पांच राज्यों के नवंबर-दिसम्बर में होने वाले विधानसभा के चुनाव में
आयोग की निगाह मीडिया की पेड न्यूज पर रहेगी. पेड न्यूज एक ऐसा गोरखधंधा है,
जिसमें पाठक को लगता है कि वो अख़बार में चुनावी समाचार अथवा विश्लेष्ण पढ़ रहा है
पर दरअसल वो खबर नहीं, विज्ञापन पढ़ रहा होता है, जिससे उनके दिमाग में या बैठा जाता है कि कौंन सी पार्टी या कौन सा प्रत्याशी चुनाव
जीत रहा है. फिर भला हारने वाले को कौन मत दे कर ख़राब करना चाहेगा..!
अख़बारों की प्रतिस्पर्धा कोई लुकी-छिपी बात नहीं, दैनिक भास्कर ने
पहले पेजकी जैकेट टाप में
प्रकाशित किया ‘‘विधानसभा चुनाव, दैनिकभास्कर में पेड न्यूज नहीं’’ साथ
पाठकों से निवेदन किया है कि यदि प्रकशित किसी खबर पर लगे की भास्कर स्थिति के
विपरीत जा रहा है, तो जरूर बताये''.
अगले दिन ‘पत्रिका’ के पहले पेज पर प्रकाशित
हुआ, ‘‘वो पेड न्यूज से कमाते हैं, हम खबर की कीमत चुकाते हैं.’जाहिर था बिना नाम
दिए ये अख़बार पत्रिका किसी के लिए कह रहा है.फिर अगले दिन ‘पत्रिका’ ने प्रकाशित
किया ‘’हमें बताएं जब कोई अख़बार के पेड न्यूज का व्यापार..!
अभी छतीसगढ़ में प्रत्याशियों ने मार्चा नहीं खोला पर अख़बार आमने-सामने होने लगे.
मीडिया की छवि पाठकों के बीच अच्छी रही है और वो बनी रहे सभी चाहते हैं. मीडिया प्रत्याशियों के
चुनावी विज्ञापन भी खूब प्रकाशित करता है. इसमें क्या पैसे का वर्चस्व वाले
उम्मीदवार को क्या लाभ नही मिलाता होगा. विज्ञापन ही वो आधार है जो अखबार की आर्थिकी को बनाये रखता है .हो सकता है एक दिन
ऐसा भी हो की चुनावी विज्ञापन भी चुनाव आयोग की नजर की किरकिरी बन जाएँ. फिलहाल
प्रत्याशी के नाम दिया सारे विज्ञापन का सही लेखाजोखा रखना जरूरी है, कहीं तो ये कुल
खर्च की सीमा से ये बढ़ सकते है.
मीडिया प्रत्याशियों के
चुनावी विज्ञापन भी खूब प्रकाशित करता है. इसमें क्या पैसे का वर्चस्व वाले
उम्मीदवार को लाभ नहीं मिलाता होगा..? पर ये आय मीडिया केलिए जरूरी है.
विज्ञापन ही वो आधार है जो अखबार की आर्थिकी को बनाये रखता है .हो सकता है एक दिन
ऐसा भी हो कि चुनावी विज्ञापन भी चुनाव आयोग की नजर की किरकिरी बन जाएँ. क्योकि इससे समर्थवान प्रत्याशी को लाभ मिलाता है और ये धन का वर्चस्व को साबित करता है लोकप्रियता को नहीं. फिलहाल
प्रत्याशी के नाम दिया सारे विज्ञापन का सही लेखाजोखा रखना जरूरी है, कहीं तो ये कुल
खर्च की सीमा से ये बढ़ सकते है.चुनाव के इस मौसम में कुछ अख़बारों का जन्म ही पेड़ न्यूज के लिये होता है. वे पेड न्यूज के लिए पोशीदा दरवाजे खोल सकते हैं.यकीनन चुनाव आयोग के लिए इस सब को रोकना अतिरिक्त काम होगा पर ये अहम काम, निष्पक्ष चुनाव के लिए बेहद जरूरी है.