बुधवार, 1 मई 2013

रमता जोगी,अजीत जोगी और मेरी यादें ..



अजीत जोगी सांसद थे और मैं दैनिक भास्कर में सम्पादक पर हमारे सम्बन्ध दोस्त तो नहीं साथी के बन गए. पहले-पहल अनिल टाह की वजह मैं जोगीजी के सम्पर्क में आया, जब उन्होने माँ दंतेश्वरी बस्तर से माँ महामाया[रतनपुर] तक की सड़क को पग-पग नापा था. इस पदयात्रा मैं और श्री राम गोपाल श्रीवास्तवजी भी तीन-चार बार राह में शामिल हुए. जब हम भिलाई में उनसे मिले तबतक निरंतर चलने के कारण उनके पैर में आलू सरीखे छाले पड़ चुके थे. इन दिनों तक मैं नवभारत बिलासपुर के लिए काम करता था. भिलाई के नवभारत प्रतिनिधि शक्ति प्रकाशजी से मैं मिला और ये जानकारी दी. ये उनका कार्यक्षेत्र था, उनने कहा- ‘आप आये हो तो ये खबर मेरी और से नवभारत में कवर क़र दो. बिलासपुर लौटने के पहले मैंने खबर रायपुर नवभारत प्रेस में दी और अगले दिन सचित्र प्रकाशित हो गई. 

अजीत जोगी जब बिलासपुर आते विपिन भाई मेहता के निवास में रुकते, वहीँ पत्रकार वार्ता होती,मैं भी वहां जाता,विपिन भाई के धर्मपत्नी सुधा बेन श्रीकृष्ण की पुजारिन हैं ,मैं उनको ‘मीरा बेन’ कहता तब उनका कोई भाई यहाँ न रहता रहा तो ये कमी मैंने पूरी की, हम भाई-बहन हो गए. उनकी सूमो में साथ घूमने जाते, अजीत जोगी और महेता परिवार, हम सब चितुरगढ़ की पहाड़ी पर देवी दर्शन करने भी गए.लम्बी चढ़ाई श्रीजोगी ने पहले पूरी की थी. ये वो काल था जब छतीसगढ़ राज्य का बनाना तय हो चुका था, जोगीजी से मेरी बात होती रहती.मैं मप्र वाइल्ड लाइफ बोर्ड का मेम्बर था.जोगीजी के साले साहब रत्नेशजी वनमंत्री बने, तब मेरी उनसे भी पहचान हो गई एक उन्होंने रानी दुर्गावती सेचुरी में हमें बुलाया और दो तीन दिन सेंचुरी दिखाई. वे बड़े नेक दिल इंसान थे.जिप्सी जब वे जंगल में चलाते तो घाट पर सिगरेट पिछली सीट पर बैठे गाँव वाले को दे देते वो भी दो कश खींच लेता .! आखिर वो शुभ घड़ी आई और छतीसगढ़ राज्य का निर्माण हो गया, राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बनाने का सौभाग्य श्री जोगी को मिला. अब वो व्यस्त थे और मै अपने काम में लग गया.फिर कम ही मुलाकात होती.

जोगीजी और अमरकंटक के कल्याण बाबा :-

अमरकंटक में कल्याण सेवा आश्रम के तपस्वी बाबा कल्याण दास और जोगी जी के मधुर सम्बन्ध रहे हैं .जोगीजी ने मुझे बताया कि जब वे शहडोल में कलेक्टर थे. कबीर चबूतरा के आसपास डकैती पड़ी एसपी के साथ वे भी अपने गृहक्षेत्र आ गए, एसपी विवेचना में लग गए. कलेक्टर साहब आयें हैं ये जान पटवारी भागा आया. बातचीत में पटवारी ने बताया, अमरकंटक में कोई तपस्वी बाबा घुनी जमाए हैं. विवेचना में देर हो रही थी, शाम हो गई तब तय हुआ की रात अमरकंटक में गुजारी जाये, मौसम बिगड़ रहा था, तेज बारिश के साथ ओले गिरने लगे जब अमरकंटक पहुंचे तो जीप की रौशनी में देखा [तब कलेक्टर को जीप मिलती थी] कोई साधू धुनी लगाये बैठा था, ओलों के मार से चेहरा बचाने उसने जटा सामने कर ली थी.अजीत जोगी ने आगे बताया- मैं सुबह उठा तो ये सोचा कि अगर तूफान ओले का बाद साधू वहाँ मिला तो उसे मुलाकात करूँगा. सुबह जब पहुंचा तो बुझी धुनी को बाबाजी फिर प्रज्ज्वलित करने की चेष्टा कर रहे थे. तब मैंने बाबाजी से निवेदन किया की अमरकंटक को आपकी जरूरत है, आप यहाँ रुकें. मैंने वांछित जमीन बाबाजी को देने का आवेदन ले कर उन्हें मौके पर ही भूमि आवंटित कर दी. जोगीजी की इस बात की पुष्टि मेरे पूछे जाने पर बाद में कल्याण बाबा ने की. 

