बुधवार, 26 जून 2013

रतन जोत, जो बुझ गई



खाड़ी से नहीं बाड़ी से डीजल, ये नारा अब सरकार को नहीं भायेगा क्योकि  रतनजोत लगाने की जोत बुझ गई है.. करोड़ों रूपये पानी में जा चुके हैं..ये आम जनता से टेक्स का रूप में वसूली राशि थी.हाँ बंदरबाँट में नौकरशाह और बिचोलियों ने जरूर जम कर चांदी पीटी है..! इस योजना के सूत्रधार पर भी कोई करवाई नहीं हुई.


रतनजोत [जेट्रोफा करकस ] को बायोडीजल के लिए२००९ में चुना गया..थोड़ा प्रयोग के तौर पर लगाया जाता. पर ये न किया गया. जुलाई २०१० तक छत्तीसगढ़ में १ लाख ६६ हज़ार हैक्टेयर में ये बोया जा चुका था. रोजगार गारंटी योजना सहित दीगर मद के दरवाजे इस के लिए खोले जा चुके थे'' फिर खबर आई सी.एम डा. रमन सिंह की कार बायो डीजल से चल रही है... शताब्दी एक्सप्रेस भी बायो डीजल से चलेगी..पर योजना की हवा निकलते देर न लगी..


रतनजोत की बीज को खा के अचेत हो गाँव के छात्र अस्पताल पहुँचने लगे. पड़त भूमि पर लगाया रतनजोत गर्मी में सूख गया..[ कई जगह अब वहां सागौन लगाया जा चुका है]अब नेट पर खबर थी,कि अफ्रीकी देश की तरह भारत में भी बायो डीजल बनने की योजना फ्लाप..!


सवाल ये है की जिन योजनाकारों ने ये न जाने कितने करोड़ की बर्बादी कराई ,उनपर करवाई क्यों नहीं,आज जहाँ रतनजोत फलता है तो कुछ दिनों बाद खबर आती है उसके बीज खा कर बच्चे अस्पताल पहुंचे..एक सरकारी योजना का दुखद हश्र ऐसा होगा ये सपने दिखने वालों ने भी कदाचित नहीं सोचा होगा.!

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