रविवार, 26 अक्तूबर 2014

साधनों की कमी,, देश की प्रतिभाओं के सामने




छतीसगढ़ के गाँव शिवातराई'में तीन दर्जन तीरंदाज छात्र-छात्राएं ऐसी हैं जिन्होंने कई बार राष्ट्रीय प्रतियोगिता में शिकरत की और यश अर्जित किया पर संसधानों की कमी के कारण ये अंतर राष्ट्रीय स्पर्धा में अपनी प्रतिभा नहीं देखा पाते ..!

बिलासपुर से अमरकंटक जाने वाले मार्ग के कोई चालीस किमी दूर ये गाँव अचानकमार टाइगर रिजर्व का प्रवेश द्वार है,,एक दशक से इस गाँव के पहचान यहाँ के तीरंदाजों के अलग बना दी है. गाँव आदिवासी बाहुल्य है जो सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी धनुर्धर रहे..आज इन्होने आखेट का परित्याग कर दिया है और परम्परागत इस विद्या का अभ्यास शाला के मैदान में करते दिखाई देते हैं..कल पत्रकार सत्यप्रकाश पाण्डेय,रवि शुक्ला और मुकेश के साथ मैं भी लाग ड्राइव पर इस गाँव से होते हुए गए छात्र अभ्यास कर रहे थे.कोई चार घंटे बाद वापस आये तो इनकी संख्या काफी थी..! जिज्ञासा ने यहाँ रोक दिया..!

स्कूल के मैदान में घांस कीचड़ था पर अभ्यासरत इन छात्रों के जुजून को इससे कोई परेशानी नहीं थी ..तीस मीटर पर उनका टारगेट लगा था और कतारबद्ध वे लगन से अपने इस रेंज पर टारगेट पर तीर चला रहे थे..ये आदिवासी आज भी शर संधान में अंगूठे का उपयोग नहीं करते..एकलब्य का अंगूठा जो गुरु द्रोण ने जो मांग लिया था अथवा ये तीरंदाजी के नियमों के विपरीत है ,,!
छह साल की एक बालिका जब तीर चला रही थी तो उसकी आखों की पुतली में जरूर टारगेट दिखाई देता होगा पर हमारे कैमरे उतने शक्तिशाली नहीं थे की वो आईबाँल की  येफोटो ले सकते..तीर जिस गति से लक्ष्य को भेदते वो गोली की गति से कम न थी ,,!
जिन निशानेबाजों से बात हुई उन्होंने बताया कोच इतवारी राज अनुभवी है..पर हमारे पास स्तर का धनुष-बाण और जरुरी दीगर सामान नहीं ,,पर जुजून है जो राष्ट्रीय स्पर्धा में यश दिलाता है ..लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा के लिए संसाधनों की कमी है ..! छतीसगढ़ की सरकार राजोत्सव में करोड़ों रूपये व्यय करती है ..अगर वो इन खेल प्रतिभाओं के लिए जरूरी सामान-व सुविधा उपलब्ध कराती है तो राज्य का नाम और यश हरियाणा कभी तरह चमके गया ..काश ये गाँव शिवातराई हरियाणा में होता अथवा ये बच्चे हरियाणा में ,,!!

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