गुरुवार, 12 जून 2014

कबीर की धरोहर उपेक्षित

महान सूफी संत और विचारक,कबीर की विरासत अमरकंटक से पांच किमी दूर कबीरचबूतरा में के कच्चे मकान में रखी हैं,बिलासपुर से सौ किमी दूर इस स्थली में संत कबीर और गुरुनानक देव जी मिले थे, माना जाता है माँ नर्मदा के दर्शन बिना कोई साधना पूरी नहीं होती..! महान संतो की मिलन का ब्यौरा ब्रिटिश म्यूजियम लन्दन में है. जब चरणदास महंत मप्र,में पब्लिसिटी मंत्री थे तब उन्होने कबीर पर एक पुस्तिका प्रकाशन की थी, जिसमें इसका सन्दर्भ था.

कबीर चबूतरे का जीर्णोद्धार के नाम पर कुछ सरकारी तर्ज पर काम किया है.कुछ समय पहले मैं अपने ब्लागर मित्र ललित शर्मा के साथ पंहुचा,घाटी में सड़क और कुछ पक्के मकान बन दिए गया है,,कबीरपंथी आगंतुकों का स्वागत करते है,,पर जहाँ कबीर की धरोहर है वहाँ की दशा ठीक नहीं ..!
समाज में फैली कुरीतियों पर लेखन से तीखा प्रहार करने वाले संत करीब 600 साल बाद भी प्रासंगिक है- सूफी आबीदा परवीन की गायकी में कबीर को सुनो तो ध्यान लगा जाता है,इससे गुलजार परिचय कराया है -
...दो दोहे उनकी याद में -- तेरा तुझको अर्पण क्या लगे मेरा-
;;जब मैं था तो गुरु नहीं,अब गुरु है मैं नहीं !
प्रेम गली अति सांकरी,तामें दी न समाहिं..!!

तुरुवर पात से यौ कहै ,सुनो पात इक बात !
या घर की यही रीति है,इक आवत एक जात !!

कोई टिप्पणी नहीं: