मंगलवार, 9 जुलाई 2013

अरपा,कहीं मुंबई की मीठी नदी न बन जाए





   अरपा नदी को लन्दन की टेम्स नदी अथवा गुजरात की साबरमती के समान बनाने वाले कहीं मुम्बई की मीठी नदी ना बना दे,  इस बात की आशंका बिलासपुर में बलवती होती जा रही है. अरपा ही नहीं देश के कई नदियाँ,अब नाले बन गई हैं, इनमें 144 नदियाँ चिन्हित हैं.  अरपा महतारी की दशा भी बुरी है, बेहिसाब बढ़ता शहर इसके जलस्रोतों की खींच रहा है. कूड़ा नदी में फेंका जा रहा है, नालियों का पानी नदी में पहुँच रहा है. बेहिसाब रेत निकली जा रही है,  साल में नौ माह लगभग सूखी, गर्मी में तपता रेगिस्तान  सी उसकी रेत और सूखी नदी. कौन भले नहीं चाहेगा  उसकी नदीमाँ’ का सौन्दर्य निखरे, वहीँ कौन ये चाहेगा कि, ‘नदी माँ’ के स्वरूप को ऐसा विकृत कर दिया जाए कि बाढ़ आने पर वह मुंबई की मीठी नदी की भांति विनाशलीला रचे.

   जिस नदी के किनारे चार-पांच लाख की आबादी सुख चैन से रह रही है, वो करोड़ों रूपये के खर्च बाद कहीं हर बरसात में बाढ़ के पानी के घर में आने की आशंका साथ लाए तो ये बड़े दुर्भाग्य की बात होगी. नदी को रुपांकर देने के लिए प्राधिकरण गठित किया जा चुका है और नदी के दोनों किनारे दो-दो सौ मीटर भूमि को अधिसूचित घोषित कर इस भूमि  पर निर्माण कार्यों, तथा जमीन खरीदी-बिक्री पर रोक लगा दी गई है.  प्राधिकरण के दफ्तर में अरपा बैराज परियोजना संबधित और कोई जानकारी नहीं, उसके लिए सिंचाई विभाग जाना पड़ेगा, कुल मिलाकर अभी कोई तालमेल इन दफतरों में न होने के कारण परियोजना के सही स्वरूप की जानकारी नहीं मिलती और न ही उसके प्रारूप का प्रकाशन हुआ है. इस लेखन का उदेश्य ये है कि यदि कोई बात योजनाकारों को भाए तो इसमें उठे सवाल पर नजर डाल कर आवश्यक सुधार कर सकें. यद्यपि ये मुद्दा आसन्न विधान सभा चुनाव में चुनावी मुद्दा बन सकता है पर उससे अधिक अहम इस लिए है की ये मसला लाखों ‘बिलासपुरकरों’ के भविष्य से जुड़ा हुआ है.

   अरपा- भैसझार परियोजना सौ साल से अधिक पुरानी है. इसका नाम और स्वरूप बदल कर फिर ये पेश है..? 19 वीं शताब्दी के साथ इस अंचल में अकाल की विभीषिका से अंग्रेजों के तीन सिंचाई योजना बनाई. मनियारी नदी पर खुडिया, और खूंटाघाट तो पूरी कर ली गई पर अरपा नदी को बांधने की योजना पर कोई काम न हुआ. इंजीनियर वार्डले के मार्गदर्शन में 1925 में इसका सर्वे पूरा कर लिया गया. फिर योजना फाईल में कैद हो गई . अविभजित मप्र के दौरान इस योजना का शिलान्यास भैन्साझार में मुख्यमंत्री वीरेंद्र सखलेचा, और फिर पं.श्यामाचरण शुक्ल ने किया. किसी कब्र के पत्थर की तरह योजना के शिलान्यास वहां की पहचान वहां बनी रहे. अब तीसरा शिलान्यास होने वाला है.

   पहले इस योजना का नाम था- ‘अरपा जलाशय वृहत परियोजना !’’
ठन्डे बस्ते में चली गई इस परियोजना की जानकारी ये हैं -
*जल ग्रहण क्षेत्र - बांध की ऊंचाई-29.62 मीटर..
*बांध की लम्बाई -.6565 मीटर..
*जल ग्रहण क्षेत्र - 1693.86 वर्ग किलोमीटर

* की ऊंचाई - 29.62 मीटर..

*बांध की लम्बाई -.6565 मीटर..
*डूब में आने वाले गाँव - 27
*लाभन्वित गाँव -263
*सिंचाई क्षमता  - 73000 हैक्टेयर [सरकार को ये साफ करना चाहिए की क्या इस
परियोजना को तिलांजलि दे दी गई है अथवा, प्रस्तावित बैराज में यहाँ से पानी आएगा.]

   अरपा की प्रस्तावित नई योजना – नाम,..अरपा भैन्साझार बैराज परियोजना.
   1.कुल भूमि.. 653.91 हैक्टेयर,इसमें वन,442.69 हैक्टेयर निजी..56 हैक्टेयर,शेष सरकारी.
   2.बैराज की ऊंचाई—12.5 मीटर.
   3.सिन्चित रकबा-  25 हज़ार हैक्टेयर.कोटाब्लाक का जोगीपुर, तखतपुर के 64 और बिल्हा के 27 गाँव..!
   4.कुल लागत. 606.63  करोड़ रुपए.