राजनीति ऐसी की विरोधी के पैरों की जमीं निकल जाए और उसे पता भी न लगे ..!

उनकी इच्छाशक्ति का लोहा विरोधी भी मानते हैं ,मैं उनके राजनीतिक चातुर्य को बयां कर रहा हूँ, बात उन दिनों की है जब अजीतजोगी मुख्यमंत्री बन चुके थे पर विधायक बनाने चुनाव जीतना था.सबकी नजर लगी थी की जोगीजी किस सीट से उपचुनाव लड़ते हैं. मैं दैनिक भास्कर में सम्पादक था, हमें पता चला की मरवाही सीट भाजपा के विधायक रामदयाल उइके ने उनके लिए खाली कर दी है, पर जब ये समाचार प्रकाशित हुआ, तो भाजपा के नेताओं को यकीन न हुआ वे इसका खंडन के लिए पहुंचे, उनका पक्ष प्रकाशित भी कर दिया गया. फिर रामदयाल उइके की सुरक्षा कोई दूजा कारण बता बढ़ा दी गई, ये हमें अपनी खबर की पुष्टि लगी, [ताकि कोई भाजपा नेता उसे फिर वापस न ला सके और हर खबर इन जवानों से जोगीजी तक मिले,]अब एक बार फिर खबर छापी गई कि उइके जोगी के लिए सीट छोड़ चुके हैं.
इस खबर के बाद भी भाजपा के नेताओं को विश्वास न उइके उनका साथ छोड़ चुका है फिर दोपहर भाजपा के संगठन मंत्री रामप्रताप सिंह, अमर अग्रवाल, बेनी गुप्ता ने तय किया की पेंड्रारोड में उइके का निवास है वहां चलके वस्तुगत स्थिति से वाकिफ होते हैं. छतीसगढ विधान सभा के अध्यक्ष राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल इन दिनों अमरकंटक गए हुए थे. राह में भाजपा इन नेताओं ने मुझे भी कार में ले लिया. संध्या सब केवची में धरमू के होटल पर रुके थे तभी विधानसभा अध्यक्ष श्री शुक्ल की कारों का काफिला अमरकंटक से पेंड्रारोड जाते दिखा, हम सब अपनी कार में उनके पीछे हो लिए. पेंड्रा रेस्ट हॉउस में हमारी मुलाकात शुक्लजी से हुई ,शायद वे समझ गए हमारा आने का मकसद ,मैंने कहा- आज एक ही सवाल पूछना है, क्या विधायक रामदायल उइके ने पद से स्तीफा दे दिया है.? उन्होंने कहा, हाँ-मैंने उसे स्वीकार कर लिया है. सबसे ज्यादा सदमा रामप्रताप सिंह को लगा. बाकी भी हतप्रभ रह गए .उनके पैरों से मानो जमीन ही निकल गई हो जैसे. रामप्रताप सिंह ने पता किया तो पेंड्रा में भाजपा के कार्यकर्ताओं ने बताया, राम दयाल उइके बस्ती-बगरा भाजपा की बैठक लेने गये हैं. वो कड़ाके की ठंडी रात थी. रामप्रताप सिंह ने कहा, उसके आने की प्रतीक्षा करेंगे मध्य रात्रि उइके जी भाजपा की सभा ले कर वापस आए तब राम प्रताप सिंह ने उइके को उसके घर में खूब फटकारा . पर अब उइके जोगी का हो चुका था.

1 टिप्पणी:

Rahul Singh ने कहा…

समय बीतते, बदलते पता नहीं लगता.