मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

सुंदर फूलों की बहार आई ..












नए साल का स्वागत,गुलाब और गेंदे की बगिया में ..
फूल अपनी रंगत-रूप महक से मनमोह लेते हैं..फूलों की ये बगिया है, मित्र सतीश और हरीश शाह की,बिलासपुर से कोई आठ किमी दूर,जन्नत का नजरा है इन दिनों यहाँ,कल मैं अपने दोस्त नवभारत के पूर्व सम्पादक बजरंग केडिया और यूके दूबे जी के साथ यहाँ पंहुचा.साल को विदा करने.फूलों के प्रति शाह परिवार के इस शौक और अनुराग को सलाम, हर गुलाब का नाम याद है उनको.

.दिसम्बर के अंतिम दिन इस बगिया में आम में बौर आ गया थे,रूद्राक्ष में फल,ब्राह्मी बूटी हरी भरी थी,कपूर ,तेजपत्र,कृष्णवट,सिन्दूर,सेहरा, शहतूत, गुडमार न जाने क्या क्या उन्होंने जमा किया है अपनी बगिया में ..!

सोमवार, 16 दिसंबर 2013

लोहे को पीट कर आकार देती नारी







नारी,नर से आगे..वो गर्म लोहे को घन से पीट देती आकार..

मैंने नारी का वो रूप देखा जो नर से हुनर और ताकत में अधिक था, अपने दोस्तों के साथ में जा रहा था कि, गाँव गनियारी में यायावरी लोहारों को कृषि औजार तपते लोहे से बनते देखा. गर्म लोहा ठंडा न हो इसलिए उसपर एक घन पुरुष के दो दूजा नारी का मशीनी गति से पड़ता, भारी लोहे के घन को जब वो गति से चलती तो गर्म लोहा आकार लेता..!.

मैं इन यायावरो के काबिलों को बरसों से जानता हूँ, पहले ये चितौरगढ़ से धान कटाई की इन दिनों छतीसगढ़ पहुँचते थे इस बार सागर मप्र से आये थे.. वोट उनहोंने डाला था निशान उंगली पर था..पर क्या अपने को महाराणा प्रताप के वंशज बताने वाले और सामरिक हथियारों के बाद आज सरकार बनाने वाले यूँ ही भटकते रहेगे..!सारे दिन घन चलके औजार बेचने वाले ये मेहनतकश कबीला रात जब मैं वापस लौटा तो कड़ाके की सर्दी में सड़क से कुछ हट के दीवार के साथ चंद कपड़ो में बच्चो के साथ सोया था..!!

    ये स्प्रिग पट्टे को या सब्बल के टुकड़े को कोयले की आग से गर्म कर पीट-पीट के खेती के परम्परागत ओजार बनाते हैं..दो दशक पहले ये राजस्थान से छोटी और सुंदर बैलगाडियो से आते थे पर इस बार उन्होंने इसका उपयोंग नहीं किया था.जब खुद को लाले हो तो फिर बैलों का चारा कहाँ से दें . छोटे बच्चे भी साथ में मीलों दूर अंतहीन यात्रा..लोहे को पीट-पीट कर लोहे सी जिन्दगी,,बच्चे साथ भट्टी का पंखा चलते,निर्मित समान का मोल भाव करते हुए ये यायावरी महिलाये ये भी बताती है कि, उनके बनाये सामान  में ऐसा पानी चढ़ाया गया है कि वह  बाजार में मिलने वाले औजार से ये अधिक टिकाऊ है ,,!

शनिवार, 14 दिसंबर 2013

धान के समर्थन मूल्य पर राजनीति



छतीसगढ़ में कोई किसान नेता नजर नहीं आता पर इस अंचल के धान उत्पादक किसान को कदाचित इसकी दरकार भी नहीं, ये काम राजनीतिक दल ही वोट बैंक साधने के लिए पूरा के रहे है..दिसम्बर में इन दिनों देर से उत्पादन देने वाली धान की फसल खेतों से खलिहानों तक पहुंच चुकी है,खेतिहर परिवार मिसाई करने में जुटे हैं,ताकि समिति में ले जाके समर्थन मूल्य पर बोनस सहित धान को बेचा जाए.

