मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

सुंदर फूलों की बहार आई ..












नए साल का स्वागत,गुलाब और गेंदे की बगिया में ..
फूल अपनी रंगत-रूप महक से मनमोह लेते हैं..फूलों की ये बगिया है, मित्र सतीश और हरीश शाह की,बिलासपुर से कोई आठ किमी दूर,जन्नत का नजरा है इन दिनों यहाँ,कल मैं अपने दोस्त नवभारत के पूर्व सम्पादक बजरंग केडिया और यूके दूबे जी के साथ यहाँ पंहुचा.साल को विदा करने.फूलों के प्रति शाह परिवार के इस शौक और अनुराग को सलाम, हर गुलाब का नाम याद है उनको.

.दिसम्बर के अंतिम दिन इस बगिया में आम में बौर आ गया थे,रूद्राक्ष में फल,ब्राह्मी बूटी हरी भरी थी,कपूर ,तेजपत्र,कृष्णवट,सिन्दूर,सेहरा, शहतूत, गुडमार न जाने क्या क्या उन्होंने जमा किया है अपनी बगिया में ..!

सोमवार, 16 दिसंबर 2013

लोहे को पीट कर आकार देती नारी







नारी,नर से आगे..वो गर्म लोहे को घन से पीट देती आकार..

मैंने नारी का वो रूप देखा जो नर से हुनर और ताकत में अधिक था, अपने दोस्तों के साथ में जा रहा था कि, गाँव गनियारी में यायावरी लोहारों को कृषि औजार तपते लोहे से बनते देखा. गर्म लोहा ठंडा न हो इसलिए उसपर एक घन पुरुष के दो दूजा नारी का मशीनी गति से पड़ता, भारी लोहे के घन को जब वो गति से चलती तो गर्म लोहा आकार लेता..!.

मैं इन यायावरो के काबिलों को बरसों से जानता हूँ, पहले ये चितौरगढ़ से धान कटाई की इन दिनों छतीसगढ़ पहुँचते थे इस बार सागर मप्र से आये थे.. वोट उनहोंने डाला था निशान उंगली पर था..पर क्या अपने को महाराणा प्रताप के वंशज बताने वाले और सामरिक हथियारों के बाद आज सरकार बनाने वाले यूँ ही भटकते रहेगे..!सारे दिन घन चलके औजार बेचने वाले ये मेहनतकश कबीला रात जब मैं वापस लौटा तो कड़ाके की सर्दी में सड़क से कुछ हट के दीवार के साथ चंद कपड़ो में बच्चो के साथ सोया था..!!

    ये स्प्रिग पट्टे को या सब्बल के टुकड़े को कोयले की आग से गर्म कर पीट-पीट के खेती के परम्परागत ओजार बनाते हैं..दो दशक पहले ये राजस्थान से छोटी और सुंदर बैलगाडियो से आते थे पर इस बार उन्होंने इसका उपयोंग नहीं किया था.जब खुद को लाले हो तो फिर बैलों का चारा कहाँ से दें . छोटे बच्चे भी साथ में मीलों दूर अंतहीन यात्रा..लोहे को पीट-पीट कर लोहे सी जिन्दगी,,बच्चे साथ भट्टी का पंखा चलते,निर्मित समान का मोल भाव करते हुए ये यायावरी महिलाये ये भी बताती है कि, उनके बनाये सामान  में ऐसा पानी चढ़ाया गया है कि वह  बाजार में मिलने वाले औजार से ये अधिक टिकाऊ है ,,!

शनिवार, 14 दिसंबर 2013

धान के समर्थन मूल्य पर राजनीति



छतीसगढ़ में कोई किसान नेता नजर नहीं आता पर इस अंचल के धान उत्पादक किसान को कदाचित इसकी दरकार भी नहीं, ये काम राजनीतिक दल ही वोट बैंक साधने के लिए पूरा के रहे है..दिसम्बर में इन दिनों देर से उत्पादन देने वाली धान की फसल खेतों से खलिहानों तक पहुंच चुकी है,खेतिहर परिवार मिसाई करने में जुटे हैं,ताकि समिति में ले जाके समर्थन मूल्य पर बोनस सहित धान को बेचा जाए.

