सोमवार, 19 मई 2014

हम लोकतंत्र में राजतंत्र को पाले हैं



'कोई ढाई दशक पहले ख्याति लब्ध पत्रकार राजेन्द्र माथुर ने कहा था- ''हम लोकतंत्र में रहते हैं पर दिमाग में राजतन्त्र बसा है..हम जिसे विजयी बनाते हैं उसका जगह-जगह शाही स्वागत करते है,फिर वो अपने राजा मान सुरक्षा के घेरे में हम से दूर हो जाता है तब हमें लोकतंत्र की याद आती है और हम जिसे विजयी बनाया उसे सत्ता से उतार कर दम लेते है''..ये सिलसिला चलता रहता है,जिसे बनाते हैं उसमें राजा की छवि देख दूर हो जाते है और ये दूरी बाद उसे सत्ता से उतार का दम लेती है.

जमीं के बंदे नमो ने अभी पीएम पद की शपथ नहीं ली पर जो उनका स्वागत सम्मान हो रहा है,जो शाही घेराबंदी हो रही है वो राजतन्त्र की याद दिलाता है ,इडियटबाक्स ने तो उसे सर पर उठा लिया है,और महानायक बना दिया है..!

राजेन्द्र माथुर जी रायपुर आये थे और उनको सुनाने बिलासपुर के पत्रकार को जनसंपर्क अधिकारी रविन्द्र पांडेया ले कर गए थे..! नमो ने जीवन के कई रंग देखे होंगे,पर माथुरजी ने जो कहा उसे मैंने सत्य पाया ..हे रब, इस स्वागत और दिखावे के फंदे से इस आम आदमी को बचाए रखना ..!!



1 टिप्पणी:

Dr.R.Ramkumar ने कहा…

हमारी परम्पराओं ने हमें हमेशा दासत्व का पाठ पढ़ाया।राजाओं को दास पुरोहितों और भाटों ने ईश्वर का प्रतिनिधि बनाया ताकि प्रजा को सर उठाने की गुंजाइश ही न मिले। मुगलों ने भी आलमपनाह की गुलामी को रियाया का सबाब कहा। फिर200 साल हम राजशाही के गूलाम रहे। राजघरानो, बादशाही और राजा की परम्परा ने परिवार का ही व्यक्ति राज करता है। स्वतंत्रता के धुंधलके में हमने संसदीय प्रणाली का झुनझुना तो पकडकर खूब बजाया पर परिवाद के आंगन में ही।
प्रजातंत्र में प्रधानमन्त्री को ही राजा समझस्स्म्झने की हमारी आदत बरकरार रखी गयी।

कुलवादी और जातिवादी परम्परा में यह मानसिकता और गहरी बनायीं जाएगी, रामराज्य के कुन्हासे बाध्य बढाये जायेंगे।
लोग तो आश्वस्त हैं और व्याकुल हाँ कि की अब तो सान्विधान भी बदल जायेगा।
हम समझ सकते हैं की नया संविधान कैसा होगा।

बोद्धिकता का अंतिम दिन बस कुछ ही दिनों बाद।