इस बार विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने धान का मूल्य 2100 प्रति क्विंटल करने का वादा किया था और कांग्रेस ने दो हज़ार रूपये प्रति क्विंटल का वादा किया था.चुनाव बाद डा.रमन सिंह ने पहले दिन ही घोषित किया धान पर खरीदी के बाद तीन सौ रूपये प्रति क्विंटल किसानो की तत्काल बोनस दिया जायेगा..! इतना ही नहीं शपथ लेने के बाद उन्होंने प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिख कर धान का समर्थन मूल्य बढ़ा कर 2100 प्रति क्विंटल करने के लिए कहा है.


डा. रमन सिंह ने एक तीर से दो निशाने साधे हैं, पहला तो उन्होंने राज्य के बहुसंख्यक धान उत्पादक किसानों को ये सन्देश दे दिया है की वो और उनका दल किसानों का हितचिन्तक है और दूसरा यदि आसन्न लोकसभा चुनाव में यदि धान का समर्थन मूल्य नहीं बढ़ा तो भाजपा के पास ज्वलंत मुद्दा हाथ में रहेगा. अब गेंदे केंद्रीय कृषि मंत्री चरण दास महत के पाले में है की वो छत्तीसगढ़ के किसानों के लिए केंद्र में कितना जोर लगा पाते हैं.यदि वे सफल हुए तो भी पहल रमन सिंह ने की है ये श्रेय उनको ही मिलेगा और नहीं सफल हुए तो कांग्रेस को इसका खामियाजा भुगतान होगा..!

हर वास्तु के लागत पर आधारित मूल्य निर्माता तय करता है, पर किसान के साथ ये नहीं,वो तो उत्पादन करता है मूल्य सरकार तय करती है,वो भी राजनीति के मद्देनजर.क्या किसान वोट बैंक बने रहेगे और उनका भाग्य रजनीति कारकों पर आश्रित रहेगा,या  कभी इस राज्य से कोई किसान नेता उभरेगा ..फ़िलहाल ये लगता तो नहीं है..!

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

पत्ते फूल से सुंदर


''मेरा छोटे भाई प्रवेश और बहू कीर्ति चड्ढा इन दिनों खुश हैं, उनकी लान में लगे,'पनचीटिया' का सारे साल हरा या रूखे-सूखे पेड़ पर इन दिनों जो जम कर बहार आई है, पखवाड़े तक ये पेड़ इसी तरह श्वेत बना रहेगा, जैसे उसपर बर्फबारी हुई है,या किसी भद्र व्यक्ति के पूरे बाल एक साथ सफ़ेद हो गए हों...फिर इसके पत्ते रंग बदल कर हरे हो जायेगे ..!

किसी शौक़ीन के लिए के लक्ष्य तक पहुँचाना बड़ा सुखद होता है..ये पेड़ वो सुख अपने लगावनहार को दे राह है..दो पेड़ और भी लगा रखे है जिन पर अगले दो तीन साल  में बहार आएगी और तब लगेगा दिसम्बर ने यहाँ पेड़ों पर स्नोफाल हो गया है..वैसे ये एक पेड़ ही इसका एहसास दिलाने की लिए काफी है..

बुधवार, 11 दिसंबर 2013

गुल बकावली के फूल



गुल बकावली का फूल आज से पचास साल पहले अमरकंटक में माई की बगिया के दलदल में खिलता था, तब यहाँ इतना दलदल होता कि, यदि लकड़ी उसमें डाल दे तो खीच कर निकलना कठिन होता था.तब में अपने पिताजी चमनलाल चड्ढा जी के साथ जब भी अमरकंटक जाता तो माई की बगिया में इसके फूलों को देखता और किसी नई चीज को देखने की सुखद अनुभूति होती..

   आज वातावरण में तब्दीली के कारण माई की बगिया  में गर्मी  में थोड़ी से जगह में यहाँ दलदल बचा रहता है,मगर गुल बकावली  के फूल आज भी वहां खिलते है,पर उतने नहीं बहुत कम. नेत्र रोगों के लिए अचूक ये औषधीय फूल अमरकंटक के अलावा अब मैदानी इलाके में भी  गया है, और ये मेरी बिलासपुर में गाँव मंगला की बगिया के सुगन्धित फूलों में एक है..!मैंने से कुछ सीपेज वाले क्षेत्र में लगाया है जहाँ गोबर खाद की भरमार है..!

