बुधवार, 15 जून 2016

बैगा आदिवासियों की हितचिन्तक रश्मि का न रह जाना

बैगा आदिवासियों के हकों के लिए लड़ने वाली रश्मि द्विवेदी का आज लोरमी में अंतिम संस्कार कर दिया गया। वो लगभग 55 साल की थीं और सारा जीवन आदिवासियों,दलित शोषितों के लिए संघर्षरत रहीं। फेसबुक प्रोफाइल में रश्मि की ये फोटो लगी है जो किसी बैगा आदिवासी युवती की है।बैगा अत्यंत पिछड़ी जनजाति है।
सन् 85 के आसपास वो मुझसे मिलने नवभारत बिलासपुर आती थीं। एक बार वहां के एक कमजोर दिल आधिकारी ने इच्छा व्यक्त की अब जब रश्मि आये तो मुझसे मिलाना। पर एक दिन जब वो मिले तो रश्मि ने बातचीत में कहा बैगा आदिवासियों की मागों के सन्दर्भ में "कलेक्टर को नोटिस" दिया है। अगला कदम बाद सख्त उठाया जायेगा।S S S
रश्मि के ये तेवर देख बेचारे की घिग्घी बन्ध गई। उसके जाने के काफी देर बाद वो बोले,लड़की नक्सली है।।
मेरी रश्मि से अचानकमार के जल्दा गाँव में पहचान हुई थी तब शेर दिल अधिकारी एम् आर ठाकरे और मैं भोजन बनवा रहे थे। रश्मि पीठ पर बोझा लिये वहां पहुंची और पानी पिया।
दैनिक भास्कर में सम्पादक बना तब रश्मि आई और मेरे दोस्त और पत्रकार सूर्यकान्त चतुर्वेदी और रश्मि के बीच विचारधारा को ले कर लम्बी बहस हुई। वो पीवी राजगोपालन के साथ एकता परिषद में जुड़ीं और जल जमीन और जंगल के लिए पदयात्राऍ भी की। बैगा आदिवासी की वन विभाग के दवारा की गई निर्मम बेदखली को दिखने वो बिलासपुर के पत्रकारों को सूमो में खुड़िया बांध के किनारे जंगल ले गयी। मैं भी था। बाद पता चला वन विभाग के कर्मचारी वर्दी में जंगल नहीं जा रहे। वो लगता है। हमें कुछ और समझ बैठे थे।
पत्रकार निर्मल माणिक भी रश्मि के दिए समाचारों को तरजीह देते।
रश्मि बाद पीयूसीएल में भी कुछ समय पद पर रहीं । लेकिन लोरमी के बैगा आदिवासियों की महापंचायत की संयोजक बनी रही। घर बसाया औलाद भी हुई। पर कुछ समय बाद फिर वो अकेली रह गयी। केन्सर से वे हार गयीं। अपना घर फूंक कर आदिवासियों के लिए सारी जिंदगी कर
लगने वाली इस बहन को इस महाविदाई पर नमन। ॐ शांति।।

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