इस बार विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने धान का मूल्य 2100 प्रति क्विंटल करने का वादा किया था और कांग्रेस ने दो हज़ार रूपये प्रति क्विंटल का वादा किया था.चुनाव बाद डा.रमन सिंह ने पहले दिन ही घोषित किया धान पर खरीदी के बाद तीन सौ रूपये प्रति क्विंटल किसानो की तत्काल बोनस दिया जायेगा..! इतना ही नहीं शपथ लेने के बाद उन्होंने प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिख कर धान का समर्थन मूल्य बढ़ा कर 2100 प्रति क्विंटल करने के लिए कहा है.


डा. रमन सिंह ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं, पहला तो उन्होंने राज्य के बहुसंख्यक धान उत्पादक किसानों को ये सन्देश दे दिया है की वो और उनका दल किसानों का हितचिन्तक है और दूसरा यदि आसन्न लोकसभा चुनाव में यदि धान का समर्थन मूल्य नहीं बढ़ा तो भाजपा के पास ज्वलंत मुद्दा हाथ में रहेगा. अब गेंदे केंद्रीय कृषि मंत्री चरण दास महत के पाले में है की वो छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए केंद्र में कितना जोर लगा पाते हैं.यदि वे सफल हुए तो भी पहल रमन सिंह ने की है ये श्रेय उनको ही मिलेगा और नहीं सफल हुए तो कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतान होगा..!

हर वास्तु के लागत पर आधारित मूल्य निर्माता तय करता है, पर किसान के साथ ये नहीं,वो तो उत्पादन करता है मूल्य सरकार तय करती है,वो भी राजनीति के मद्देनजर.क्या किसान वोट बैंक बने रहेगे और उनका भाग्य रजनीति कारकों पर आश्रित रहेगा,या  कभी इस राज्य से कोई किसान नेता उभरेगा ..फ़िलहाल ये लगता तो नहीं है..!

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

पत्ते फूल से सुंदर


''मेरा छोटे भाई प्रवेश और बहू कीर्ति चड्ढा इन दिनों खुश हैं, उनकी लान में लगे,'पनचीटिया' का सारे साल हरा या रूखे-सूखे पेड़ पर इन दिनों जो जम कर बहार आई है, पखवाड़े तक ये पेड़ इसी तरह श्वेत बना रहेगा, जैसे उसपर बर्फबारी हुई है,या किसी भद्र व्यक्ति के पूरे बाल एक साथ सफ़ेद हो गए हों...फिर इसके पत्ते रंग बदल कर हरे हो जायेगे ..!

किसी शौक़ीन के लिए के लक्ष्य तक पहुँचाना बड़ा सुखद होता है..ये पेड़ वो सुख अपने लगावनहार को दे राह है..दो पेड़ और भी लगा रखे है जिन पर अगले दो तीन साल  में बहार आएगी और तब लगेगा दिसम्बर ने यहाँ पेड़ों पर स्नोफाल हो गया है..वैसे ये एक पेड़ ही इसका एहसास दिलाने की लिए काफी है..

बुधवार, 11 दिसंबर 2013

गुल बकावली के फूल



गुल बकावली का फूल आज से पचास साल पहले अमरकंटक में माई की बगिया के दलदल में खिलता था, तब यहाँ इतना दलदल होता कि, यदि लकड़ी उसमें डाल दे तो खीच कर निकलना कठिन होता था.तब में अपने पिताजी चमनलाल चड्ढा जी के साथ जब भी अमरकंटक जाता तो माई की बगिया में इसके फूलों को देखता और किसी नई चीज को देखने की सुखद अनुभूति होती..

