शनिवार, 24 जनवरी 2015

जैन मन्दिर परिसर में गढ़ी जा रहीं प्रतिमाएं



'फर्क नजरिए का है, जो हमें प्रस्तरखंड दिखता है,
मूर्तिकार को उसमें छिपी को सुंदर कृति दिखती है,
उम्र का कोई मायने नहीं होता है,कला के क्षेत्र में,
कलाकार तो जन्म लेते ही है मूर्ति गढ़ने के लिए ,,!!
[श्री दिगम्बर जैन मंदिर सर्वोदय तीर्थ परिसर अमरकंटक से]

शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

छतीसगढ़ में ग्रीन हॉउस कांसेप्ट



'उद्यानिकी के मन्दिर में ग्रीन हॉउस का दीपक रायपुर के बाना में प्रज्वलित हो रहा है, भविष्य में पता चलेगा विकास का ये आलोक कितने खेतों तक पंहुंचा और किसानों ने कितना लाभ पाया, इसका लाभ अगर किसानों तक पंहुचा तो बेमौसम सब्जीयों का उत्पादन होगा और ये सब्जियां महंगाई न रहेगी ,,!

सूरजपुर के स्ट्राबेरी के किसान रोशनलाल अग्रवाल उनके सुपुत्र कैलाश बिलासपुर के आम उत्पादक बजरंग केडिया के साथ कल में शासकीय उद्यान रोपणी,बीज प्रगुणन प्रक्षेत्र बाना पहुंचे,यहाँ उपस्थित अधिकारी चिंताराम साहू ने बताया ,,किसी प्रकार आटोमेटिक मशीन बीज का एक एक दाना विषाणु रहित मिट्टी वाली प्लेट में लगा कर पानी डाला दिया जाता है ,,अब इन ट्रे को ग्रीन हॉउस में कतार में बीजों को रोपणी तैयार होने के लिए लाईनों में लगाया दिया जाता है ,,यहाँ की आबोहवा आदमी के हाथ है ,,वो कम ज्यादा करता उस मौसम में ले आता जो इसके अनुकूल होता है ,,!
इसके लिए पाली छत में और नेट का उपयोग किया गया है ,,!

बेमौसम रोपणी तैयार होने से किसानों को फसल होने पर अधिक मोल मिलता है और अधिक बेमौसम अधिक उत्पादन से इन सब्जयों के भाव कम..इस प्रक्षेत्र के लिए 70 एकड़ भूमि है ,ग्रीन हाउस दो एकड़ में है जिनमें फूलों का उत्पादन कैसे हो ये सिखाया बताया जाता है ,,,! किसानों को एक बार इस तकनीक को बाना पहुँच कर देखना चाहिए ,,यहाँ उद्यानिक विभाग के संचालक भुनेश यादव की देखरेख में काम हो रहा है ,और किसान ग्रीन हॉउस के इस कांसेप्ट को देखने पहुँच रहे हैं ,,!इस पर सरकारी अनुदान भी है ,!

एक सुखद आश्चर्य- यहाँ हम सब को समझा दिखा रहे अधिकारी जब ये पता चला तो मैं किसान चमनलाल चड्ढा का पुत्र हूँ, तब उससे अपने साथी से मेरे सामने पूछा- हम लोगों ने नौकरी की शुरुवात में बिलासपुर में कहाँ ट्रेनिग ली ,,साथी ने जवाब दिया 'चड्डा कृषि फार्म में ,,पर आज मेरे हिस्से को छोड़ बाकी वीरान है ,और शेष भाई पैतृक जमीन पर बिल्डर बन गए ,,!

बुधवार, 7 जनवरी 2015

राजा और जोगी .

''उज्जैयनी के राजा भर्तहरी की कथा गाँव में सुना कर जीवन-यापन करने वाले से गाँव 'गरियारी' में राह चलते मुलाकात हो गयी,,!
छत्तीसगढ़ में उनकी कथा भरथरी का लोकगायन की लम्बी परम्परा है,,वे विक्रम संवत के प्रवर्तक विक्रमादित्य के अग्रज थे,,! संस्कृत साहित्य में नीति,श्रृंगार और वैराग्य पर सौ-सौ श्लोक ज्ञान वर्धक है,, उनकी रानी पिंगला के कहानी में कुछ पंक्तियों में दे रहा हूँ,,!
राजा को दरबार में गुरुगोरख नाथ चिर-यौवन व अमरत्व का एक फल दे जाते है ,,राजा अपनी प्रिय रानी को ये फल खाने दे देता है,'''रानी अपने प्रेमी शहर कोतवाल को और फिर वो अपनी प्रेमिका राज नर्तकी चिरयौवन बना रहे उसे दे देता है ,,ये नर्तकी अपने को पतित मानते हुए प्रजापालक राजा को ये फल भेंट कर देती है ,, राजा फल पहचान जाता है और विरक्त हो वैराग्य ले लेता है ,,राजा ने वैराग्य पर सौ श्लोक इस काल में लिखे..!

ये जोगी पिछले ग्यारह साल से बाबा गोरखनाथ और राजा की ये कथा सुना रहा है ,,कुछ पंक्ति हमें भी सुनाई ..जात न पूछो जोगी की पूछ लो ज्ञान ,,कुछ कर वो आगे बढ़ा गया ,,गाते-बजाते हुए ,,!!

गुरुवार, 1 जनवरी 2015

जिनके तन और मन में राम बसा है






''पूरे तन में राम के नाम का गोदना, सर पर मोर मुकुट,रामनाम की चदरिया में घुंघरू की लटकन,राम-राम के कीर्तन में जीवन काट रहे रामनामी समाज के वार्षिक मेले का कल बलौदा बाज़ार जिले के कोदवा गाँव में तीन दिनी मेले का शुभारम्भ कलश यात्रा के बाद हुआ.
महानदी के किनारे रामनामी समाज में रामनाम गोद्वाने वालो की कमी अब दिखने लगी है,मगर मेले में भीड़ बढ़ाने लगी है ,,इस समाज में लाखों है ,पर पूरे तन में गोदना किये हजार के आसपास हो सकते है ,,,! नई पीढ़ी में इस गोदना के प्रति रुझान कम है..पर राम नाम के प्रति श्रध्दा बढ़ी  है ..!!
जानकारी के मुताबिक़ पहला मेला 1911 में पूस माह की एकादशी से त्रयोदशी तक गाँव पिपरा में आयोजित किया गया,फिर तब से महानदी के किनारे इस मेले के आयोजन किया जाने लगा. इनको आबादी महानदी के दोनों तरफ बसी है ,,मेला अमूनन नदी के एक किनारे के बाद अगले साल दूजे किनारे के गाँव में भरता है जिसका चयन मेले में एक साल पहले ही कर लिए जाता है .
मुख्य रूप से ये किसान हैं..! ये शांति प्रिय है और परस्पर राम राम कह कर एक दूजे का करते हैं, ,,बताया जाता है, किसी दिव्य पुरुष ने सन 1888 में राम नाम को अपनने को सलाह दी थी और तब से गोदान के माध्यम उन्होंने नाशवान तन पर गोदना करवाना शुरू किया जो मरने के बाद भी उनके साथ जाता है ,,! ऐसी श्रद्धा को कोटि प्रणाम !