
बसन्त अवस्थी साथ थे, तभी बाजार, हाट जाती इन बस्तर नारियों का समूह दिखा, बस चुपके से फोटो लीं।
बसन्त भाई, गुरुवर से कमतर न थे, उन्होंने मुझे कहा किसीं एक से पूरा सामान का मोल भाव कर खरीदो, ये समूह जंगल खेत होते पक्की सड़क पहुंच था और घनेरे पेड़ की छांव में पानी पीने रुका था।। ज्यादा तर ये हल्बी समझती थी,पर मुझे हिंदी आती थी। फिर भी कच्चे आम की एक टोकरी का नोट दिखा कर मोल करने लगा। दस दस के छः नोट का मोल लगा दिया पर वो देने को राजी नही हुई। तब ये बड़ी रकम होती थी।
आखिर मै हार गया,बसन्त भाई साहब ने बताया कोई सौ रुपए भी दे तो ये पूरी टोकनी आम नहीं बेचेगी। सर पर बोझ उठाये,महिलाएं आगे बढ़ गई।
बसन्त भाई आज नहीं है, पर उनकी बात याद है। उन्होंने कहा-ये राह में आम बेच देगी तो हॉट में क्या करेगी। ये बेचना तो बहाना है, वहां हाट में,अपने नाते रिश्तेदार से वो मिलेगी, दुःख सुख,रिश्ते की बात करेगी, कुछ आम उनको देगी, आम तो 20 रुपए के हैं पर मेलजोल अनमोल है। इसके लिए वो हाट जा रही है। ये ही उनकी मौलिकता है।
परस्पर कितना स्नेह था इन बस्तरियों में, और आज ये नक्सली और पुलिस की गोलीबारी, दूषित राजनीति में घिरे गये है। विकास की कितनी बड़ी कीमत इन्होंने चुकायी है, किसी ने नहीं।।
( फोटो पुरानी हो कर क्वलिटी खो चुकी है।)
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