रविवार, 5 फ़रवरी 2017

स्वदेशी का साइड एफ्केट और सुंदरवन

सूर्योदय हो या सूर्यास्त, पश्चिमी बंगाल का सरहदी इलाके का समंदर लाल हो जाता है। कुल 57 आइलैंड पर चार इतने आबाद की सैलानियों के लिए वन्यजीव और समुन्द्र में जाने के प्रवेशद्वार, बात झारखण्डी की है।
जब यहां से सुंदरवन रवाना हुआ तब मेरे वाइल्ड लॉइफ फोटोग्राफर मित्र शिरीष डामरे ने कहा- मेरे लिए थोड़ा सा सुंदरवन का चावल ले आना।। 
जिस होम रिसार्ट में हम रुके वहां जल्दी ही घनिष्टता हो गई। दूसरे दिन तड़के रिसार्ट का मालिक सोमनाथ दा सामान लेने मार्केट जा रहे थे, उनके साथ में भी हो लिया, बातचीत में पता चला,Shirish Damreको जिस चावल का स्वाद दो साल बाद भी याद था उसका नाम है, दूधेश्वर, दा ने बताया कि, एक ऐसा दुकानदार है जो खेतों में उसे उपजता है और अपनी दुकान में बेचता है।। मैंने उससे 29 रूपये में एक किलो चावल लिया।
जब हम रिसार्ट पहुंचे तब पूछा, यहां कौन सा चावल बनता है, जवाब मिला बाबा जी का बासमती, ला कर पैकेट भी दिखया, कहा अतिथि बासमती की और ब्रान्डेड चावल की मांग करते हैं। इसलिए इसे बनते हैं। उसे दिन बिना रासायनिक खाद का उपजा चावल दुधेश्वर बना, कोई ये नहीं जाना की ब्रान्डेड बासमति नहीं।
लेकिन इस ब्रांडिंग के चलते, लोकल किसानों का उपजा दूधेश्वर, बाज़ार से बाहर हो गया। एक तो वहां खेती करना कठिन है, फिर जैवविविधता से एक चावल लुप्त हो रहा। मुझे समंदर का पानी लाल दिखा, जरूर उसकी लाली में झोपडी में रहने वाले उन किसानों का गुस्सा शामिल होगा, जो दूध सा सफेद और ईश्वर सा पवित्र धान दुधेश्वर परम्परागत उपजते रहे, और बासमती की बॉन्डिंग जनित मांग से चुपके से विमुख हो गए या हो रहे हैं।

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