कोई बिरला ही होता है, जो जमीं से उठ कर बरसों
सत्ता पर आरुढ़ रहे और उसके पैर जमीं पर जमे रहें. वो सर्वसुलभ हो और अपने
मूल्यों पर भी जीता हो, जिसने न जाने कितनों की मदद की और मार्गदर्शन -देकर उनके जीवन
की यात्रा को सुगम बना दिया. मैंने अपने जीवन में ऐसे चंद महामानव ही देखें हैं, इनमें
नवभारत की पत्रकारिता से दो दशक से अधिक जुड़े रहे और फिर लम्बे समय तक अविभजित
मप्र में मंत्री रहे बीआर यादव को शीर्ष स्थान पर मानता हूं. उन्होंने जीवन में 83 बसंत देख लिए
और जब उनके गृह नगर बिलासपुर में 84 वां जन्म दिन मनाया गया, तब हाल उनके चाहने
वालों से भरा था. जो उनकी नेक कमाई को रेखांकित कर रहा था.
बरसों
पहले जब ‘नवभारत’ रायपुर से प्रकाशित होता और बिलासपुर सुबह ट्रेन से पहुंचता, बात
तब की है, मैं कालेज में छात्र नेता था,
देर रात का समाचार न प्रकाशन होने पर हम कुछ छात्र उग्र हो कर स्टेशन पंहुचा गए और बिलासपुर के समाचारों की
उपेक्षा का आरोप लगाते हुए प्रदर्शन किया. बीआर यादव वहाँ मौजूद थे, उन्होंने हमें
बताया, फोन लाइन खराब न होने के कारण 'काल देर से लगता है और तब तक अख़बार छप जाता
है. यहाँ मेरा उनसे परिचय हो गया जो फिर बढ़ता गया. यादवजी जब राजनीति की व्यस्तता के
कारण भोपाल में रहने लगे और मैं पत्रकारिता में लोकस्वर से होता हुआ नवभारत के
बिलासपुर कार्यालय में श्री महेंद्र दूबे जी का सहयोगी के रूप में काम करने लगा. फिर के दिन यादवजी ने मुझे साथ रायपुर ले जा कर नवभारत के सम्पादक गोविन्दलाल
वोराजी से घर में मिलाया. रघु ठाकुर से भी वहीं परिचय हुआ.
समय बीतता गया, कोई दस साल बाद ‘नवभारत पत्र समूह’
से मैं दैनिक भास्कर समूह में आ गया,और बिलासपुर से प्रकाशित होने वाले संस्करण का
संपादक बन गया. कुछ समय बाद यादवजी मध्यप्रदेश के वन मंत्री बने, वो वन्यजीवों के
प्रति मेरी अभिरुचि से परचित थे, बातों ही बातों में मैंने उनसे बिलासपुर के
गेमवार्डन बनाने की इच्छा रखी, अगली बार वे जब भोपाल से बिलासपुर आये तो मुझे
उन्होंने बताया कि मेरी नियुक्ति प्रदेश वाइल्ड लाइफ बोर्ड में सदस्य के रूप में
हुई है, बैठक कुछ दिनों बाद होगी. मैंने कहा- मैं गेमवार्डन बनाना चाहता था, अपने
मुझे ये क्या बना दिया. बाद पता चला कि गेम वार्डन की नियुक्ति तो ये बोर्ड करता
है.
यादव जी का विराट रूप जो मैंने देखा-
बोर्ड की पहली बैठक भोपाल में हुई, यहाँ मैं यादवजी के विराट रूप से परिचित हुआ, इस बोर्ड में देश में जाने-माने वन्यजीव के
विशेषज्ञ थे, जिनमें, बिट्टू सहगल, वाल्मिक थापर, बिलिंडा राइट, एम्.के रंजित सिंह
साहब, कमोडोर संजना, पन्ना के लोकेन्द्र सिंह, जे.जे दत्ता. राजेश गोपाल, हम कुछ होटल
पलास में पहुँच जाते और बैठक से पहले विषय सूची कि बारीकियों पर चर्चा करते, बाद
रीवा के पुष्पराज सिंह और दमोह के रत्नेश सोलोमन भी जुड़े. जब कभी टाइगर के संरक्षण
पर कोई मुद्दा बिट्टू सहगल और वाल्मिक थापर अथवा किसी के बीच उलझ जाता तब अंतिम
फैसला चेयर पर्सन व वन मंत्री बी आर यादव को करना होता. वो वन्य जीवों के बारे में
उनकी बराबरी तो नहीं कर सकते थे, पर पत्रकारिता से मिले सहज ज्ञान और विवेक से हल
खोज लेते की पूरा बोर्ड उसको दिल से स्वीकार करता. तब मेरी आँखे ये सोच कर नम हो
जाती की बिलासपुर का कोई व्यक्ति ये सब कितनी सफलता से करता है. मप्र के बाद में
छतीसगढ़ राज्य अब तक वाइल्ड लाइफ बोर्ड का मेम्बर रहा हूँ, इस दौरान मैंने बोर्ड
में उन सा दक्ष वन मंत्री नहीं देखा..! उनकी वजह मुझे मुंहबोली बहन, वीणा वर्माजी [धर्मपत्नी श्रीकांत वर्मा] मिलीं.
बिलासपुर के हकों कि लड़ाई के लिए वो सकारात्मक
प्रयास जारी रखते, गुरुघासीदास यूनिवर्सिटी, रेलवे जोन या कोल कम्पनी एसइसीएल की स्थापना, सबके पीछे
यादवजी का भूमिका अहम् रही. न जाने कितने
ही व्यक्तियों को उन्होंने पहचाना और उनकी प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया. यही वो
वजह है कि आज भी उनके चाहने वालों की
कमी नहीं, आज के नेता चार भले आदमी आपने
साथ जुटा नहीं सकते उस दौर में यादव जी के जन्मदिन समारोह में हर तबके के नागरिक 30 जून को शुभ कामना देने हाजिर थे.
1 टिप्पणी:
यादव जी के लिए हार्दिक कामनाएं.
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