जब मैं कलइन फूलों की फोटो ले रहा था तभी मकड़े के बिछाये जाल में एक तितली आ फंसी, वो जाले से निकलने रह-रह कर फड़फड़ा रही थी, मकड़ा छिपा था उसके और शिथिल होने का इंतजार कर रहा था, मैंने महीन जाल से संघर्षरत तितली की फोटो ली फिर पर्यावरण में तितली की ज्यादा उपयोगिता मान मकड़े के जाल से आजाद कर दिया.
मकड़े ने जाल जहाँ बुना वहां फूल थे, वो जानता था, यहाँ अब तितली आयेगी.
एक बात और..मकड़े ने वहां फुले इन फूलों तक पहुँचने की उस राह पर जाल बुना था,जहाँ करीबी अन्य पौधे के कारण तितली को संकरी राह से उड़के फूलों तक पहुँचाना था. याने वो कम जाल से ये लाभ चाहता था. कुछ देर बाद मकड़े ने मकड़े ने क्षतिग्रत जाल को दुरुस्त कर लिया और फिर घाट लगा कर बैठ गया किसी तितली के लिए...
[समाज में न जाने कितने मकड़े हैं, जो तितली की राह में जाल बिछाए हैं..!]
2 टिप्पणियां:
नियति-चक्र.
राहुल जी सही है ये नियति का चक्र है.सृष्टि का नियम है,जीव जीव का भोजन है.
एक टिप्पणी भेजें