   ये समस्त आकड़े जुटाए गए हैं योजना का प्रारूप सामने आने पर वस्तुगत स्थिति पता लगेगी. चूँकि बैराज की ऊंचाई पहले की तुलना में कम है, इसलिए आज के दौर के लिए उपयुक्त मनाई जानी चाहिए. परन्तु अरपा नहीं के साथ जो खिलवाड़ करके नदी के मौलिक स्वरूप के साथ जो  छेड़छाड़ प्रस्तवित है वो इंगित करती है कि हम मुंबई की मीठी नदी की और कदम बढ़ा रहे हैं.
मुंबई की मीठी नदी महानगर का पानी समुन्दर तक पहुंचती है ,वषों से उसके आकार के अनुरूप भरपूर पानी न आने के वजह इस नदी की भूमि के किनारों हथिया लिया गया. किनारों में उगे मंग्रो के हरे पेड़ों को काट दिया गया. पर्यावरणवादियों ने जब विरोध किया तब उनको ‘विकास विरोधी निरुपित’ किया गया. नतीजा मीठी नदी का कड़वा सच ये निकला जब 26 जुलाई 2005 जब मुंबई में जमकर बारिश हुई तो इस नदी का कहर ‘मुंबईकरों’ पर भारी पड़ा गया. अब हर  बरसात में उनका जीवन पटरी से उतर जाता है, मीठी नदी को गहरा और चौड़ा करने की आवश्यकता वे मान रहे है. पर ये मुमकिन नहीं. सालों से इस काम में करोड़ों व्यय हो रहे हैं. पर कोई हल नहीं निकला सका है.

   अरपा जलाशय वृहत् परियोजना का उद्देश्य इस इलाके कई भूमि को सिंचित करना था,पर अरपा भैन्साझार बैराज का उदेश्य कुछ और है, जिसमें गाँव लोफंदी से दोमुह्नी कुल 18 किमी तक रिटर्निग वाल बनाई जाएगी. वर्तमान बिलासपुर में इंदिरा सेतु में अरपा के चौड़ाई करीब पांच सौ मीटर है. जो समाचार आ रहे हैं उनके मुताबिक नदी की जमीन हथिया ली जाएगी और अरपा 250 मीटर में ही बहेगी. इसके पहले ‘सिम्स’ के लिए किनारे की जमीं हथिया ली गई है.अब हथियाई बेश कीमती जमीन पर क्या-क्या बनेगा ये बाद की बात है.

अरपा पहाड़ी नदी है. पेंड्रा के करीब अमरपुर,खोड्री से बेलगहना तक के घने जंगल का पानी नदी-नालों से होता हुआ इसमें मिलता है. पहाड़ी नदियों की तासीर अलग होती है, पानी तेजी से आता है और फिर उसी तेजी से खाली हो जाता है. इसमें वषों की औसत बारिश के आकडे कोई काम नहीं आते. बिलासपुर में बढती आबादी की आवश्यकता की वजह शहरी इलाके में लगे शक्तिशाली पंप रात दिन इसके जल को खींचतें हैं, जिस वजह शहरी इलाके में नदी सूखी रहती है और शेष इलाके में कुछ बहाव बना रहता है. यही दशा अरपा के उदगम स्थल के साथ है. जहाँ अमरपुर में दलदली भूमि थोड़ी बची है और नदी का उदगम पता नहीं लगता. इस जगह को परियोजना क्षेत्र से न जाने क्यों बाहर रखा गया है.

1.सन 1953 के आसपास अरपा की बाढ़ को लोग याद करते हैं, जब नदी का पानी सिटी कोतवाली में भर गया था. अब अरपा जमीन हथियाने के बाद शेष नदी आकार की तकरीबन आधी होगी. इसलिए वैसी बाढ़ में के नदी [नाले] का पानी स्टेशन तक क्या नहीं चला जायेगा..?

2.टेम्स नदी के सामन यदि अरपा में पानी सारे-साल रुका रहा तब ये पानी तो प्रदूषित होगा और शहर के ज्वाली नाले और नालियों में पानी चढ़ा रहेगा..ये मच्छरों की नर्सरी के में विकसित होगा [शहर के आगे अरपा पर बरखदान में बना एनिकट इसकी मिसाल है ]

3. मीठी नदी के हश्र ना देख कर हम टेम्स नदी के सपने क्यों देख रहे हैं, जबकि मुम्बई अपने किये का फल हर साल भुगत रही है,.!

4,योजना के सलाहकारों और काम करने वाली कम्पनी यहाँ कमाने आ रही हैं ,वो कमीशन तो दे सकतीं है, पर नगरीय इलाके के बाढ़ से  प्रभावित न होने की जवाबदारी और देनदारी क्या अपने पर लेंगीं.

5.किसी नदी के मौलिक स्वरूप को इस कदर छेड़छाड़ करना क्या सुप्रीम-कोर्ट के निर्द्शों के क्या खिलाफ नहीं.

6.जब वर्षा अधिक होगी तो बैराज से पानी नदी या केनल में छोड़े जाना बाध्यता होगी, तब केनल के पानी की जरूरत खेतों में नहीं होगी  और संकरी नदी के तट बंधन को पार करता हुआ पानी शहर में पहुँच जायेगा. शहरी इलाके में आधा दर्जन पुल अरपा की धारा में अवरोधक बने हैं,जो इस समस्या को बढ़ने मददगार होंगे.

अरपा नदी इस इस अंचल की जीवन रेखा है यदि कदम गलत उठा तो वो कदम वापस नहीं हो सकता.! 
[पहली फोटो टेम्स नदी की नेट से,शेष फोटो और रपट-प्राण चड्डा] 

3 टिप्‍पणियां:

Rahul Singh ने कहा…

जवाली नाला तो रोजमेरी हो गया, अरपा अतःसलिला बनती जा रही है.

बेनामी ने कहा…

chhattishgarhi kahavat hai ke aag ur pani se khal karna aakhir me hani hi pahuchata.ab dakhiye bakare ki amma kab tak khar manati hai.

Unknown ने कहा…

kahi hum uttarakhand ki tarf to agrasar nahi ho rahe hai. v have to think abt all these things.