बुधवार, 7 जनवरी 2015

राजा और जोगी .

''उज्जैयनी के राजा भर्तहरी की कथा गाँव में सुना कर जीवन-यापन करने वाले से गाँव 'गरियारी' में राह चलते मुलाकात हो गयी,,!
छत्तीसगढ़ में उनकी कथा भरथरी का लोकगायन की लम्बी परम्परा है,,वे विक्रम संवत के प्रवर्तक विक्रमादित्य के अग्रज थे,,! संस्कृत साहित्य में नीति,श्रृंगार और वैराग्य पर सौ-सौ श्लोक ज्ञान वर्धक है,, उनकी रानी पिंगला के कहानी में कुछ पंक्तियों में दे रहा हूँ,,!
राजा को दरबार में गुरुगोरख नाथ चिर-यौवन व अमरत्व का एक फल दे जाते है ,,राजा अपनी प्रिय रानी को ये फल खाने दे देता है,'''रानी अपने प्रेमी शहर कोतवाल को और फिर वो अपनी प्रेमिका राज नर्तकी चिरयौवन बना रहे उसे दे देता है ,,ये नर्तकी अपने को पतित मानते हुए प्रजापालक राजा को ये फल भेंट कर देती है ,, राजा फल पहचान जाता है और विरक्त हो वैराग्य ले लेता है ,,राजा ने वैराग्य पर सौ श्लोक इस काल में लिखे..!

ये जोगी पिछले ग्यारह साल से बाबा गोरखनाथ और राजा की ये कथा सुना रहा है ,,कुछ पंक्ति हमें भी सुनाई ..जात न पूछो जोगी की पूछ लो ज्ञान ,,कुछ कर वो आगे बढ़ा गया ,,गाते-बजाते हुए ,,!!

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