गुरुवार, 23 मई 2013

एक अनजाना पर पहचाना पेड़,जो यादों में बसा है



हम विरोधाभास में जी रहे हैं, साल में एक दिन पर्यावरण बचाने और पेड़ लगाने की बात करते हैं पर फिर पेड़ों को भूल जाते हैं. मुझे अपने बचपन का एक पेड़ याद रहा है, शरदऋतू में इसपर रजनीगंधा से फूल झूम के खिलते और सुबह ये कुछ पीलापन लिए ये फूल पेड़ के नीचे झरे मिलते, करीब तीन इंच के खोखला डंठल जो फूल का हिस्सा और उससे जुड़ी पांच  पंखुड़ी सुबह इन फूलों को हम सब चुना करते, फूल पेड़ से जुदा होने के बाद भी मीठी खुशबू फैलाते होते. अंग्रेजों के लगाए ये दरख्त कम ही बचे हैं.
मैं आज तक इस पेड़ का सही नाम नहीं जान सका, साहित्य में इसे ‘आकाशनील/नीम’,वन अधिकारी हेमंत पांडे इस ‘अगस्त’ का और बिलासपुर के जू के करीब वनविभाग की नर्सरी में इस ‘कार्क’ बताया जाता है. नाम में क्या रखा है, इस पेड़ के गुणों पर मैं तो फ़िदा हूं .दशहरे से होली तक ये पेड़ राहगीर को मुग्ध कर सकने की क्षमता जो रखता है. शरद की चांदनी रातों में इस पेड़ की रंगत पूरे शबाब पर रहती है. दूर तक सुगंध फैली रहती है, रेलवे के स्टेडियम के पास दो पेड़ और कुछ और पेड़ बिलासपुर में शेष हैं. इसके बीज ये फल  नहीं होते .जड़ों के पास ‘पीके’ फूटते हैं और अलग लगाने पर चार-पांच साल में फूल आने के साथ पेड़ बड़ा होता जाता है.
मैंने बड़ी कोशिश की इस पेड़ के वंशवृद्धि के लिए, वनाधिकारी एसडी बड्गैया ने रेंजर नाथ को भी लगाया पर कोई कामयाबी न मिली इस बीते साल बारिश में वनविभाग की कानन पेंडारी स्थित नर्सरी गया था. बजरंग केडियाजी साथ थे, कुछ सागौन के पेड़ लिए तभी नर्सरी में तैयार इन पौधों पर पड़ी तो हैरत में आ गया ,जिस पेड़ के पौधों का मैं न तैयार करा सका वे यहाँ सैकड़ों में थे. दर नही कोई खास नही-दस रूपये का एक पौधा पता चला यहाँ कार्यरत श्री शर्मा और श्री जायसवाल ने निजी रूचि लेते हुए इनको तैयार कराया है. वहां कम करने वालों ने इसका नाम ‘कार्क’ बताया.हमने कुछ पेड़ लिए जो बड़े हो रहे हैं.
बिलासपुर हरी-भरी नगरी रही है, यहाँ लगाये नीम के पेड़ का दातून तोड़ने वाले को कलेक्टर आर.पी मंडल का झापड़ खाना पड़ा था. पर आज दशा बदल गई है.नीम के पेड़ को बचाने युवा नदी के किनारे रात दिन बैठे हैं और प्रशासन इसे काटने के लिए तुला है..ये युवक पर्यावरण से अनुराग रखते हैं.इस नई पीढ़ी को कल की फ़िक्र है. जब मैंने इनको इस सुगन्धित फूलों के पेड़ के विषय में बताया तो वे नर्सरी पहुंचे और इस विप्लुप्त हो रहे पेड़ के बड़े पैमाने में इस मानसून में लगाये जाने की संभावना उदित हो गई हैं. आप भी अपने इलाके में विलुप्त हो रहे पेड़ों को जरूर लगाइए.
 [इस पेड़ का सही नाम मुझे मिला गया है ये है-आकाशनीम [milingtonia hortensis] सटीक जानकारी देने के लिए त्रिवेदी निखलेश जी का आभार ] ये चित्र बाद 7 नवंबर 2013 को जोड़ा गया.

2 टिप्‍पणियां:

P.N. Subramanian ने कहा…

Millingtonia Hortensis.एक पेड हमने भी देखा था कोयम्बतूर में. ऊंचा था और संध्या समय फूलों से लदा हुआ। यहाँ कुछ जानकारी मिल रही है.
http://giftingtrees.blogspot.in/2010/11/fragranceon-ground.html

http://www.cambodia-picturetour.com/angkear-bos-white-fragrant-flower-in-cambodia/

Rahul Singh ने कहा…

नीम, बबूल और उसका दातौन करने वाले, अल्‍पसंख्‍यक ही हैं.