   आज वातावरण में तब्दीली के कारण माई की बगिया  में गर्मी  में थोड़ी से जगह में यहाँ दलदल बचा रहता है,मगर गुल बकावली  के फूल आज भी वहां खिलते है,पर उतने नहीं बहुत कम. नेत्र रोगों के लिए अचूक ये औषधीय फूल अमरकंटक के अलावा अब मैदानी इलाके में भी  गया है, और ये मेरी बिलासपुर में गाँव मंगला की बगिया के सुगन्धित फूलों में एक है..!मैंने से कुछ सीपेज वाले क्षेत्र में लगाया है जहाँ गोबर खाद की भरमार है..!

 मेरे पास इसके काफी पेड़ हो गये है, ये बरसात से ठंड तक खूब खिलते हैं, दस साल पहले  मैं कसौली [हिमांचल प्रदेश] दैनिक भास्कर की एडिटर कांफ्रेंस में शिरकत करने गया,तब बैकुंठ पेलेस हाटल से नर्गिस के कंद के आया और उसे गुल-बकावली की वो जड़ें भेजा जो उगती है..!

नर्गिस के कंद मैं अमरकंटक ले कर गया और बाबा कल्याण दास को आश्रम की वाटिका में उगने दिया पर शायद वातावरण की वजह न तो नर्गिस अमरकंटक में नर्गिस उगी न ही मेरे बिलासपुर के फार्म में..गुल बकावली बैकुंठ पेलेस में उगी या नहीं ये मुझे पता नहीं लगा..यदि उगी होगी तो वो गुलादते नुमा कवर में सफेद सुगन्धित फूल निरंतर देती होगी ..!

मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

क्या कांग्रेस लोकसभा चुनाव बाद विपक्ष में बैठेगी ...


चार राज्यों में कांग्रेस की पराजय के बाद अब सवाल उठ खड़ा है की क्या लोकसभा चुनाव बाद कांग्रेस को विपक्ष में बैठना होगा ये सवाल उठ खड़ा हुआ है..ये सवाल उठाना लाजिमी है,सोनिया जी बड़ी मुश्किल से हिंदी में भाषण कर पाती है,मनमोहन सिंह को चुनाव लड़ने का अनुभव नहीं और राहुल में अनुभव की कमी है.कुछ रही सही कसर दामाद जी ने पूरी कर रखी है, हां प्रियंका में कुछ संभवना दिखती है और दिवंगत इंदिरा जी की छवि भी..!

कांग्रेस भीतरघात हुआ है ये कह कर बच नहीं सकती,हर पार्टी में भितरघातियों की कमी नहीं होती जो हारने के बाद ही उजागर होती है,कांग्रेस में वंशवाद आखिर कब तक,ये सवाल भी अब खड़ा हो गया है,पार्टी के मणिशंकर अय्यर ने आज मुंह खोला है और मनमोहन सिंह की वापसी की बात कही है,और भी सामने आ सकते हैं.


जिस तरह 'आम' ने जमींन से जुड़े प्रत्याशी चयन किये के कांग्रेस ऐसा कर सकती है,सोनियाजी अन्ना के जनलोकपाल ले बिल को न ला सकीं,मनमोहन महगाई पर लगाम न लगा पाए, राहुल का प्रत्यशी चयन का फार्मूला जमीन पर आने के पहले धराशाई हो गया.
कांग्रेस केन्द्रीय स्तर पर संगठन में दूसरी पंक्ति खड़ी न कर सकी है,वो शक्ति का केंद्रीय करण करती गई,पार्टी में लोकतंत्र की हत्या होती गई,प्रदेश के इन चुनाव में मुख्यमंत्री कौन होगा ये भी घोषित नहीं कर कसी.बिना सेनापति घोषित चुनाव लड़ा गया,नीति शास्त्र में लिखा गया है अगर समर में सेनापति नहीं तो जिस भांति चींटियों की पंक्ति तूफान में बिखर जाती है उस प्रकार समर में सेना..आखिर क्या मज़बूरी थी की मुख्यमंत्री का नाम घोषित किये बिना चुनाव समर में उतारने की विवशता बनी..!


