शनिवार, 7 जून 2014

चातक की आस


''प्रिय चातक तुम वापस
घर आ जाओ तुम्हे कोई 
कुछ नहीं कहेगा..!
हर साल मानसून के पहले दूर देश से आने वाला चातक[पपीहा] अब तक नहीं पहुंचा है,मुझे याद है मेरे गाँव मंगला के फार्म में तूं 25 मई के आसपास हर साल पहुँच जाता और जब में खेत जाता तब मुख्तियारिन कोनाहिन्' बताती- बाबूल के पेड़ से उड़ना भरती हुई दो चिड़िया शहतूत के पेड़ पर आई है,मैं जान जाता पावस की मेहमानी करने तुम पहुँच गए हो..!

खेत के और लोग भी बताते की उन्होंने भी देखा है, मैं सबको कहता बरसात आने में अब देर नहीं,फिर छ सात दिन में राहत की फुहार पड़ती.!
तुम पेड़ के ऊपर से बादलों को देख कर हर्षित होते आर पीपीपी,पियू की रट लगाते,मैं सोचंता की क्या यही स्वाति की  पहली बूंद के लिए रटन है..!

चातुर्यमास मेरे खेतों में बिताने आ जाओ,कोयल परिवार की भांति दूजे के घोंसले में अंडे देने के लिए..! मैं जानता हूँ, अभी तुम छतीसगढ़ नही पहुंचे हो,अगर पहुँचते तो इन दोनों कैमरा ले कर दीगर परिंदों के पीछे पड़े राहुल सिंह या फिर संजय शर्मा के कैमरे में कैद हो फेसबुक में पहुंच गए होते..! यहाँ तुम्हारी लड़खड़ाती उड़ान को देख लगता है ये किसे दूर देश वापस जाएगा ..पर चार माह बाद वापसी के पहले गगन को छूती उड़ान देख मैं हैरत में पड़ विदाई देता हूँ..!

तुम्हारे प्रवास से किसानों को मानसून आगमन पर कृषि काम शुरू करने की प्रेरणा मिलेगी,बादलों को चाहने वाले विरह के अग्रदूत, हे मेघदूत, कविवर भी तुम्हे याद कर रहे होगे..आ गए हो और लम्बे सफ़र की थकान हो तो प्रकट हो जाओ कोई तुम्हे कुछ नहीं कहेगा ,,! बस तुम आ जाओ,तुम्हारी रटन सुनने को मन व्याकुल है .!!
कविवर हरिवंश बच्चन जी ने लिखा है-
यह न पानी दे बुझेगी,
यह न पत्थर से दबेगी,
यह न शोलों से डरेगी,
यह वियोगी की लगन है,
यह पपीहे की रटन है..!!

[फोटो गूगल की हैं]

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