कुछ मौत पंख सी हल्की होती हैं, तो कुछ पहाड़ से
भारी, मेरे साथी पत्रकार सुशील पाठक का बिछड़ना मेरे लिए पर्वत से भारी है. ढाई साल
हो रहे ये मौत मेरे ह्रदय में शूल के सामान बनी है, ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब उसकी
याद न सताती हो. उसकी हत्या से जो सूनापन मेरे जीवन में छाया उसको भरा फिर मैं भर नहीं सका . सबसे अजीब तो ये है कि उसकी हत्या आखिर क्यों की गई. राजधानी पुलिस के विशेष
दल के बाद सीबीई भी इस कारण को आज पर्यन्त नहीं खोज सकी है. इस मामले का ठोस सूत्र
देने वाले को सीबीआई पांच लाख रूपये इनाम देने की घोषणा कर रखी है.
सुशील पाठक की हत्या का ताना-बना जिस पेशावर तरीके से बुना कर अंजाम दिया गया है, उसे सुलझने में सीबीआई भी क्या हार जाएगी तो फिर
इसे कौन सुलझाएगा... बात कोई पंद्रह साल पीछे जा के शुरू कर रहा हूँ, जब मैंने सुशील
को परखा.. मैं दैनिक भास्कर में संपादक था, देर रात बाहर जाने वाले संस्करणों का प्रकाशन बाद मैं घर आ
चुका था, कोई दो बजे रात मुझे किसी ने फोन पर सूचना दी कि
गीतांजलि एक्सप्रेस ट्रेन गतौरा के पास दुर्धटनाग्रस्त हो गई है. तब न तो मोबाइल
का युग था और न ही भास्कर का कार्पोरेट स्वरूप. मैंने प्रेस में फोन कर नगर
संस्करण की छपाई रोकने को कहा और कैमरा लेकर रिलीफ ट्रेन से मौके पर पंहुचा.. और भी पत्रकार पहुँच गये थे . हम सब वापस भी इसी ट्रेन से आये, तब सुशील पाठक जीआरपी थाने
के फोन से अपनी प्रेस लोकस्वर में समाचार देने लगा. मगर उधर से जवाब मिला अख़बार छप
रहा है छपाई नहीं रुकेगी ..! वो मायूस हो गया- मैंने सुशील से कहा, मेरे पास स्टाफ
की कमी है, यहाँ तेरा कोई यहाँ सुन नहीं रहा, तू मेरे साथ काम कर और अगले दिन वो दैनिक
भास्कर परिवार का हिस्सा हो गया ..!
सुशील उत्साही और आज में जीने के चाहत रखता था ,शतरंज, कैरम, क्रिकेट
का वो बेहतरीन खिलाड़ी था. ये भी कहा जा सकता है कि खेल की भावना उसके जीवन में
समाई थी. मेरे पर मानहानि के मुकद्दमें खड़े हो रहे थे, मैं उनसे बचने का प्रयास करता, सुशील
ने कहा-जब तक संपादक हो बचाते रहोगे, पर बाद ये मामले भुगाने होंगे तब अकेले होगे.
मैंने पलायनवादी रुख बदल दिया और प्रकरण निपटने में लग गया. रात हम भोजन साथ करते,
फिर टहलने जाते. तेज चलते बातें करते हुए. गोलीकांड का दो दिन पहले उसने मुझसे कहा
कि वो भी मेरे तरीके से जीवन चलाना चाहता
है.कार का कर्ज अदा कर दिया है, मकान बन गया है, अब चिंता रहित जीना है.
शनिवार को उसका 'विकलीआफ' था पर वो प्रेस थोड़ी देर के लिए दिखा, रविवार
मैं 'विकलीआफ' लेता.. मैं उस रविवार जंगल
गया था. वो 19 की दिसम्बर की कड़ाकेदार ठण्ड की रात थी. देर रात में वापस आया और
सोने की तैयारी क़र रहा था कि प्रेस से नवीन लदेर का फोन आया, उसने बताता कि सुशील
को किसीने गोली मार दी जब वो सरकंडा स्थित अपने घर पहुँचने वाला था. मेरे पास समय
न था, मैं तुरंत कार से मौके पर पहुँच गया..!
