शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

जल जमनी , बूटी और मजमे वाला

[जल जमनी बूटी ..जिसकी बेल होती है ,,]
इस बूटी का नाम सही नाम नही जनता पर इससे पानी 'जेली' सा जम जाता है और काटो तो कटे टुकड़े थरथर है..इसलिए'जल-जमनी' लिख रहा हूँ,
यही नाम मजमें वाला बताता था जो बरसों पहले तहसील के पास अजगर, नाग दिखा कर दवाइयां बेचा करता था, स्कूल जाते मजमा देखना मेरी हाबी थी, उनकी ट्रिक सीखने का चाव, पर ये मजमे वाला दिव्य ज्ञानी था,,वो पानी और तेज मिला अपनी दवा की गोली डाल दूध सा बना देता.!
एक बार देखा वो मेरे मुहल्ले में पेटी से बाहर निकल बड़े से अजगर को स्नान करा था ,यहाँ उसका घर था,वो मुझे पहचान गया, मेरे घर के बाड़े और कमिश्नर दफ्तर की दीवार साथ थी,इस दफ्तर के उजाड़ हिस्से में एक सुबह वो मजमें वाला 'जल-जमनी' की बेल से पत्ते तोड़ते दिखा,अब मैं जान चुका था, वो कौन की बूटी है जिसे मजमें के शुरू में वो कटोरे में पानी का हरा घोल कपड़े में निचोड़ निचोड़ कर बनता है और मजमें के अंत में पानी की जेली काट काट कर अख़बार पर दिखता हैं,, फिर घर पर मैंने भी बूटी सूखा ली और पानी जमा लिया. वो कुछ टुकड़े खा भी लेता..!
सालों बीत गये कभी कालेज में ये लैब मेंदोस्तों को कर के दिखाया, फिर कुछ साल बाद सेमिनार आयोजन करने में माहिर एक प्रोफेसर मेरे घर आये और उन्होंने जानकारी चाही मगर मुझे उसका ध्येय सही नहीं लगा में टाल गया,,,जब मिलते तो पूछते पर मैंने कभी जाहिर नहीं की जबकि ये खेत की मेड़ों पर या झाडियों पर चढ़नी वाली बेल है और कई जगह मिलती है,
+हाँ, जब ये बेल आपको मिल जाये तो पानी की जेली शक्कर डाल बनाये और खाए, मजमे वाला इसे बहुत गुणकारी बताता था. क्या है और खाने पर  क्या असर होगा ये मैं नहीं जानता, पर इन सब पर शोध जरूरी है,,!


रविवार, 12 जुलाई 2015

घड़ियाल को बचा लिया गया,..



[एक पाजेटिव स्टोरी, घड़ियाल को बचा लिया गया..]
''मुरैना से बिलासपुर तक घड़ियाल को आने में 35 साल लग गए, 2 घड़ियाल दो साल पहले पहुँच गए थे और चार के कल पहुंचने की उम्मीद है..दरअसल ये कहानी है सरकारी योजना की सफलता की आँखों देखी.!

मगर और घड़ियाल में विशेष अंतर उनकी थूथन में होता है ,,मगर का जबड़ा पुष्ट और घडियाल का आरे से दांतों वाला लम्बा और ऊपर घड़े सी बनावट,,आज से करीब 40 साल पहले भारत से घड़ियाल लगभग लुप्त हो चुके थे. बचे हुए कुछ चम्बल नदी के घड़ियालों को बचाने' मुरैना में राजस्थान जो जोड़ने वाले पुल के करीब घडियाल परियोजना शुरू की गई,,!
तब मप्र विभजित न था और बात सन 1980 के आसपास की है, मुख्यमंत्री अर्जुनसिंह ने एक संभाग के पत्रकारों को दूसरे सम्भाग की संस्कृति और विकास से परिचित करने दौरे कराए थे.. , छ्तीसगढ़ के पत्रकारों का दल में छह सदस्य रहे ,,इनमे रायपुर देशबन्धु के सुनील माहेश्वरी,बिलासपुर टाइम्स से राजू तिवारी और लोकस्वर' से मैं टेकनपुर, शिवपुरी,ओरछा होते मुरैना पहुंचे, कलेक्टर रहे संदीप खन्ना,.. हम मुरैना के रेस्ट हॉउस में रुके पता चला यहाँ इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार कुछ दिनों पहले रुके थे, जिन्होंने चम्बल नदी के पार धौलपुर में 'कमला' को खरीद कर तहलका मचा दिया था,,[बाद इसपर फिल्म बनी ,,!
अगले दिन पत्रकारों के दल ने घड़ियाल परियोजना को दिखा ,तब चम्बल में रेत उत्खनन रोक दिया गया था और घड़ियाल के अंडे खोज कर इन्क्युवेटर में उनको रख निर्ध्रारित तापमान पर बच्चे निकलते ,,फिर उनको बड़ा कर वापस चम्बल नदी में सुरक्षित छोड़ दिया जाता है ,,शिकार पर रोक लगी थी ,,! 


