बुधवार, 2 जुलाई 2014

सड़क बनी मरघट


 'इक सड़क अपने शहर की अब अजनबी सी लगती क्यों है,
जहाँ पेड़ों की छाँव थी ,वो जगह पराई अब लगती क्यों हैं,
जिन पेड़ों से बरसों का नाता था,उनका कत्ल कर दिया गया.
सड़क चौड़ी तो हुई हैं ,पर मुझे ये मरघट सी लगती क्यों है,,!!

मेरे शहर में पेड़ों के कत्लेआम का दंश यादों में बस गया है, सन 1967 बिलासपुर की सीएमडी
कालेज में पढ़ने जाता तो ये पेड़ हल्की बारिश और घूप से मेरी रक्षा करते,इनकी छाँव में कई
पीढ़ी बड़ी हुई,पर किसी सनक ने 75 पेड़ों की कटाई का आदेश दे दिया,,! डेढ़ पेड़ ही नागरिक
बचा पाए,,!

'करे निहाई की चोरी,करे सूई का दान' अब प्रायश्चित में पौधे लगने की तैयारी है, पर मेरी समस्या जुदा है, मेरे लिए इस सड़क के किनारे के प्रतिष्ठान अजनबी हो गए है,जाना कहीं रहता और पहुँच कहीं और जाता हूँ फिर खोजने वापस आता हूँ ,,मेरे सारे निशान पेड़ों के साथ गुम हो गए हैं,अब कालेज हो या नोकिया केयर सेंटर अब खोजना पड़ता है,,!
मैंने सुना है-बाघ अपने प्रभुत्व क्षेत्र के पेड़ों पर पंजे से निशान लगता है,सुंदरबन का बाघ इसलिए भी अधिक खतरनाक है, की ज्वार-भाटा उसकी दूजे किस्म की निशानदेही को खत्म करता है,,! मेरी निशानदेही भी ख़त्म हो गई है,लेकिन में बाघ नहीं मगर ये आक्रोश है कि कम  नहीं होता ...

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

यकीन नहीं होता की कोई इतना बेदर्द कैसे हो सकता है