शुक्रवार, 10 मार्च 2017

बस्तर-पेसे की नहीं मिलन की अहमियत

ये बात उन दिनों की है जब विदेशियों ने घोटूल पर फिल्म बनाई थी। बहुत चर्चित हुई, कुछ अंतराल बाद बस्तर को समझने रायपुर से बस्तर पहुंचा, कैमरा साथ था, नवभारत के बुद्धिजीवी पत्रकार बसन्त अवस्थी जी से।पह्चान थी,इकबाल,वर्मा,सुभाष पांडे उनके मित्र थे, सब के सब बस्तरिया,।
साथ मेरे श्रीकांत खरे भी थे, जो उम्दा फोटो लेते, एक दिन में एक दिशा जाते,रत्न परिष्कार केंद्र के नवीन चतुर्वेदी की डीज़ल बुलेट थी, स्वर्गीय महाराज प्रवीर चन्द्र भंज देव का अवतार कंठी वाले वाले बाबा बिहारी दास के आश्रम भी हो आये,एक दिन महिला पत्रकार चक्रेश जैन भी मिलीं, वो शायद इण्डियन एक्सप्रेस से आई थी।
बसन्त अवस्थी साथ थे, तभी बाजार, हाट जाती इन बस्तर नारियों का समूह दिखा, बस चुपके से फोटो लीं।
बसन्त भाई, गुरुवर से कमतर न थे, उन्होंने मुझे कहा किसीं एक से पूरा सामान का मोल भाव कर खरीदो, ये समूह जंगल खेत होते पक्की सड़क पहुंच था और घनेरे पेड़ की छांव में पानी पीने रुका था।। ज्यादा तर ये हल्बी समझती थी,पर मुझे हिंदी आती थी। फिर भी कच्चे आम की एक टोकरी का नोट दिखा कर मोल करने लगा। दस दस के छः नोट का मोल लगा दिया पर वो देने को राजी नही हुई। तब ये बड़ी रकम होती थी।
आखिर मै हार गया,बसन्त भाई साहब ने बताया कोई सौ रुपए भी दे तो ये पूरी टोकनी आम नहीं बेचेगी। सर पर बोझ उठाये,महिलाएं आगे बढ़ गई।
बसन्त भाई आज नहीं है, पर उनकी बात याद है। उन्होंने कहा-ये राह में आम बेच देगी तो हॉट में क्या करेगी। ये बेचना तो बहाना है, वहां हाट में,अपने नाते रिश्तेदार से वो मिलेगी, दुःख सुख,रिश्ते की बात करेगी, कुछ आम उनको देगी, आम तो 20 रुपए के हैं पर मेलजोल अनमोल है। इसके लिए वो हाट जा रही है। ये ही उनकी मौलिकता है।
परस्पर कितना स्नेह था इन बस्तरियों में, और आज ये नक्सली और पुलिस की गोलीबारी, दूषित राजनीति में घिरे गये है। विकास की कितनी बड़ी कीमत इन्होंने चुकायी है, किसी ने नहीं।।
( फोटो पुरानी हो कर क्वलिटी खो चुकी है।)

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