जो मैंने देखा और बाद समझा –
सुशील की कार नीम के पेड़ के
नीचे खड़ी थी, दरवाजा बंद न था. जाहिर था कि घात लगाये हत्यारों को सुशील ने देखा लिया था और
जान बचाने के लिये भागने में दरवाजा बंद करने का मौका उसे न मिला. उसने सड़क पार कर
घर भागने की कोशिश की पर बीच सड़क तक ही जा सका था. ये भी संभव है कि हत्यारों ने उसे वहां पकड़ लिया हो, क्योकि एक
गोली तो करीब से दागी गई थी बाद पता चला कि गोली के साथ नाल से निकले बारूद से उसकी स्किन जल भी गई थी.
हत्यारे एक से अधिक रहे होंगे सुशील किसी एक के हाथ आने वाला न था,जितनी गोलियां लगी उससे ये साफ़ है की हत्या ही उनका मकसद था. वो जाते समय उसका सिम सहित मोबाइल ले गए.
मौके से सुशील को हटाया जा चुका था, और सड़क से खून धो दिया गया था. इस
स्थान को यातायात के लिए तुरंत खोल दिया गया था, जबकि चली गोलियों के ‘शैल’ कुछ लोग उठा
के देख रहे थे. पुलिस के अधिकारी मौके पर थे, मैं आईजी अरुण देव गौतम को पहचान गया
और उनको अपना परिचय दिया, क्राईम रिपोर्टर चन्द्रकुमार से उनकी बात कराई ताकि वो
कुछ जानकारी दे सके..बाद मैं आईजी के साथ नीम के पेड़ के नीचे गया, यहाँ एक पुजारी
ने घर में प्रतिमा स्थापित की है, उसका उसका दरवाजा खटखटा के खुलवाया, पुजारी का
कहना था कि, वो ग्यारह बजे सो गया था उसे कुछ नहीं पता. पर ये भला कैसे हो सकता है
कि उसके घर के दस मीटर दूर गोलियां चले और उसकी नींद न टूटी हो..! फारेंसिक एक्सपर्ट कैलाश चौधरी मुझे कहीं नहीं
दिखे तब मैंने आईजी साहब से पूछा तो पता चला वे रिटायर्ड हो गए हैं ..मैंने निवेदन
किया उनको बुलाया जाए. आईजी ने तुरंत एसपी को उनको बुलाने कहा. परिस्थियाँ जो सबूत देती उसको बचाने कोई प्रयास होते नहीं दिखा ..!
रात प्रेस का काम ख़त्म कर पत्रकार मौके वारदात पर पहुँचते गए सबसे पहले पुलिस को जानकारी देने वाला पत्रकार
सुरेश पांडे के अलावा,पहले पहुँचने वालों में दैनिक भास्कर के संपादक मनीष दवे, सपत्नीक शशि कोन्हेर,यशवंत गोहिल, हर्ष पाण्डेय, कमलेश शर्मा, प्रतीक वासनिक, नवीन लदेर,पारस
पाठक, यासीन, शरद पाण्डेय, सुब्रत पाल, वोम्केश त्रिवेदी,दीपक तम्बोली,अनूप पाठक, एम् मलिक, फोटोग्राफर,जीडी नागरवाला. शेखर गुप्ता सहित अनेक ने सारी रात
आँखों में काटी. ये भी पता चला कि रात मनीष दवे, सुशील पाठक और एक डाक्टर रात
होटल में साथ थे. कई चर्चा में भोर हो रही थी, पुलिस खोजी कुत्ता लेकर पहुंची, तभी प्रवीण शुक्ला पहुंचे मैं घर जा रहा
था, प्रवीण ने रुकने कहा- मैंने जवाब दिया कि सारी रात यहाँ सब रहे अब न जाने ये
कुत्ता किसी को पकड़ ले ..!