लोक सभा चुनाव में अधिक वक्त नहीं, जो करना है आज कर ले कल कांग्रेस के पास वक्त नहीं होगा, पार्टी का नेटवर्क कमजोर है,अच्छे वक्ता नहीं,आखिर कब तक विरासत की पूंजी के आसरे ये सबसे पुरानी पार्टी चलेगी..आपनी पूंजी जुटानी होगी..पर कैसे ये सब होगा ये पार्टी को तय करना है..कोई बड़ी बात नहीं की कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में बड़ी तब्दीली हो जाये..!

शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

हर बार बदलता अमरकंटक









अमरकंटक मुझे अपनी और खींचता है,मेरे बिलासपुर नगर से ये एक सौ पचीस किमी पर स्थित अमरकंटक में बचपन से आज तक कितनी बार गया गिन भी नहीं सकता माँ नर्मदा के शीतल जल में न जाने कितनी बार स्नान कर शांतचित हुआ, जिस भांति के नदी के पानी में कोई दूरी बार स्नान नही कर सकता उसी भांति में जब-जब गया नए नज़ारे देखा. इस बार अमरकंटक गया तो जो देखा वो भी नया था..मैं इस ब्लाग में फोटो अधिक दल रहा हूँ ताकि जिसे जरूरत हो वो सदर इसका उपयोग करे और इस तपोभूमि की महत्ता दूर दूर तक पहुंचे..!

फोटो फीचर कई शुरवात करता हूँ गुरुदावारे से..कोई चालीस-पचास साल पहले यहाँ मुनिजी ने गुरुद्वारे की स्थापना की अब जिसका जीर्णोद्धार किया जा चुका है..चूँकि यहाँ से कुछ दूर कबीर चबूतरे में गुरुनानक देव और संत कबीर मिले थे इस वजह इस इलाके कई और अहमियत है..प्रमुख सेवादार हरदीप सिंह ग्रेवल की लगन और आस्था यहाँ देखते बनती है, गुरूद्वारे में सौ से ज्यादा कमरों को आवास सुविधा है..ये कल्याण सेवा आश्रम से लगा है..उदासीन बाबा कल्याणदास गुरुदावारे को पिता और आश्रम को बेटे का घर निरुपित करते हैं,.यहाँ स्वामी शारदानंद जी के प्रयासों से सुंदर आश्रम निर्मित है.

आवास के लिए और भी प्रबंध है..दिसम्बर के अंत या जनवरी में पारा शून्य डिग्री तक पहुँच जाता है..सप्ताह भर भी रुका जा सकता है..देखने को निर्माण हो रहा जैन मंदिर,सरोवर साल के वन है..गर्मी के दिनों इसकी शीतलता बनी रहती है..पैंतीस सौ फिट की ऊंचाई पर अमरकंटक तपोभूमि के रूप से सदियों से प्रसिद्ध है..! 


माँ नर्मदा की उदगम स्थली में प्राचीन मंदिर,कपिलधारा,राह में सरसों के खेत,सघन वन से पश्चिम वाहनी नर्मदाजी का आगे बढ़ते जाना,बंदरों का उत्पात, ये कुछ फोटो संलग्न कर रहा हूँ..

मंगलवार, 12 नवंबर 2013

बस्तर बोला,सुने सरकार नक्सलियों की ये है हार


छतीसगढ़ में विधानसभा चुनाव का पहला चरण..नक्सलियों ने मुंह की खाई..!
भारत में ये मिसाल है, बस्तर जहाँ बेलेट ने बुलेट को विधानसभा चुनाव में मुहंतोड़ जवाब दिया है,नाव डुबो दी तो आदिवासियों ने कमर तक नदी लाँघ कर वोट दिया,कई शहरी इलाके में भी 61 फीसद वोट नहीं पड़ते,धमकी थी जिसने वोट दिया उसकी ऊँगली काट लेंगे,पर वनवासियों ने उन्हें अंगूठा दिख, दिया.,पहले चरण के मतदान बाद डा.रमन सिंह कर रहे है,बस्तर की आदिवासी महिलाओ ने आशीर्वाद दिया है,उधर चरण दस महंत कह रहे हैं .कांग्रेस को बढ़त मिलेगी ..!पर हकीकत है.जीते आदिवासी हैं,और हारे नक्सली..!

