रविवार, 14 दिसंबर 2014

गुजरात के विकास पर सवाल और छतीसगढ़







''जब में ऊंट और कूत्तों के साथ गुजरात के भेड़-बकरी पालकों को बिलासपुर के जंगलों मे देखता हूँ तो दो ही विचार आते हैं-
क्या गुजरात के नरेंद्र भाई मोदी के विकास की किरणें यायावरी करते जीवन व्यतीत करने वाले इन राबारी लोगों तक नहीं पहुंची..और मोदी के विकास की अवधारण मिथ्या है. दूसरा ये कब तक छतीसगढ़ के जगलों का सत्यानाश वन विभाग के अमले से मिल कर करते रहेंगे ,,!! इनके पास हजारों भेड़-बकरियां होती हैं और ये दशकों से छतीसगढ़ के वन का विनाश कर रहे हैं ,,!

कल हमारी सोशल मीडिया की टीम ने रतनपुर मजवानी-केंदा का भ्रमण किया तो इनके दो जत्थे मजवानी के आगे बढ़ते मिले जो अपने रेवड़ और साथियों को खोज रहे थे ..जत्थे में महिलाए,युवती और बच्चे थे ,,! बच्चे को ऊंट पर होदे में मेमनों के साथ रखा गया था.. राह  में एक मेमने को पांच सौ में महिला ने ग्रामीण को बेचा ,,,! 

आगे वो वन है जहाँ अचानकमार से गुजरने वाली सड़क को वैकल्पिक सड़क बनाने के लिए पर्यावरण विभाग के स्वीकृति ले जूते घिस गए ..ऊटों का काफिला उसे तरफ बढ़ा गया ,, क्या ये वन विभाग को नहीं दिखता या बात कुछ दूसरी है ,,!

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