर्श के लिए करीब दो ट्रक संगमरमर था.

    *प्रकाशन के पहले हमारी दशा ये थी कि अख़बार के बण्डल जाने तथा कुछ पदों पर नियुक्तियों के लिए  लोकस्वर में विज्ञापन दिए जाते  ,नवभारत और देशबन्धु तो ये विज्ञापन लेने से रहे.!

    * सेवाकाल में अनुभव किया कैसे ये घराना सारा काम  बाँट का कर करता है,-पिता श्री रमेश अग्रवालजी सलाहकार और सामाजिक कार्य,सुधीर जी सम्पदीय और दीगर काम ,गिरीश जी मार्केटिंग और अन्य पवन जी मशीनरी और विकास ,सभी हर काम में विज्ञ और उर्जावान हैं!
 .
  * नवभारत में पूरा काम मानदेय पर करता रहा ,जो मेरे अलग होने के पहले पांच सौ से बढ़ कर एक हज़ार कर दिया गया. मैंने भास्कर में अपना वेतन पांच हजार मासिक देख कर सुधीर जी से 501 रूपये मानदेय की बात कही ,पर उनने इसमें दो और जोड़ कर 2501 रु.दिया और कहा –आपका बाकी  ये पैसा मेरे पास जमा रहेगा कभी भी ले सकते हैं.  कुछ साल यही मानदेह लेते रहा फिर सुरेन्द्र गुम्बर ने पोद्दार जी को ये बात बताई .तो उनने दो हजार मासिक वृद्धि जोड़ दी.बाद मेरे लम्बे सेवाकाल में मेरे वेतन तीस हजार मासिक तक चला गया.सेवानिवृति के बाद मुझे तीन साल और काम का अवसर मिला.ये कम को ही मिला होगा.

*अब मैं दैनिक भास्कर मैं नहीं,पर मेरे चयन किये साथी यश अर्जित कर रहे हैं वे मेरी पूंजी हैं ,मैं केशव शर्मा और सुशील पाठक को कभी नहीं भूल सकता,जिनके असामयिक निधन के साथ उनमें निहित असीम संभावना का अंत हो गया.   

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

नव भारत का बिलासपुर से प्रकाशन .


नवभारत समूह के संस्थापक श्री रामगोपाल माहेश्वरी को रायपुर में अमृत सन्देश के प्रारम्भ होने की कोई चिंता नहीं थी, अलबत्ता नवभारत रायपुर के अर्से तक सर्वोसर्वा रहे गोविन्दलाल वोरा के अलग होने के दुःख जरूर थे.ये उनने मुझसे साझा की थी. ये बात  अगस्त 1984 की है,वे मुम्बई हावड़ा मेल से कोलकाता जा रहे थे. मैं उनसे रेलवे स्टेशन मुलाकात करने गया था.

 ये पत्रकारिता का वो काल जब बिलासपुर से नवभारत के प्रकाशन की संभावना उदित हो चुकी थी, जिसके साथ बिलासपुर पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने पांव पर खड़ा होने की तैयारी पर था. नवभारत बिलासपुर में प्रसार की हिस्सेदारी किसी दूसरे अख़बार के देने के लिए राजी न था. कुछ दिनों बाद रायपुर से नवभारत के तत्कालीन  सम्पादक सुरेन्द्र शर्मा बिलासपुर आये, उन्होंने बिलासपुर नवभारत के ब्यूरो चीफ महेंद्र दूबे,प्रसार प्रमुख राजमणि तिवारी तथा मुझे बिलासपुर से नवभारत के प्रकाशन की जानकारी दी. मैं तब महेंद्र दूबेजी का सहायक था.

कुछ दिनों में प्रकाश महेश्वरी आये और उन्होने अपने मित्र अशोकराव जी से मुलाकात करके प्रताप टाकीज के करीब ‘राव साहब का बंगला’ नवभारत के प्रकाशन के लिए तय कर दिया. यहाँ कुछ दिनों पहले तक राज्य परिवहन निगम का दफ्तर था. इस बीच लोकस्वर से जुड़े श्री बजरंग केडिया को नवभारत का व्यवस्थापक नियुक्त कर दिया गया. प्रकाशन स्थल कचरे से अटा था.यहाँ आगे कमान  की डोर तेजतर्रार माहेश्वरी  परिवार के  विनोद माहेश्वरी ने सम्भाली. उन्होंने तयकर दिया गया इसी सितम्बर मास में बिलासपुर से नवभारत का प्रकाशन होगा. सम्पादक कमल ठाकुर बने, ,मुझे समन्वयक का पद सौंपा गया. एक तरफ मशीनें  उतरने लगी तो दूसरी तरफ सम्पादकीय विभाग में साथी बढ़ने लगे ,के.के सिंह,रामगोपाल श्रीवास्तव ,राजेश शर्मा,किशोर दिवसे,सईदखान,सीतेश दिवेदी,अनिल पाण्डेय, सूर्यकान्त चतुर्वेदी की नियुक्ति हो गई.और भी कुछ साथी जुड़ते गये . विनोद जी ने  तय कर दिया गया कि  26 सितम्बर को प्रथम अंक निकला जायेगा.[बाद दिनेश ठक्कर ,राजू तिवारी, केके शर्मा भी साथ हो गये..और फिर काफिला बढ़ता गया]

प्रथम अंक के पहले प्रकाश माहेश्वरी तथा विनोद माहेश्वरी ने संवादाता और एजेंटों को होटल चन्द्रिका में बैठक ली.प्रकाशन के पहले कुमार साहु जी और कौशल शर्मा भी पहुँच गए. सब ठीक था,समय पर पेज जा चुके थे ,तक वेरीताईपर का युग था ,बटर पेपर के बजाय फिल्म पर मेटर निकलता और पेस्टिंग होती.छापी शुरू हुई की मशीन का बेल्ट टूट गया. पर विनोद जी ने रायपुर से अनल शुक्ला को फोन कर रातों-रात बुलाया और छपाई सुबह तक पूरी हो गई.

फेक्ट फाईल-.*पहले दिन इस संस्करण का कुल प्रसार सोलह हजार था,बिलासपुर नगर में चार हज़ार कापी.
          *ये प्रसार रायपुर नवभारत से विरासत में मिला था.
          *विज्ञापन मासिक आय दो लाख के करीब ..!
          *शुरुवात में काफी प्लेट मेल से शाम रायपुर से बन कर आती.फिर कम होती गईं. 
नवभारत पर हमला- प्रकाशन के कुछ माह में एक दिन मैं और राम गोपाल श्रीवास्तव जी शाम दफ्तर पहुंचे तो केडिया जी के चेम्बर में तेज आवाज आई ऐसा लगा कांच टूटा है,मैंने देखा दो युवक उग्र हो केडिया जी से उलझने में लगे हैं. मैं बजरंग अखाड़े में दुलारू उस्ताद का चेला रहा,मैंने एक  को पकड़ धोबी पाट लगा.फिर केडिया जी और सारे स्टाफ ने जमीं से उठने न दिया, दूसरा भाग निकला.पता चला वे किसी समाचार से खफा थे और सबक सिखने आए थे.उनके अपराधो के सूची को देखते हुए उनको मीसा में बंद कर दिया गया. नागपुर से विनोद महेश्वरी जी ने बिलासपुर पहुँच प्रशासन का धन्यवाद ज्ञापन किया .