सोमवार, 16 दिसंबर 2013

लोहे को पीट कर आकार देती नारी







नारी,नर से आगे..वो गर्म लोहे को घन से पीट देती आकार..

मैंने नारी का वो रूप देखा जो नर से हुनर और ताकत में अधिक था, अपने दोस्तों के साथ में जा रहा था कि, गाँव गनियारी में यायावरी लोहारों को कृषि औजार तपते लोहे से बनते देखा. गर्म लोहा ठंडा न हो इसलिए उसपर एक घन पुरुष के दो दूजा नारी का मशीनी गति से पड़ता, भारी लोहे के घन को जब वो गति से चलती तो गर्म लोहा आकार लेता..!.

मैं इन यायावरो के काबिलों को बरसों से जानता हूँ, पहले ये चितौरगढ़ से धान कटाई की इन दिनों छतीसगढ़ पहुँचते थे इस बार सागर मप्र से आये थे.. वोट उनहोंने डाला था निशान उंगली पर था..पर क्या अपने को महाराणा प्रताप के वंशज बताने वाले और सामरिक हथियारों के बाद आज सरकार बनाने वाले यूँ ही भटकते रहेगे..!सारे दिन घन चलके औजार बेचने वाले ये मेहनतकश कबीला रात जब मैं वापस लौटा तो कड़ाके की सर्दी में सड़क से कुछ हट के दीवार के साथ चंद कपड़ो में बच्चो के साथ सोया था..!!

    ये स्प्रिग पट्टे को या सब्बल के टुकड़े को कोयले की आग से गर्म कर पीट-पीट के खेती के परम्परागत ओजार बनाते हैं..दो दशक पहले ये राजस्थान से छोटी और सुंदर बैलगाडियो से आते थे पर इस बार उन्होंने इसका उपयोंग नहीं किया था.जब खुद को लाले हो तो फिर बैलों का चारा कहाँ से दें . छोटे बच्चे भी साथ में मीलों दूर अंतहीन यात्रा..लोहे को पीट-पीट कर लोहे सी जिन्दगी,,बच्चे साथ भट्टी का पंखा चलते,निर्मित समान का मोल भाव करते हुए ये यायावरी महिलाये ये भी बताती है कि, उनके बनाये सामान  में ऐसा पानी चढ़ाया गया है कि वह  बाजार में मिलने वाले औजार से ये अधिक टिकाऊ है ,,!

1 टिप्पणी:

rajesh dua ने कहा…

कौन कहता है , नारी कमजोर होती है ,पुरुष के मुकाबले ......