सुशील की हत्या के बाद जितने मुंह उतनी कहानियां, सूचनाओं का तूफान आ
गया फिर ये तूफान शांत हुआ पर कुछ कहानियां अब भी तैर रहीं हैं. सीबीआई भी यहाँ
पड़ाव डाले रही, मेरे सहित कई का बयान दर्ज हो चुका है. पर कोई नतीजा नहीं निकला..क्या
सीबीई इस गुत्थी को सुलझने में आखिर हार जाएगी, सुशील के हत्यारे आजाद घूमते रहेंगे, इस
पेशावर ‘सुपारी किलिंग’ के पीछे किस का
हाथ है. कभी पता नहीं लगेगा..? इन सवालों के जवाब के लिए भविष्य का झरोखा खुलना
शेष है.वो बिलासपुर प्रेस क्लब का सचिव था, आज भी कोई दिन नहीं जब प्रेस क्लब में सुशील को याद न
किया जाता हो. मगर ये आशंका बलवती होती जा रही है कि, मामले की गुत्थी सुलझने में देरी हो
रही है,और हार कर सीबीआई क्लोजर रिपोर्ट फ़ाइल् तो नहीं करने वाली है. यदि ऐसा हुआ तो उसकी आत्मा को न्याय नहीं मिलेगा और बिलासपुर के पत्रकारों में वेदना बनी रहेगी .
असफलता दर असफलता -
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पुलिस
ने सुशील के घर करीब रहने वाले बादलखान को पुलिस ने आरोपी बनाया पर हत्या के कारण की कहानी थी,
जमीन का विवाद ,पर वारदात में प्रयुक्त पिस्टल और पाठक के मोबाईल व सिम न बादल खान से बरामद कर सकी. चालान न पेश करने के कारण बादल खान जमानत पर रिहा हो गया. यदि बादल खान ने
हत्या नहीं की थी तो उसने पुलिस से सामने कबूला क्यों,सवाल है कि क्या वो किसी का "मोहरा" है ..?
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सीबीआई
की जाँच के दौरान सीबीआई का सहायक उप निरीक्षक लक्ष्मी नारायण शर्मा अपने साथी कथित निजी जासूस तपन के साथ ठेकेदार से दो लाख
इसलिए ठेकेदार राम बहदुर सिंह से वसूलते सीबीआई विजेलेंस के हांथों पकड़ा गया. उनपर आरोप
है कि वे ये रकम सुशील हत्याकांड में फंसा देने का भय दिखा के ले रहे थे. ये रकम वसूले
जाने वाली दस लाख रकम की पहली क़िस्त थी.इस मामले के आरोपी जमानत पर रिहा हैं.
*रिश्वतखोरी के इस मामले में 9 जुलाई 2013 को सीबीआई के एएसपी डीके राय को भिलाई सीबीआई की टीम ने दिल्ली में बंदी बना लिया है.
[ सभी फोटो नेट से,अंतिम फोटो- रिश्वत के आरोप में पकडाए सहायक उपनिरीक्षक शर्मा और निजी जासूस तपन -प्राण चड्ढा ]
*रिश्वतखोरी के इस मामले में 9 जुलाई 2013 को सीबीआई के एएसपी डीके राय को भिलाई सीबीआई की टीम ने दिल्ली में बंदी बना लिया है.
[ सभी फोटो नेट से,अंतिम फोटो- रिश्वत के आरोप में पकडाए सहायक उपनिरीक्षक शर्मा और निजी जासूस तपन -प्राण चड्ढा ]
1 टिप्पणी:
जिन्दादिल सुशील के न रहने का अफसोस गहरा गया.
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