अब चम्बल से जब ये घड़ियाल बढे तो जू भी भेजे गए ,,ये कभी लम्बे होते हैं और आरे-दार दांतों के जबड़े से युक्त पर ये मछली खाने की लिए विकसित हुए है ,,आदमी पर कम हमला करता है ,,, बिलासपुर के कानन पेंडारी जू में घडियाल के दो छोटे बच्चे दो साल पहले इंदौर जू से लाये गए थे आज वो तीन फूट के हो रहे हैं ,,,अब चार घड़ियाल एक- दो दिन में और वहां से लाये जा रहे हैं ..बिलासपुर से चार लोमड़ी और तीन' बेंडड कैरत' सांप के बदले दो साही और चार घड़ियाल मिल रहे है ,,जू प्रभारी टी आर जायसवाल ने बताया डा. पीके चन्दन, वन अधिकारी विश्वनाथ ठाकुर इस अदलाबदली के लिए यहाँ से रवाना हो चुके हैं ,,![नीचे की  फोटो मगर की है जो क्रोकोडाइल पार्क जिला जांजगीर चांपा से खींचा था ,,]


गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

मरती नदी में पलती जिन्दगी




'जिस नदी को लन्दन की 'टेम्स' नदी सा बनने का सपना दिखाया जा रहा, वो 'अरपा' नदी मर रही है और उसके ठहरे पानी में की गंदगी को साफ परिंदे कर रहे हैं,ये स्वछता का कुदरती तरीका होगा ! छतीसगढ़ की न्यायधानी के जीवन रेखा 'अरपा'नदी सूख-सूख कर मर रही है,,!
उसकी जमीन को छीना जा रहा है, अपोलो जाने के पुल के नीचे ब्लैक-लीकर वाले पानी की बू पूल के ऊपर आ रही है, और हजारों प्रवासी परिंदे[ BLACK WINDGE STILT ] इसमें अपनी खुराक खोज रहे है ,,वो इस तरह पानी की सफाई में लगे है,अगले पुल के कुछ आगे कचरे में ब्लैक काईट का दल कचरे से उठा कर आकाश में उड़ जाता है,आवारा कुते भी कुछ खोज रहे है,गरीब भी कुछ कचरे के ढेर चुन रहा है ,,संब में पेट के लिए संघर्ष सारे दिन चलता है ,, यहाँ बू सड़क तक है ,,!
मोदीजी का स्वच्छता अभियान और स्वाइन-फ्लू की खबरें साथ-साथआ रही है, मुझे लगता है ये अरपा का नहीं सारे देश की नदियों का हाल है ,,!

शनिवार, 24 जनवरी 2015

जैन मन्दिर परिसर में गढ़ी जा रहीं प्रतिमाएं



'फर्क नजरिए का है, जो हमें प्रस्तरखंड दिखता है,
मूर्तिकार को उसमें छिपी को सुंदर कृति दिखती है,
उम्र का कोई मायने नहीं होता है,कला के क्षेत्र में,
कलाकार तो जन्म लेते ही है मूर्ति गढ़ने के लिए ,,!!
[श्री दिगम्बर जैन मंदिर सर्वोदय तीर्थ परिसर अमरकंटक से]

शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

छतीसगढ़ में ग्रीन हॉउस कांसेप्ट



'उद्यानिकी के मन्दिर में ग्रीन हॉउस का दीपक रायपुर के बाना में प्रज्वलित हो रहा है, भविष्य में पता चलेगा विकास का ये आलोक कितने खेतों तक पंहुंचा और किसानों ने कितना लाभ पाया, इसका लाभ अगर किसानों तक पंहुचा तो बेमौसम सब्जीयों का उत्पादन होगा और ये सब्जियां महंगाई न रहेगी ,,!

सूरजपुर के स्ट्राबेरी के किसान रोशनलाल अग्रवाल उनके सुपुत्र कैलाश बिलासपुर के आम उत्पादक बजरंग केडिया के साथ कल में शासकीय उद्यान रोपणी,बीज प्रगुणन प्रक्षेत्र बाना पहुंचे,यहाँ उपस्थित अधिकारी चिंताराम साहू ने बताया ,,किसी प्रकार आटोमेटिक मशीन बीज का एक एक दाना विषाणु रहित मिट्टी वाली प्लेट में लगा कर पानी डाला दिया जाता है ,,अब इन ट्रे को ग्रीन हॉउस में कतार में बीजों को रोपणी तैयार होने के लिए लाईनों में लगाया दिया जाता है ,,यहाँ की आबोहवा आदमी के हाथ है ,,वो कम ज्यादा करता उस मौसम में ले आता जो इसके अनुकूल होता है ,,!
इसके लिए पाली छत में और नेट का उपयोग किया गया है ,,!