 मेरे पास इसके काफी पेड़ हो गये है, ये बरसात से ठंड तक खूब खिलते हैं, दस साल पहले  मैं कसौली [हिमांचल प्रदेश] दैनिक भास्कर की एडिटर कांफ्रेंस में शिरकत करने गया,तब बैकुंठ पेलेस हाटल से नर्गिस के कंद के आया और उसे गुल-बकावली की वो जड़ें भेजा जो उगती है..!

नर्गिस के कंद मैं अमरकंटक ले कर गया और बाबा कल्याण दास को आश्रम की वाटिका में उगने दिया पर शायद वातावरण की वजह न तो नर्गिस अमरकंटक में नर्गिस उगी न ही मेरे बिलासपुर के फार्म में..गुल बकावली बैकुंठ पेलेस में उगी या नहीं ये मुझे पता नहीं लगा..यदि उगी होगी तो वो गुलादते नुमा कवर में सफेद सुगन्धित फूल निरंतर देती होगी ..!

मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

क्या कांग्रेस लोकसभा चुनाव बाद विपक्ष में बैठेगी ...


चार राज्यों में कांग्रेस की पराजय के बाद अब सवाल उठ खड़ा है की क्या लोकसभा चुनाव बाद कांग्रेस को विपक्ष में बैठना होगा ये सवाल उठ खड़ा हुआ है..ये सवाल उठाना लाजिमी है,सोनिया जी बड़ी मुश्किल से हिंदी में भाषण कर पाती है,मनमोहन सिंह को चुनाव लड़ने का अनुभव नहीं और राहुल में अनुभव की कमी है.कुछ रही सही कसर दामाद जी ने पूरी कर रखी है, हां प्रियंका में कुछ संभवना दिखती है और दिवंगत इंदिरा जी की छवि भी..!

कांग्रेस भीतरघात हुआ है ये कह कर बच नहीं सकती,हर पार्टी में भितरघातियों की कमी नहीं होती जो हारने के बाद ही उजागर होती है,कांग्रेस में वंशवाद आखिर कब तक,ये सवाल भी अब खड़ा हो गया है,पार्टी के मणिशंकर अय्यर ने आज मुंह खोला है और मनमोहन सिंह की वापसी की बात कही है,और भी सामने आ सकते हैं.


जिस तरह 'आम' ने जमींन से जुड़े प्रत्याशी चयन किये के कांग्रेस ऐसा कर सकती है,सोनियाजी अन्ना के जनलोकपाल ले बिल को न ला सकीं,मनमोहन महगाई पर लगाम न लगा पाए, राहुल का प्रत्यशी चयन का फार्मूला जमीन पर आने के पहले धराशाई हो गया.
कांग्रेस केन्द्रीय स्तर पर संगठन में दूसरी पंक्ति खड़ी न कर सकी है,वो शक्ति का केंद्रीय करण करती गई,पार्टी में लोकतंत्र की हत्या होती गई,प्रदेश के इन चुनाव में मुख्यमंत्री कौन होगा ये भी घोषित नहीं कर कसी.बिना सेनापति घोषित चुनाव लड़ा गया,नीति शास्त्र में लिखा गया है अगर समर में सेनापति नहीं तो जिस भांति चींटियों की पंक्ति तूफान में बिखर जाती है उस प्रकार समर में सेना..आखिर क्या मज़बूरी थी की मुख्यमंत्री का नाम घोषित किये बिना चुनाव समर में उतारने की विवशता बनी..!


लोक सभा चुनाव में अधिक वक्त नहीं, जो करना है आज कर ले कल कांग्रेस के पास वक्त नहीं होगा, पार्टी का नेटवर्क कमजोर है,अच्छे वक्ता नहीं,आखिर कब तक विरासत की पूंजी के आसरे ये सबसे पुरानी पार्टी चलेगी..आपनी पूंजी जुटानी होगी..पर कैसे ये सब होगा ये पार्टी को तय करना है..कोई बड़ी बात नहीं की कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व में बड़ी तब्दीली हो जाये..!