रविवार, 23 फ़रवरी 2014

संस्कृति का वाहक रतनपुर मेला










छतीसगढ़ की सदियों तक राजधानी रही रतनपुर का माघी मेला कल सम्पन्न होने के पहले पूरे शबाब पर था, आठ बीसा सरोवर के का करीब आठ दिनी ये मेला ग्रामीण और शहरी संस्कृति का संगम है,माना जाता है की किसी राजा के निधन शव के साथ28 रानियाँ यहाँ सती हुई थीं.[रतनपुर दर्शन-लेखक ब्रजेश श्रीवास्तव]

मेले में अब टेडी' से लेकर प्लस्टिक के फूल भी आते है,कभी लकड़ी के झूले के जगह आज बड़े बड़े झूले आते है, मैं अपने पुराने पत्रकार दोस्त अमित मिश्रा के साथ मेले का लुत्फ़ और बदलते रंग को देखने गया.इसे कैमरे की आँख से देखा..ओडिशा का उखरा मेले की सौगात है,इस बार राजस्थान की बाला दिखीं जो धागे से फेरेन्डशिप बेंड गूँथ रही थी.

सालों बाद मिले स्वजनों का मेला स्थल में मेल,बन रही जलेबी,गुलाब जामुन से लेकर साफ्टी तक..!
मेले में एक लाख के करीब लोग पर सयंत अनुशासित,बिलासपुर से कोई पच्चीस किमी दूर राह की हर सड़क का मुंह जैसे मेला की और,पुरातन और नवीनता का 'चाट' यहाँ भाता जो है..वैसे भी छतीसगढ़ उत्सवधर्मी है और धान की फसल कटाई के बाद ये पहला मेला शादी-बिहा की खरीदी का स्थल भी ..!मेला जा कर सकूँ मिला, हमारी संस्कृति का वाहक जो है..!

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