बुधवार, 22 मई 2013

मरती नदी की पाती पुत्रों के नाम




तिल-तिल,पल-पल कर मर रही मैं अरपा नदी हूँ. पेंड्रा का इलाका मेरा उद्गम स्थली है फिर  147 किमी का सफर करते हुए शिवनाथ नदी में मिल जाती हूँ. छतीसगढ़ की न्यायधानी बिलासपुर मेरे तट के दोनों तरफ बसी है. मेरे को नया जीवन देने अविभजित मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री वीरेन्द्र सकलेचा और फिर श्यामाचरण शुक्ल ने दो बार भैन्साझार परियोजना का शिलान्यास किया पर परिणाम शून्य रहा. आज में गर्मी के दिन में रेगिस्तान सी तपती और  सूखी नज़र आ रही हूँ .
पांच दशक पहले तटीय गाँव मंगला के अमरूद और सरकारी बगीचे के आम झुक-झुक कर मुझे नमन करते. गर्मी जब बढ़ने लगाती और जल प्रवाह कम होने लगता, तब किसान रेत में लौकी,तरोई,करेला,बरबटी की फसल लेते, मेरी रेत में लगी कोचाई [अरबी] दिल्ली में पसंद की जाती .शकरकंद की बेलें मेरी रेत पर बिछी रहती ,ककड़ी रात तेजी से बढ़ती तब रखवाली कर रहे किसान को उसके सूखे पत्तों में सरकने की आवाज आती. पर ये आज गुजरे सपने की बात हैं. सूरज के गर्मी से मेरी रेत जल रही है. पानी तो नाम मात्र का नहीं,धोबी बाहर कपड़े धो कर मेरी रेत में रोज सुखाते हैं .
चार दशक पहले सरकारी बगीचे और दूसरे किनारे पर बसे गाँव मंगला में कालिदास के आम के बगीचे में रहट से पानी सिंचाई के लिए निकला जाता. गले माँ घंटी बंधे सफ़ेद ऊँचे बैल कुएं के इर्द-गिर्द घूमते और पानी लगातार उलीचा जाता. बैल की मधुर घंटियों के स्वर सुबह मंदिर में बजने वाली पूजा के घंटी से मिलते लगते. दस बारह फिट गहरे कुओं से किसानों को सिंचाई के लिए पानी मिल जाता. आज किनारे की भूमि के सीने में सुराख कर दो-तीन सौ फिट से पानी निकला जा रहा है. जंगल कटाई के साथ-साथ भूजल रसातल में जा रहा है.जंगल का वितान झीना हो है और पानी के स्रोत सूखते जा रहे है. किसी को इसकी चिंता नहीं है.

मैं माँ हूँ, दोनों किनारों पर बसी अपनी संतान की प्यास बुझना मेरी ममता है ,पेंड्रा के पास शक्तिशाली पंप लगा दिए गए हैं मेरा उदगम स्रोत सूख जायेगा ये सोचा नहीं गया. एनीकट भी बने, पर हद तो न्यायधानी में पार हो गई जहाँ रेत के कारोबारी बेतरतीब रेत उत्खनन करते रहे हैं. न जाने कितने पंप मेरे गर्भ का जल उलीचने में लगे हैं. वो दिन गये जब मेरे बेटे,प्राण चड्डा,उमेश मिश्रा,किशन गुलहरे,श्याम गुलहरे ,अरविन्द दुआ,सागर,मोहन ,प्रताप यादव  अगस्त माह में पुराने पुल से बहते पानी में छलांग लगते थे और जंगल से लकड़ी बहा कर लाती थी.
दस साल पहले कलेक्टर आरपी मंडल ने शहरी इलाके में जन भागीदारी से बहाव को रोका.जफ़र अली,अनिल तिवारी, नथमल शर्मा,प्रवीण शुक्ल. सूर्यकान्त चतुर्वेदी ,सुशीलपाठक.सुनील गुप्ता,अरुणा,सत्यभामा,राजेश दुआ,सोमनाथ यादव,अंजना मुलकुल्वार.वाणी राव,सहित पूरे नगर का का स्नेह मुझे मिला. मगर जिस योजना का श्रीगणेश उन्होंने किया सरकारी हाथों में पढ़ने के बाद इस ठहरे पानी में जलकुम्भी का राज है, मेरी जमीन ‘सिम्स’ ने हथिया  ली अब इसके पीछे सड़क बनने और जमीन हड़प ली गई है. वे जानते हैं  मरती नदी है क्या कर लेगी. वे कदाचित भूल गये यही मुंबई के मीठी नदी के साथ हुआ था और जिसका प्रकोप मुंबई अब हर साल मानसून के साथ झेलती है. नगरनिगम ने हद कर रखी है शहर का गन्दला पानी के मुझ में डाला जा रहा है. कचरा भरा है, इसकी कभी सफाई नहीं की जाती.

सुना है, कोई सौ साल पुरानी योजना को फिर जीवित किया जायेगा.मुझे 'टेम्स नदी' सा बनाने की बात की जा रही है.606.43 करोड़ रूपये का अनुमोदन हो चुका है. बातें बड़ी-बड़ी मेरी जल संग्रहण क्षमता से कहीं ज्यादा लग रहीं हैं ..न जाने कब पूरी होगी ये योजना, उसकी सफलता अफलता का हिसाब बाद में फिर कभी होगा. मरती नदी को एक बार देख जाओ, हमदर्दी के कुछ बोल, बोल जाओ कुछ सुकून  मिलेगा..!

                                                                                                        [ मैं हूँ ,बिलासपुर की ‘अरपा’
                                                                                                         जो देश की नदियों से अलग नहीं ]

2 टिप्‍पणियां:

Rahul Singh ने कहा…

दारुण, चिंताजनक. नदियों का और नदियों के लिए हमारा पानी भी मर रहा है शायद.

Unknown ने कहा…

कभी धोबी नदी में चादर धोते थे आज चादर बाहर धो कर नदी की तपती रेत में सूखते है.