     जवानों ने साबित किया है की वो वोट करा सकते हैं, तो नक्सलियों को खदेड़ भी सकते है,ये नक्सली खौफ के खिलाफ उनकी विजय है उनको सलाम ..!ये भी साफ हो गया सरकार की इच्छाशक्ति नपुंसक रहती है, नक्सलियो को खदेड़ने में.. नही तो हमारे जवान कब का इस समस्या का अंत कर देते ..! आज भी बस्तर के आदिवासी लोकतंत्र के साथ हैं ..सरकार किसी की बने,पर जो संकेत बहादुर आदिवासियो ने दिया है, उस रस्ते पर चले,ये अधिक जरूरी है..! चुनाव बाद फ़ोर्स के हटाने के बाद नक्सली हताशा में आदिवासियों से बदला भांजने हिसा की वारदात को अंजाम न दे सके,इस ओर सरकार को सजकता बरतनी होगी ..!

बुधवार, 6 नवंबर 2013

'पुष्प की अभिलाषा' का ये हश्र

ख्यतिलब्ध कवि माखनलाल चतुर्वेदी जब बिलासपुर [अब छतीसगढ़ राज्य]में स्वधीनता के यात्रा के दौरान जेल में थे तब उन्होंने कविता ‘लिखी  'पुष्प की अभिलाषा,ये कविता बाद उसकी स्मृति में जिला जेल में और फिर कम्पनी गार्डन में लिखवा दी गई, पर जेल के करीब फूलों के बाजार के सामने  ‘पुष्प’ का जो हश्र है वो फोटो में दिखाई दे रहा है.. उनकी कविता है-
''चाह नहीं मैं सुर बाला के,गहनों में गुंथा जाऊं,
चाह नहीं प्रेमी माला में, बिंध प्यारी को ललचाऊ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर, हे हरि डाला जाऊं,
चाह नहीं देवों के सिर पर, चढ़ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ा लेना बनमाली,उस पथ में देना तुम फेंक,
मा.. भूमि पर शीश चढ़ाने,जिस पथ जावें वीर अनेक..!


शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2013

पेड न्यूज का मुद्दा, दैनिक भास्कर और पत्रिका..


पांच राज्यों के नवंबर-दिसम्बर में होने वाले विधानसभा के चुनाव में आयोग की निगाह मीडिया की पेड न्यूज पर रहेगी. पेड न्यूज एक ऐसा गोरखधंधा है, जिसमें पाठक को लगता है कि वो अख़बार में चुनावी समाचार अथवा विश्लेष्ण पढ़ रहा है पर दरअसल वो खबर नहीं, विज्ञापन पढ़ रहा होता है, जिससे उनके दिमाग में या बैठा जाता है कि कौंन सी पार्टी या कौन सा प्रत्याशी चुनाव जीत रहा है. फिर भला हारने वाले को कौन मत दे कर ख़राब करना चाहेगा..!

अख़बारों की प्रतिस्पर्धा कोई लुकी-छिपी बात नहीं, दैनिक भास्कर ने पहले पेजकी जैकेट टाप में 
प्रकाशित किया ‘‘विधानसभा चुनाव, दैनिकभास्कर में पेड न्यूज नहीं’’ साथ पाठकों से निवेदन किया है कि यदि प्रकशित किसी खबर पर लगे की भास्कर स्थिति के विपरीत जा रहा है, तो जरूर बताये''.
अगले दिन ‘पत्रिका’ के पहले पेज पर प्रकाशित हुआ, ‘‘वो पेड न्यूज से कमाते हैं, हम खबर की कीमत चुकाते हैं.’जाहिर था बिना नाम दिए ये अख़बार पत्रिका किसी के लिए कह रहा है.फिर अगले दिन ‘पत्रिका’ ने प्रकाशित किया ‘’हमें बताएं जब कोई अख़बार के पेड न्यूज का व्यापार..!

