रविवार, 19 मई 2013

बंजर जमीं पर अब कोयल कुहु -कुहु बोलती है

बजरंग केडिया ,गाँव भरारी में अपने आम के बगीचे में ..
हरे –भरे 43 एकड़ के बगीचे की देखभाल में उम्र के 74 वसंत देख चुके बजरंग केडिया को उनकी ऊर्जा और लगन से करते देख हैरत होती है. इस बगीचे में 17 सौ आम के पेड़ों के अलावा चीकू,मुनगा अमरूद,खम्हार और बांस,नीलगिरी के पेड़ है. मई माह के इनदिनों आम के पेड़ों से ‘मीठा मेवा’ टूट रहा है. बंजर भूमि पर जो सपना उन्होंने 18 साल पहले देखा था वो साकार हो चुका है.

आम के फलों के साथ बगीचे में आई एक नन्ही परी 
मेरा और केडियाजी का नाता करीब पैंतीस साल पुराना है. मैं अपने पिताजी श्री चमनलाल चड्ढा के साथ दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित कृषि प्रदर्शनी में शिरकत करने गया था. वहां केडियाजी मिले वे तब लोकस्वर से जुड़े थे. बाद नव-भारत बिलासपुर में हमने साथ करीब नौ बरस काम या.कालान्तर वो ‘नव-भारत’ के सम्पादक बने और मैं ‘दैनिक-भास्कर’ का संपादक. दोनों को निष्ठा अपने-अपने संस्थान के साथ थी पर हमारी मैत्री बनी रही. सही अर्थों में केडियाजी और मैं  रेल की दो पांतो के समान हैं,जो साथ-साथ चलती हैं, पर मिलती कभी नहीं, विचारों के मामले में ये दशा आज भी बरकरार  है.पर मैं आम उत्पादन में उनकी मेहनत, लगन और दूरदर्शिता का लोहा मानता हूं.
आम तोड़ने के एक पुरानी तकनीक आज भी बरक़रार है.
प्रख्यात कृषि विज्ञानी डा.रामलाल कश्यप ने सबसे पहले ये जाना कि, छतीसगढ़ के बिलासपुर की आबो-हवा आम उत्पादन के माकूल है. उन्होंने केडियाजी को प्रेरित किया.और अपनी फिर चुन-चुन के इस भूमि में दशहरी,लंगड़ा,हाफूजा [अलफांसो] आम्रपाली जैसे आम के पौधे गाँव भरारी के इस बगीचे में लगाये. बगीचे की फेंसिंग कर बंदरों से बचाव के लिए कुत्ते पाले गए. आज इस बगीचे को केडियाजी के माता स्वर्गीय ‘जड़िया’ के नाम से जाना जाता है. एक साल में तेरह लाख की रिकार्ड आय ये बगीचा दे चुका है.

टूट कर आए आम पेकिंग के लिए 
यहाँ के आबो-हवा में आम की फसल यूपी से एक माह पहले मीठी रसली हो जाती है. इसलिए मुनाफा भी चौखा होता है. उलटे बांस बरेली को की भांति इन दिनों बिलासपुर का आम बनारस भी निर्यात होता है. इतनी पैदावार लेनी है, तो पेड़ों की सेवा भी बच्चों के समान करनी होती है .इसके लिए केंचुआ खाद का बड़े पैमाने में बगीचे में ही उत्पादन होता है. अवधारणा है कि संगीत का असर पेड़ों पर होता है, इसलिए फार्म हॉउस में इसका इंतजाम किया गया है. पेड़ों पर कीटनाशक का छिड़काव,के अलावा सिंचाई के लिए तीन पंप और पाईप का पूरा जाल हर तरह बिछा है. इन सब कामों में दो दर्जन मजदूरों को रोजगार मिला है.
बिलासपुर से चौबीस किलोमीटर दूर इस बगीचे की सफलता के बाद इस किसानों ने प्रेरित हो कर आम के बगीचे लगा लिए हैं. दिसम्बर माह में आम के बौर आने लगते हैं और जून के पहले सप्ताह तक आम की फसल पैक कर मिनी ट्रक से खेप में बाज़ार पहुँच जाती है. बौर और आम तोड़ाई के बीच वसंत में तीन-चार बार आंधी-बारिश से अमियाँ टूट कर बिखर जाती है. केडियाजी कहते हैं ,आम के पेड़ को ये भी कुदरत की देन है,अगर ये न हो तो फल के भार से नमन करती डालियाँ ही बाद में टूट कर बिखर जाएगी.गिरी इन अमियों को बाज़ार में बेच दिया जाता है या अमचूर बना लिया जाता है.इसे कहते हैं- 'आम के आम अमचूर के दाम'.
आम को फलों का राजा माना जाता है. पर अलफांसो तो आमों में राजा है. बिलासपुर का अल्फ़ान्सो रत्नागिरी के अल्फ़ान्सो से कम नहीं ,मेरे समधिन आशा महाडिक मेरे लिए मुम्बई से अल्फ़ान्सो की पेटी लाईं तो हमने या मिलन कर देखा-परखा..ये बिलासपुर की आबोहवा में  हर साल फलने वाला आम के रूप में चिन्हित किया गया है. कृषि विभाग को इन पेड़ों से और पेड़ तैयार करना चाहिए. इन्सान की मेहनत बंजरभूमि में फल खिला सकती है ये आम्र-वाटिका इसकी मिसाल है.कभी जहाँ वीरना था. आज वहां कोयल की कुहु -कुहु  सुनाई देती है.जबकि इसके इर्द-गिर्द की भूमि अभी बंजर पड़ी है. ये बगीचा अन्य किसानों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है,किसान यहाँ पहुँच कर आम पौधे लगाने की जानकारी और केंचुआ खाद बनाने के तरीके  से परिचित होते है.
कुछ और -
इस आम के बगीचे के पश्चिम में अलफांसो के करीब दस पेड़ ऐसे हैं जो छतीसगढ़ में आम की पैदावार में  अहम  भूमिका निभा सकते हैं .में इस बगीचे में शुरू से जाता रहा हूँ. आम की फसल में साल-दर साल आफ सीजन आता है ,याने आम कम पैदावार होता है,पर इन पेड़ों में ये नहीं .ये हर साल झूम के फलते हैं. याने उनको यहाँ का मौसम अनुकूल मिला है अथवा वे  इस वातावरण में ढल गये हैं . बस इसको 'मदर' पेड़ मान कर गुटी या अन्य पद्धति से नए पेड़ बड़ी संख्या में तैयार करते जाना है , अब तक ये काम शुरू नहीं हो पाया है.
                                     


3 टिप्‍पणियां:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

वाह इनकी मेहनत को सलाम

Rahul Singh ने कहा…

रसीला, अंतिम वाक्‍य ने और भी मिठास घोल दी.

बेनामी ने कहा…

Great Uncle keep it up.................God helps those who help themselves....People will get inspired by these good deeds. :)