बेमौसम रोपणी तैयार होने से किसानों को फसल होने पर अधिक मोल मिलता है और अधिक बेमौसम अधिक उत्पादन से इन सब्जयों के भाव कम..इस प्रक्षेत्र के लिए 70 एकड़ भूमि है ,ग्रीन हाउस दो एकड़ में है जिनमें फूलों का उत्पादन कैसे हो ये सिखाया बताया जाता है ,,,! किसानों को एक बार इस तकनीक को बाना पहुँच कर देखना चाहिए ,,यहाँ उद्यानिक विभाग के संचालक भुनेश यादव की देखरेख में काम हो रहा है ,और किसान ग्रीन हॉउस के इस कांसेप्ट को देखने पहुँच रहे हैं ,,!इस पर सरकारी अनुदान भी है ,!

एक सुखद आश्चर्य- यहाँ हम सब को समझा दिखा रहे अधिकारी जब ये पता चला तो मैं किसान चमनलाल चड्ढा का पुत्र हूँ, तब उससे अपने साथी से मेरे सामने पूछा- हम लोगों ने नौकरी की शुरुवात में बिलासपुर में कहाँ ट्रेनिग ली ,,साथी ने जवाब दिया 'चड्डा कृषि फार्म में ,,पर आज मेरे हिस्से को छोड़ बाकी वीरान है ,और शेष भाई पैतृक जमीन पर बिल्डर बन गए ,,!

बुधवार, 7 जनवरी 2015

राजा और जोगी .

''उज्जैयनी के राजा भर्तहरी की कथा गाँव में सुना कर जीवन-यापन करने वाले से गाँव 'गरियारी' में राह चलते मुलाकात हो गयी,,!
छत्तीसगढ़ में उनकी कथा भरथरी का लोकगायन की लम्बी परम्परा है,,वे विक्रम संवत के प्रवर्तक विक्रमादित्य के अग्रज थे,,! संस्कृत साहित्य में नीति,श्रृंगार और वैराग्य पर सौ-सौ श्लोक ज्ञान वर्धक है,, उनकी रानी पिंगला के कहानी में कुछ पंक्तियों में दे रहा हूँ,,!
राजा को दरबार में गुरुगोरख नाथ चिर-यौवन व अमरत्व का एक फल दे जाते है ,,राजा अपनी प्रिय रानी को ये फल खाने दे देता है,'''रानी अपने प्रेमी शहर कोतवाल को और फिर वो अपनी प्रेमिका राज नर्तकी चिरयौवन बना रहे उसे दे देता है ,,ये नर्तकी अपने को पतित मानते हुए प्रजापालक राजा को ये फल भेंट कर देती है ,, राजा फल पहचान जाता है और विरक्त हो वैराग्य ले लेता है ,,राजा ने वैराग्य पर सौ श्लोक इस काल में लिखे..!

ये जोगी पिछले ग्यारह साल से बाबा गोरखनाथ और राजा की ये कथा सुना रहा है ,,कुछ पंक्ति हमें भी सुनाई ..जात न पूछो जोगी की पूछ लो ज्ञान ,,कुछ कर वो आगे बढ़ा गया ,,गाते-बजाते हुए ,,!!

गुरुवार, 1 जनवरी 2015

जिनके तन और मन में राम बसा है






''पूरे तन में राम के नाम का गोदना, सर पर मोर मुकुट,रामनाम की चदरिया में घुंघरू की लटकन,राम-राम के कीर्तन में जीवन काट रहे रामनामी समाज के वार्षिक मेले का कल बलौदा बाज़ार जिले के कोदवा गाँव में तीन दिनी मेले का शुभारम्भ कलश यात्रा के बाद हुआ.
महानदी के किनारे रामनामी समाज में रामनाम गोद्वाने वालो की कमी अब दिखने लगी है,मगर मेले में भीड़ बढ़ाने लगी है ,,इस समाज में लाखों है ,पर पूरे तन में गोदना किये हजार के आसपास हो सकते है ,,,! नई पीढ़ी में इस गोदना के प्रति रुझान कम है..पर राम नाम के प्रति श्रध्दा बढ़ी  है ..!!
जानकारी के मुताबिक़ पहला मेला 1911 में पूस माह की एकादशी से त्रयोदशी तक गाँव पिपरा में आयोजित किया गया,फिर तब से महानदी के किनारे इस मेले के आयोजन किया जाने लगा. इनको आबादी महानदी के दोनों तरफ बसी है ,,मेला अमूनन नदी के एक किनारे के बाद अगले साल दूजे किनारे के गाँव में भरता है जिसका चयन मेले में एक साल पहले ही कर लिए जाता है .
मुख्य रूप से ये किसान हैं..! ये शांति प्रिय है और परस्पर राम राम कह कर एक दूजे का करते हैं, ,,बताया जाता है, किसी दिव्य पुरुष ने सन 1888 में राम नाम को अपनने को सलाह दी थी और तब से गोदान के माध्यम उन्होंने नाशवान तन पर गोदना करवाना शुरू किया जो मरने के बाद भी उनके साथ जाता है ,,! ऐसी श्रद्धा को कोटि प्रणाम !