अभी छतीसगढ़ में प्रत्याशियों ने मार्चा नहीं खोला पर अख़बार आमने-सामने होने लगे. मीडिया की छवि पाठकों के बीच अच्छी रही है और वो बनी रहे सभी चाहते हैं.  मीडिया प्रत्याशियों के चुनावी विज्ञापन भी खूब प्रकाशित करता है. इसमें क्या पैसे का वर्चस्व वाले उम्मीदवार को क्या लाभ नही मिलाता होगा. विज्ञापन ही वो आधार है जो अखबार  की आर्थिकी को बनाये रखता है .हो सकता है एक दिन ऐसा भी हो की चुनावी विज्ञापन भी चुनाव आयोग की नजर की किरकिरी बन जाएँ. फिलहाल प्रत्याशी के नाम दिया सारे विज्ञापन का सही लेखाजोखा रखना जरूरी है, कहीं तो ये कुल खर्च की सीमा से ये बढ़ सकते है.

 मीडिया प्रत्याशियों के चुनावी विज्ञापन भी खूब प्रकाशित करता है. इसमें क्या पैसे का वर्चस्व वाले उम्मीदवार को लाभ नहीं मिलाता होगा..? पर ये आय मीडिया केलिए जरूरी है.
विज्ञापन ही वो आधार है जो अखबार  की आर्थिकी को बनाये रखता है .हो सकता है एक दिन ऐसा भी हो कि चुनावी विज्ञापन भी चुनाव आयोग की नजर की किरकिरी बन जाएँ. क्योकि इससे समर्थवान प्रत्याशी को लाभ मिलाता है और ये धन का वर्चस्व को साबित करता है लोकप्रियता को नहीं. फिलहाल प्रत्याशी के नाम दिया सारे विज्ञापन का सही लेखाजोखा रखना जरूरी है, कहीं तो ये कुल खर्च की सीमा से ये बढ़ सकते है.चुनाव के इस मौसम में कुछ अख़बारों का जन्म ही पेड़ न्यूज के लिये होता है. वे पेड न्यूज के लिए पोशीदा दरवाजे खोल सकते हैं.यकीनन चुनाव आयोग के लिए इस सब को रोकना अतिरिक्त काम होगा पर ये अहम काम, निष्पक्ष चुनाव के लिए बेहद जरूरी है.

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2013

निष्पक्ष चुनाव:शराब वितरण रोकने महिलाओं को दे जवाबदारी


चुनाव सुधार की प्रकिया निरंतर जारी है, इस बार ‘कोई पसंद नहीं’ के लिए भी वोटिंग मशीन में बटन होगा. पर इतना ही काफी नहीं है, चुनाव प्रचार बंद होने के बाद मतदाताओं को लुभाने अथवा ये कहा जाये, मतिभ्रमित करने शराब का जिस बड़े पैमाने में किया जाता है, उसके सामने मतदान की निष्पक्षता दम तोड़ देती है,, जिस शराबबंदी की बापू हिमायत करते थे वो शराब मतदान के बाद नतीजों पर निर्णायक भूमिका निर्वाह कराती चल रही है !

समाज में इतनी जागरूकता आई है की गाँव की महिलाएं अवैध शराब विक्रय की रोकथाम में वो कठोर कदम उठती दिखने लगी है, वो शराब के खिलाफ समूह बन कर कलेक्टर के दरवाजे पर दस्तक देती हैं, गाँव में शराब पीने वालों को सबक सिखाती है, यहाँ तक शराब ठेकेदार के गुर्गे भी उनसे दूरी बना कर चलते है. ये है नारी सशक्तिकरण, नारी जान चुकी है कि, शराब ने उनके घर का बजट बिगाड़ा है.और नशे के दुष्परिणाम क्या हैं, चुनाव आयोग महिलाओं की इस ताकत का आसन्न चुनाव में बखूबी उपयोग कर सकता है जिसके सकारात्मक नतीजे चुनाव परिणाम मिलाना तय है.

