मंगलवार, 14 मई 2013

अखबार मार्केटिंग , कमउम्र के किशोर ..

आज दोपहर दिल पसीज गया, दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी, मैंने सोचा बूढ़ा डाकिया आया होगा, पर अख़बार लिए और पीठ में पिठ्ठू; एक चौदह-पन्द्रह साल का लड़का धूप में तपा खड़ा था, उसने मुझे बताया कि उनका अख़बार नई स्कीम दे रहा है, मैंने उसे अंदर बुला कर, कृष्णाजी से रसना शर्बत लाने कहा,.. वो बता रहा था कि, ग्राहक बने तो वो अभी क्या देगा, इनामी योजना में आगे क्या है, इस प्रतिष्ठित अख़बार से मैं परिचित था. मैंने संपादक का नाम पूछा तो उसे नहीं पता था. पिठ्ठू में नए ग्राहकों के देने गिफ्ट लदे थे, जिसे उस किशोर ने अंत तक नहीं उतरा उम्र पूछे जाने पर वो सतर्क हो गया.., यदि अख़बार ने पढ़ने योग्य सामग्री है, तो फिर स्कीम किसी की बाजारू प्रोडक्ट की भांति क्या जरूरत.? और फिर सस्ते किशोर मजदूरों को धूप में पीठ पर स्कीम का सामान लादकर रवाना करना,क्या ये उचित है ..? 

किस मोड़ पर आ गई है अख़बार के लिए मार्केटिग.. अख़बार में सस्ते 'मजदूर' न रख योग्य पत्रकारों को जुटाओ ,पाठक आपका अख़बार खुद खोजगा ..,अगर समाचारों में दम नहीं,तो कब तक गिफ्ट और इनामी योजना के दम पर अख़बार बेचोगे .? फिर जिस बाल मजदूरी की खिलाफत की जानी चाहिए उस तबके को धूप में मार्केटिग के किया भेजा जा रहा है. ..बलिहारी हो आपकी ..!

[फोटो गूगल से साभार ]

1 टिप्पणी:

Rahul Singh ने कहा…

आपका अखबार, आपके द्वार.