गुरुवार, 29 अगस्त 2013

सस्ता अन्न मदद,नहीं मोहताज बना रहा..!




कहते हैं दो राज्यों में भुखमरी थी, दोनों  राज्यों के लोग प्रभु से प्रार्थना कर रहे थे, उनकी दशा देख ईश्वर प्रकट हुए, कहा - जो वरदान चाहिए मांग लीजिये..पहले राज्य के नागरिकों ने माँगा ‘’हमें बहुत सारी मछली और रोटी खाने को दे दीजिये’’,ईश्वर ने ढेर लगा दिया.. फिर दूसरे राज्य के नागरिकों से कहा वरदान में क्या चाहिए..? उन्होंने कहा ‘’ईश्वर, हमें मछली पकड़ना और गेहूं की खेती का हुनर सिखा दीजिए. ईश्वर ने मछली पकड़ने का गुर और बीज देकर गेहूं की खेती की विधि सिखा दी..!

जिन्होंने रोटी मछली मांगी थी, कुछ दिन उन्होंने जम कर खाया और फिर खाना खराब होने लगा, फिर एक दिन वो खाने के काबिल न रहा और वे फिर ईश्वर से याचना करने लगे. पर प्रभु कहीं और व्यस्त थे. दूसरी तरफ जिस राज्य ने प्रभु से आत्मनिर्भर होने का गुर सीखा था वो पनप गए, दुबारा उन्होंने किसी के सामने हाथ न फैलाये..वे अब खुद दाता बन गये..!

बचपन में मिशन स्कूल में किसी से सुनी ये कहानी आज भी प्रासंगिक लगती है. जिन राज्यों में पांच वर्षीय योजना के तहत सिंचाई सुविधा के किये बांध मांगे वो हरित क्रांति के बाद ओद्योगिक क्रांति की तरफ बढ़ गए. संसाधन तो थे पर उपयोग जिस तरह हुआ अमीर और अमीर होते गए लेकिन गरीब मजदूर ही बने रहे. बड़े उद्योगों ने गाँव के परम्परागत लोहारी-चर्मकारी का कबाड़ा कर दिया प्लस्टिक का प्रचालन बढ़ा तो बसोड़ के टोकना-झाड़ू का काम जाता रहा. तेंदूपत्ता जहाँ से निकलता है, वहां बीडी बनाने के उद्योग नहीं, माहुल पत्ता, छतीसगढ़ के जंगल की पैदावार है पर दोना-पत्तल अन्य प्रान्त में बनते हैं..! आज वनवासी वनोपज संगह्र्ण और बारिश के दिनों बांस का करील कटना,मशरूम जमा कर बेचने जैसे काम,अथवाजोतों में बंटी खेती के काम तक सिमट के रह गये है..! शेष समय वन विभाग के कामों में मजदूरी..मगर निजी उद्योगों की और वे नहीं सोचते..!

 छतीसगढ़ में करीब 36 लाख गरीब परिवारों को मात्र एक रूपये और दो रूपये किलो हर महीने 35 किलो अनाज दिया जा रहा है.उधर केंद्र सरकार ने चुनाव से पहले खाद्य सुरक्षा बिल पारित हो गया है. पीडीएस सिस्टम की दशा ठीक नहीं. राजीव गाँधी ने कहा था केंद्र से चला एक रुपया पन्द्रह पैसे हो क़र जमीन तक पहुँचता है..! इस व्यवस्था में सुधार की तरफ कोई काम नहीं किया जाता. बिचौलियों की बन आई है..वर्ककल्चर बना नहीं. काम के अवसरों की कमी है. जरूरत है. गाँव के उद्योगों को जीवित करने जरूरत है. महात्मा गाँधी इस तरफ जोर देते थे, पर हम भूल गए.नहीं तो आज तक सौ फीसद ग्रामीण अपने पैरों पर खड़े होते .वर्तमान नीतियाँ उन्हें मोहताज बना रही हैं वे मदद कम कर रही हैं. अब जब तक गरीब अपने पैरो पर खड़ा होने की  तरफ कदम नहीं बढ़ाते, और सरकार इस तरफ उनकी मददगार नहीं बनती.. मेहनतकश ये वर्ग  सस्ते अन्न के लिए सरकार का  मोहताज बने रहेगा..! हाँ पर एक मजबूत वोट बैंक वो बने रहेंगे..!                                       

शनिवार, 24 अगस्त 2013

तितली और मकड़े की कहानी




 जब मैं कलइन फूलों की फोटो ले रहा था तभी मकड़े के बिछाये जाल में एक तितली आ फंसी, वो जाले से निकलने रह-रह कर फड़फड़ा रही थी, मकड़ा छिपा था उसके और शिथिल होने का इंतजार कर रहा था, मैंने महीन जाल से संघर्षरत तितली की फोटो ली फिर पर्यावरण में तितली की ज्यादा उपयोगिता मान मकड़े के जाल से आजाद कर दिया.



मकड़े ने जाल जहाँ बुना वहां फूल थे, वो जानता था, यहाँ अब तितली आयेगी.



एक बात और..मकड़े ने वहां फुले इन फूलों तक पहुँचने की उस राह पर जाल बुना था,जहाँ करीबी अन्य पौधे के कारण तितली को संकरी राह से उड़के फूलों तक पहुँचाना था. याने वो कम जाल से ये लाभ चाहता था. कुछ देर बाद मकड़े ने मकड़े ने क्षतिग्रत जाल को दुरुस्त कर लिया और फिर घाट लगा कर बैठ गया किसी तितली के लिए...





[समाज में न जाने कितने मकड़े हैं, जो तितली की राह में जाल बिछाए हैं..!]

बुधवार, 21 अगस्त 2013

कोयला खदान आवंटन की फ़ाइल् कहाँ गईं


''जिन्दगी ख़त्म हो जाती है, कोयला मजदूरों की खदानों में,
तुम को शर्म नहीं आती, अरबों के घपले की फाईल गायब कराने में..!!
कहते हैं दिल्ली में आप बहुत व्यस्त रहते हो, फिर भी न जाने कैसे
समय निकाल लेते हो, 'बड़े-बड़ों' को इन घपलों से बचाने में..!!

(फोटो गूगल से]