मंगलवार, 23 जुलाई 2013

अमरकंटक में निर्मित हो रहा भगवान आदिनाथ का मंदिर




अमरकंटक में नया बन रहा जैन मंदिर की भव्यता और सुन्दरता अब यहाँ जिज्ञासु को मोहने लगी है, मंदिर आकार ले रहा है और जैन धर्मावलम्बियों के साथ-साथ ये सबकी आस्था का केंद्र बना हुआ है, हो भी क्यों न यहाँ प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ की 24 टन भारी अष्टधातु की प्रतिमा विराजित है. इसे आचार्य श्री विद्यासागरजी ने 6 नवम्बर 2006 को विधि-विधान से स्थापति किया गया है, प्रतिमा 28 टन के कमल पुष्प पर विराजित है वो भी अष्टधातु  निर्मित है.

इस प्रतिमा की के बाद में जब-जब अमरकंटक गया इन मंदिर के आकार ले स्वरूप को देंखने की जिज्ञासा को रोक न सका. एक-एक प्रस्तरखंड को राजस्थान से लाकर परम्परागत तरीके से गढ़ा जा रहा है. मंदिर के निर्माण में लोहे,सीमेंट का उपयोग नहीं कर गुड़ चूने का उपयोग हो रहा है. जब इस प्रतिमा को विराजित किया गया उस वक्त बिलासपुर के प्रतिष्ठित सिंघई जैन परिवार के प्रवीण, विनोद, प्रमोद जैन ने अमरकंटक पत्रकारों को ले जाने की व्यवस्था भी की थी.. एक बार उन्होंने राह दिखा दी फिर वो बंद नहीं हुई.

इस बार गुरु पूर्णिमा के पर्व पर अमरकंटक गया और जिज्ञासा इस मंदिर तक खीँच लाई. मंदिर नगरीय इलाके की करीब पहाड़ी पर तीन लाख वर्ग फिट के विशाल परिसर में अब दूर से ही बनता दिखाई देने लगा है.जब मैं पंहुचा तभी घंटी बाज़ी पता चला कारीगरों को भोजन की सूचना दे दी गई है.सब एक साथ भोजन करने जमा हुए.करीब पचास कारीगर कार्यरत थे. राजस्थान के इन कारीगरों  कुछ मुस्लिम भी उन्होंने बताया की वे पीढ़ी दर पीढ़ी मंदिर निर्माण का काम करते है. उनके मुखिया सबीर खान ने बताया मंदिर 151 फीट ऊँचा होगा. चौड़ाई 125 फीट लम्बाई 490 फीट होगी.

मंदिर का सिंहद्वार 51 फीट ऊँचा 42 फीट लम्बा होगा. इसे ओडिसी वास्तुशिल्प के अनुसार निर्मित किया जायेगा. पत्थरों में जान कितनी मेहनत से डाली जाती है ये वहां देखा जा सकता है. तभी तो मंदिर का एक के पत्थर आस्था से जुड़ा होता है. मंदिर 2015 तक मुकम्मल हो जायेगा पर जैन मुनियों के निरन्तर पधारने और आयोजनों से ये स्थली पूजित हो चुकी है.
[ अमरकंटक माँ नर्मदा नदी के पवित्र उदगम स्थली है, ये छतीसगढ़ के सीमा से लगा मप्र में है. पैंतीस सौ फीट की ऊंचाई पर इसकी हरी-भरी वादियां श्रधालुओं को सदियों से अपनी और आकर्षित करती आई हैं ]

2 टिप्‍पणियां:

Rahul Singh ने कहा…

संभवतः यह संरचना स्‍थपति सोमपुरा परिवार का कमाल है.

Unknown ने कहा…

राहुल जी आप से अधिक इधर भला कौन जानेगा,मौके पर इन सब सवालों का जवाब देने वाला कोई न था, कारीगर काम जानते थे और लगन से कर रहे थे घंटी न बजे तो उनको ये भी पता न लगे की भोजन का समय हो गया है.