गुरुवार, 19 फ़रवरी 2015

मरती नदी में पलती जिन्दगी




'जिस नदी को लन्दन की 'टेम्स' नदी सा बनने का सपना दिखाया जा रहा, वो 'अरपा' नदी मर रही है और उसके ठहरे पानी में की गंदगी को साफ परिंदे कर रहे हैं,ये स्वछता का कुदरती तरीका होगा ! छतीसगढ़ की न्यायधानी के जीवन रेखा 'अरपा'नदी सूख-सूख कर मर रही है,,!
उसकी जमीन को छीना जा रहा है, अपोलो जाने के पुल के नीचे ब्लैक-लीकर वाले पानी की बू पूल के ऊपर आ रही है, और हजारों प्रवासी परिंदे[ BLACK WINDGE STILT ] इसमें अपनी खुराक खोज रहे है ,,वो इस तरह पानी की सफाई में लगे है,अगले पुल के कुछ आगे कचरे में ब्लैक काईट का दल कचरे से उठा कर आकाश में उड़ जाता है,आवारा कुते भी कुछ खोज रहे है,गरीब भी कुछ कचरे के ढेर चुन रहा है ,,संब में पेट के लिए संघर्ष सारे दिन चलता है ,, यहाँ बू सड़क तक है ,,!
मोदीजी का स्वच्छता अभियान और स्वाइन-फ्लू की खबरें साथ-साथआ रही है, मुझे लगता है ये अरपा का नहीं सारे देश की नदियों का हाल है ,,!

1 टिप्पणी:

http://dr-mahesh-parimal.blogspot.com/ ने कहा…

अरपा नदी की गोद में मैंने डेढ़ साल गुजारे हैं। इस नदी की हालत आज से 30 साल पहले से ही खराब होने लगी थी। इसे मैंने भी समझा था। आज तो इसकी बदतर हालत का विकराल रूप देखने को मिल रहा है। जब मैंने अपने ललित निबंधों का संग्रह निकालने की सोची, तब मुझे इसी अरपा का ध्यान था, इसलिए मैंने अपनी किताब का नाम दिया ‘अरपा की गोद में’। किताब प्रकाशित हो चुकी है। उस समय में अरपा की हालत पर व्यथित था, उसे लेकर देश की सभी नदियों की हालत पर कुछ तीखा लिखा है। अरपा यदि अपने पुराने स्वरूप में आ जाती है, तो सबसे अधिक मुझे खुशी होगी।