बुधवार, 10 दिसंबर 2014

अधिकारी गए स्वप्न बिखरा ,,


.कोबरा जैसे जहरीले सांप पकड़ घूम-घूम के दिखा कर मिले पैसे से जीविकोपार्जन करने वालों तक़दीर नही बदली,,बिलासपुर में कोई ढाई दशक पहले कलेक्टर इन्द्र नील दाणी ने कोटा के करीब इनको विकास के साथ जोड़ने के सपना देख काम किया पर पिछले दिनों जंगल जाते देखा.. आज भी इनके बच्चे सांप दिखा कर चौक पर पैसा मांग रहे है,,!!

वन विभाग को कोई सरोकार नहीं,,शायद उनकी नजर में सांप पकड़ना और दिखाना सब चलता है कोई अपराध नहीं ,,! और इन बच्चों के लिए ये पैतृक कार्य,,इनकी प्रथा रही कि 'बेटी को दहेज में पिता सांप दे कर विदा करता ताकि दामाद और बेटी परिवार चला सकें..!
मैंने और मेरी पीढ़ी के पत्रकारों ने तब कलेक्टर दाणी के साथ जा कर घोंघा जलाशय के करीब बसाये गए इस बसाहट की कई बार रिपोर्टिंग की थी,,उत्सुकता से मैंने इन संवारा- सपेरे बच्चों से पूछा तो पता लगा गाँव तो है और इनकी जाति के लोग आसपास के गाँव में भी बस गए हैं और अधिकांश सांप दिखने कर मिले पैसे से पेट पलते है,,! इन बच्चों के देख नहीं लगा की इनने कभी स्कूल का दरवाजा देखा होगा ,,!
कलेक्टर इन्द्रजीत दाणी का स्वप्न बिखर गया ,,कमिशनर हर्ष मंदर आज लेखक के रूप में जाने जाते हैं, उन्होंने बिलासपुर में सहकारिता आधारित डेयरी का सपना देखा और बिलासा डेयरी बड़ी 'आशा' से खड़ी की बाद गायों की खाने चारा नहीं मिला ,,सीएफ रहे डीएन तिवारी की लमनी की नर्सरी का पता भी लोग भूल गए ,,!
मित्रों आखिर ऐसा क्यों होता है..
1,क्या उनके बाद आने वाला अधिकारी बाकी तो चार्ज लेता है पर गए अधिकारी के सपने से उसका कोई सरोकार नहीं होता ,,
2,या वो महज अधिकारी का सपना होता है और जिनके परिवर्तन के लिए देखा उनको यथास्थिति ही पसंद है ,,या फिर वे बदलाव से अपने को जोड़ नहीं पाते,,! ये मंथन का विषय है ,,!

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