शनिवार, 19 अप्रैल 2014

अमरकंटक में ब्राह्मी बूटी के साथ खिलवाड़


''चाहे में प्रकृति को बचाने कोई काम करे तो भी उसका भी साईडअफेक्ट हो सकता है,अमरकंटक में नर्मदा नदी की धारा को रोक कर सरोवर बना दिए गये,ताकि नदी के किनारे जो निर्माण कार्यों से पर्यावरण को क्षति हुई है उसकी भरपाई हो सके, पर हुआ क्या.. इस बड़े तर क्षेत्र में पनपने वाली ब्राह्मी बूटी की समूल समाधि इन सरोवर में हो गई..!

अमरकंटक से मेरा जब परिचय हुआ तो इसका स्वरूप कुछ ऐसा न था, ब्राह्मी बूटी[indian pehny wort]माँ नर्मदा के दोनों तरफ गीली और तर भूमि पर दूर दूर तक फैली थी,ये आर्युवेद में स्मरणशक्ति बढ़ाने वाली,केश वर्धक,उन्माद रोकने मस्तिक वर्धक दिव्य औषधी मानी जाती है,यहाँ के जानकार इस बूटी के उपयोग बखूबी करते है और अमरकंटक के विस्तार से यहाँ आने वाले सैलानियों के बीच इस बूटी के विदोहन के बाज़ार के नया दरवाजा खुलता गया..!

मुझे याद है कोई दस साल पहले अमरकंटक के तपस्वी बाबा कल्याणदास जी की साथ माँ नर्मदा के किनारे संध्या भ्रमण पर देखा की बाह्मीबूटी गाजर घास में दबी दम तोड़ रही थी..यहाँ की आबोहवा इस बूटी के माफिक है,पर गाजरघांस भी आ धमका था. विदेशी मूल के इस दानवी वनस्पति के सामने लता बाह्मी बूटी के क्या चलती. ऊपर से सरोवर के निर्माण..हो सकता है फिर समय पर ये बूटी इन सरोवर के किनारे पग पसारे,पर यदि ये पहल मानव करता जो इस दिव्य औषधि के बचने और बढानें की संभावना काफी होती..!

बात ब्राहमी बूटी की है तो मुझे बिलासपुर के सतीश शाह की याद आ गई,उन्होंने अपने फार्म हॉउस को भांति-भांति के वनस्पति को सलीके से स्थान दिया है, इनमें बाह्मी बूटी भी कुछ गमलों में लगी है ..दूसरी फोटो वहीँ की है,ये इस बात का बोध करने के लिए काफी है की मैदानी इलाके में भी बाह्मी बूटी की सघन पैदावार हो सकती हैं, बस लगन चाहिए ..!

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