नामांकन दाखिले के साथ चुनाव आयोग शराब फैक्ट्री, से लेकर शराब ठेकेदारों पर नजर बनाये कि  मदिरा की कोई बड़ी खेप किसी राजनीतिक दल या उम्मीदवार तक न तो नहीं पहुँच रही है.आम अवधारण बन चुकी है कि ये शराब मतदान को प्रभावित करती है. मतदान के पहली रात शराब किसी की हार को जीत में बदल देती है, शराब और बकरा गाँव में प्रत्याशी की तरफ से वितरण कारने की परिपाटी इस तरह पैठ कर चुकी है कि कुछ मुहल्लों के मतदाता मांग करते हैं या गरीब वर्ग के मतदाता इसके लिए आस लगा के बैठे रहते है.

संविधान में हर बालिग़ कोएक देने का अधिकार है, ऐसी दशा में किसी के विवेकपूर्ण मतदान,दूसरी तरफ किसी नशे में डगमगाते का वोट भला कैसे बराबर हो सकता है. कुछ तो वोट डालने के बाद राह में गिरे-पड़े दिखते हैं. इनको अपने वोट की अहमियत का ज्ञान आज तक नहीं है. कोई ये देखने वाला भी नहीं होता की मतदान करने वाला क्या मतदान केंद्र में शराब पी कर 'भारत भाग्य विधाता बना' हुआ है. न जाने ये सिलसिला कब थमेगा..चुव सुधार के लिए प्रकिया सतत चल रही है आशा की जा सकती है चुनाव आयोग यदि चाहे तो एक दिन ऐसा आएगा जब 'महिला समूह'  गाँव-गाँव में मतदान के पहले वितरण होने वाली शराब को रोकने में कामयाबी होंगी पर उसके लिए प्रशासन और चुनाव आयोग दवारा  'महिला समूहों' को प्रोत्साहित करने की ठोस योजना को प्रभावी तरीके से लागू करनी होगी ..!


गुरुवार, 29 अगस्त 2013

सस्ता अन्न मदद,नहीं मोहताज बना रहा..!




कहते हैं दो राज्यों में भुखमरी थी, दोनों  राज्यों के लोग प्रभु से प्रार्थना कर रहे थे, उनकी दशा देख ईश्वर प्रकट हुए, कहा - जो वरदान चाहिए मांग लीजिये..पहले राज्य के नागरिकों ने माँगा ‘’हमें बहुत सारी मछली और रोटी खाने को दे दीजिये’’,ईश्वर ने ढेर लगा दिया.. फिर दूसरे राज्य के नागरिकों से कहा वरदान में क्या चाहिए..? उन्होंने कहा ‘’ईश्वर, हमें मछली पकड़ना और गेहूं की खेती का हुनर सिखा दीजिए. ईश्वर ने मछली पकड़ने का गुर और बीज देकर गेहूं की खेती की विधि सिखा दी..!

जिन्होंने रोटी मछली मांगी थी, कुछ दिन उन्होंने जम कर खाया और फिर खाना खराब होने लगा, फिर एक दिन वो खाने के काबिल न रहा और वे फिर ईश्वर से याचना करने लगे. पर प्रभु कहीं और व्यस्त थे. दूसरी तरफ जिस राज्य ने प्रभु से आत्मनिर्भर होने का गुर सीखा था वो पनप गए, दुबारा उन्होंने किसी के सामने हाथ न फैलाये..वे अब खुद दाता बन गये..!

बचपन में मिशन स्कूल में किसी से सुनी ये कहानी आज भी प्रासंगिक लगती है. जिन राज्यों में पांच वर्षीय योजना के तहत सिंचाई सुविधा के किये बांध मांगे वो हरित क्रांति के बाद ओद्योगिक क्रांति की तरफ बढ़ गए. संसाधन तो थे पर उपयोग जिस तरह हुआ अमीर और अमीर होते गए लेकिन गरीब मजदूर ही बने रहे. बड़े उद्योगों ने गाँव के परम्परागत लोहारी-चर्मकारी का कबाड़ा कर दिया प्लस्टिक का प्रचालन बढ़ा तो बसोड़ के टोकना-झाड़ू का काम जाता रहा. तेंदूपत्ता जहाँ से निकलता है, वहां बीडी बनाने के उद्योग नहीं, माहुल पत्ता, छतीसगढ़ के जंगल की पैदावार है पर दोना-पत्तल अन्य प्रान्त में बनते हैं..! आज वनवासी वनोपज संगह्र्ण और बारिश के दिनों बांस का करील कटना,मशरूम जमा कर बेचने जैसे काम,अथवाजोतों में बंटी खेती के काम तक सिमट के रह गये है..! शेष समय वन विभाग के कामों में मजदूरी..मगर निजी उद्योगों की और वे नहीं सोचते..!

