रविवार, 28 दिसंबर 2014

आयुर्वेद औषधि और आस्था




''पेड़ पर किसी परजीवी की तरह हडजोड़ के बेलें लिपटी दिखीं,नीचे छोटा सा मन्दिर, बिलासपुर से खोंद्रा जंगल जाते हुए हमारी 'सोशल मीडिया' टीम एनटीपीसी सीपत के पहले गाँव पंधी में 'नई- दुनियां' के फोटो जनर्लिस्ट जितेन्द्र रात्रे को लेने रुकी, मेरी नजर सड़क के किनारे इस पर पड़ी..!
करीब बैठी बूढीमाँ ने बताया,,हड्डी जोड़ने और घाव भरने के लिए ये परम्परागत ये औषधि है,,दूर दूर से ग्रामीण यहाँ जरूरत के लिए आते हैं,, इसे तोड़ने के पहले नीचे बने मदिंर में नारियल चढ़ते और पूजा करते है,,उनका मानना है औषधि के पर आस्था से उसका गुण और बढ़ जाता है साथ ही वो जो उसे तोड़ कर क्षति पहुंचाते हैं ये उसके प्रति कृतज्ञता भी इस माध्यम से प्रकट करते है..! ये पेड़ और उस पर चढ़ी  हडजोड  की बेल बरसों पुरानी है ,,काफी  दूर गाँव के लोग यहाँ जरूरत पर पहुँचते है..

धन्य है ये आस्था जिसमें इलाज के कोई व्यसायिकता नहीं बस श्रद्धा है ,,! ,

कोई टिप्पणी नहीं: