मंगलवार, 24 जून 2014

किडनी दे कर बेटी ने पिता को बचाया





ये सच्ची मानवीय कहानी है, जिसमें बेटी ने अपनी के किडनी दे कर अपने पत्रकार पिता राजू तिवारी को मौत के मुंह से खींच लिया,,राजू तिवारी ने मौत से एक साल जंग लड़ने की बाद गुजरात से वापस बिलासपुर में अपने परिवार के साथ हैं..!
राजू तिवारी छतीसगढ़ के पत्रकार जगत में सशक्त हस्ताक्षर है, नवभारत बिलासपुर में राजू तिवारी और मैंने कोई आठ साल काम किया फिर में दैनिक भास्कर में सम्पादक हो गया,अलग अलग अख़बार पर हमारी दोस्ती बनी रही,उसके भाई भी मुझे बड़े भाई से चाहते,,राजू तिवारी ने नवभारत में करीब अठाईस साल काम किया,इस बीच देश की समस्त जानीमानी पत्रिका में उसके लेख मैं पढ़ता रहा,,राजू भाई खुद की एक सुंदर मेग्जिन भी नौ साल से प्रकाशित कर रहे है..जीवन की गाड़ी भली चल्र रही थी पर जिस्म में रोग पनप रहा था,वो भी किडनी का .
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चार साल पहले राजू तिवारी को क्रिएटिमिन टेस्ट से पता चल गया था की किडनी कम काम कर रही है,पहले बिलासपुर फिर रायपुर में इलाज हुआ पर थकावट, बैचेनी, काम में मन न लगाना के साथ भूख न लगने की शिकायत बन गई,जब नागपुर में टेस्ट हुआ तो साफ हो गया की किडनी 90 फीसद ख़राब हो चुकी हैं, अब दवा के बस की बात नहीं थी, करीब ग्यारह माह पहले उसने गुजरात में एशिया के जानेमाने किडनी रोग के मूलाजी भाई पटेल यूरोलाजिकल हास्पिटल नाडियाद का रुख किया,,!
अब ये तय हो चुका था की जीवन बचाने का एक ही विकल्प है की एक किडनी का ट्रांसप्लांट किया जाये,,तब तक सप्ताह में तीन बार डायलिसिस जरूरी है,अस्पताल के करीब वहां बाहर से आये लोगों के लिए भाड़े पर मकान सुलभ है, हर बार डायलिसिस के लिए चौदह सौ रुपए लगते और तीन बाद डायलिसिस अतिरिक्त खर्च होता, राजू के परिवार ने हिम्मत न हारी,किडनी देने के लिए सभी चार भाई,और पत्नी पहुंचे,पर दुर्भाग्य ये रहा कि किसी की किडनी मैच नहीं की..अब वक्त कम था, किडनी पाने के लिए 'केडेवर' भी एक जरिया है, दुर्धटना में मरणासन्न किसी की किडनी दान पर ये भी संभव न हो पाया,जीवन के लिए मौत से संघर्षरत राजू के जीने के दिन शेष रहे और तब जीवन देने पहुंची उसकी बाईस साल की बेटी स्वेच्छा तिवारी,,!
उसकी किडनी पिता की किडनी से मैच कर गई..स्वेच्छा ने बताया- किडनी देने के पहले डाक्टर देसाई ने अलग पूछा की क्या तुम किसी दबाव में अथवा भय से किडनी तो नहीं दे रही हो,जब डाक्टर उसके जवाब से पूरी तरह संतुष्ट हो गए तब प्रत्यारोपण के लिए 16 अप्रेल का दिन तय किया गया,डा. महेश देसाई की अगुवाई में डा, उमापति हेगड़े और डा मोहन राजपुरकर ने किडनी की सफल प्रत्यारोपण हो गया..!

स्वेच्छा सीवी रमन विवि कोटा [बिलासपुर]में एमबीए की छात्रा है वो स्वस्थ है उसे इस बात की ख़ुशी की पापा चंगे घर वापस आ गए हैं. किडनी देने के बात उसे शरीर में कमी नहीं लगती. राजू तिवारी जीवन की इस लम्बी लड़ाई में दुबला हुआ पर कमजोर नहीं,उसका हौसला फिर खड़ा हो गया है,,! वहाँ डाक्टरों और स्टाफ के स्नेह और दक्षता की वो तारीफ करते थकता नहीं,इस पूरे समय भाई सुनील उसका संबल बना रहा,सचमुच राजू ने मौत को हौसले से जीता है, बेटी स्वेच्छा को सलाम जो पिता को मौत के मुंह से वापस खीच लाई है.
मोदी को पाती ..
पत्रकार राजू तिवारी ने अपनी पत्रिका ‘आधी रात का रिपोर्टर में एक पाती पीएम् नरेंद्र भाई मोदी के नाम लिखा कर मानव अंग प्रत्यारोपण कानून को व्यावहारिक बनाने का निवेदन किया है जिसमें किडनी पीड़ितों की जान बचे समय व धन का दुरूपयोग भी न हो सके ,,!

4 टिप्‍पणियां:

Rahul Singh ने कहा…

वंदनीय लाजवाब स्‍वेच्‍छा.

girish pankaj ने कहा…

राजू मेरा परम मित्र है, उसको हार्दिक शुभकामनाये, बेटी को प्यार उसने पिता के लिए त्याग किया, यह उसका कर्तव्य था. आज कल अनेक बच्चे हिम्मत नहीं करते लेकिन इस बेटी ने किया , इसे आशीर्वाद

http://dr-mahesh-parimal.blogspot.com/ ने कहा…

पहले तो राजू भाई की बिटिया के साहस को सलाम। बिटिया हो तो ऐसी। इसके बाद राजू भाई के हौसले की दाद देनी होगी। अपना जज्‍बा कायम रखा उन्‍होंने, यही बहुत बड़ी बात है। अब राजू भाई को बेटियों पर कुछ ऐसा लिखना चाहिए, जिससे घर में बेटी पैदा होने पर लोगों को गर्व हो। मुझे खुशी है कि राजू भाई अब स्‍वस्‍थ हैं। उनकी कलम चलती रहे, यही कामना
डॉ महेश परिमल

Nk ने कहा…

Raju tiwari ji ke books kaha milenge .unka address dijiye.