 छतीसगढ़ में करीब 36 लाख गरीब परिवारों को मात्र एक रूपये और दो रूपये किलो हर महीने 35 किलो अनाज दिया जा रहा है.उधर केंद्र सरकार ने चुनाव से पहले खाद्य सुरक्षा बिल पारित हो गया है. पीडीएस सिस्टम की दशा ठीक नहीं. राजीव गाँधी ने कहा था केंद्र से चला एक रुपया पन्द्रह पैसे हो क़र जमीन तक पहुँचता है..! इस व्यवस्था में सुधार की तरफ कोई काम नहीं किया जाता. बिचौलियों की बन आई है..वर्ककल्चर बना नहीं. काम के अवसरों की कमी है. जरूरत है. गाँव के उद्योगों को जीवित करने जरूरत है. महात्मा गाँधी इस तरफ जोर देते थे, पर हम भूल गए.नहीं तो आज तक सौ फीसद ग्रामीण अपने पैरों पर खड़े होते .वर्तमान नीतियाँ उन्हें मोहताज बना रही हैं वे मदद कम कर रही हैं. अब जब तक गरीब अपने पैरो पर खड़ा होने की  तरफ कदम नहीं बढ़ाते, और सरकार इस तरफ उनकी मददगार नहीं बनती.. मेहनतकश ये वर्ग  सस्ते अन्न के लिए सरकार का  मोहताज बने रहेगा..! हाँ पर एक मजबूत वोट बैंक वो बने रहेंगे..!                                       

शनिवार, 24 अगस्त 2013

तितली और मकड़े की कहानी




 जब मैं कलइन फूलों की फोटो ले रहा था तभी मकड़े के बिछाये जाल में एक तितली आ फंसी, वो जाले से निकलने रह-रह कर फड़फड़ा रही थी, मकड़ा छिपा था उसके और शिथिल होने का इंतजार कर रहा था, मैंने महीन जाल से संघर्षरत तितली की फोटो ली फिर पर्यावरण में तितली की ज्यादा उपयोगिता मान मकड़े के जाल से आजाद कर दिया.



मकड़े ने जाल जहाँ बुना वहां फूल थे, वो जानता था, यहाँ अब तितली आयेगी.



एक बात और..मकड़े ने वहां फुले इन फूलों तक पहुँचने की उस राह पर जाल बुना था,जहाँ करीबी अन्य पौधे के कारण तितली को संकरी राह से उड़के फूलों तक पहुँचाना था. याने वो कम जाल से ये लाभ चाहता था. कुछ देर बाद मकड़े ने मकड़े ने क्षतिग्रत जाल को दुरुस्त कर लिया और फिर घाट लगा कर बैठ गया किसी तितली के लिए...





[समाज में न जाने कितने मकड़े हैं, जो तितली की राह में जाल बिछाए हैं..!]

बुधवार, 21 अगस्त 2013

कोयला खदान आवंटन की फ़ाइल् कहाँ गईं


''जिन्दगी ख़त्म हो जाती है, कोयला मजदूरों की खदानों में,
तुम को शर्म नहीं आती, अरबों के घपले की फाईल गायब कराने में..!!
कहते हैं दिल्ली में आप बहुत व्यस्त रहते हो, फिर भी न जाने कैसे
समय निकाल लेते हो, 'बड़े-बड़ों' को इन घपलों से बचाने में..!!

(फोटो गूगल से]