बुधवार, 6 नवंबर 2013

'पुष्प की अभिलाषा' का ये हश्र

ख्यतिलब्ध कवि माखनलाल चतुर्वेदी जब बिलासपुर [अब छतीसगढ़ राज्य]में स्वधीनता के यात्रा के दौरान जेल में थे तब उन्होंने कविता ‘लिखी  'पुष्प की अभिलाषा,ये कविता बाद उसकी स्मृति में जिला जेल में और फिर कम्पनी गार्डन में लिखवा दी गई, पर जेल के करीब फूलों के बाजार के सामने  ‘पुष्प’ का जो हश्र है वो फोटो में दिखाई दे रहा है.. उनकी कविता है-
''चाह नहीं मैं सुर बाला के,गहनों में गुंथा जाऊं,
चाह नहीं प्रेमी माला में, बिंध प्यारी को ललचाऊ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर, हे हरि डाला जाऊं,
चाह नहीं देवों के सिर पर, चढ़ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ा लेना बनमाली,उस पथ में देना तुम फेंक,
मा.. भूमि पर शीश चढ़ाने,जिस पथ जावें वीर अनेक..!


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