अमरकंटक में माँ नर्मदा नदी के उद्गम स्थल का
कुण्ड देखरेख की कमी के शिकार बना है, पहले स्वच्छ जल होता
काई का नामोनिशान न होता पर इस मानसून में न तो कुण्ड में जल भराव पूरा है और न ही
जल स्वच्छ. मंदिरों समूह कुण्ड में है इन मदिरों पर सफेदी में हरित काई लगा रही
है. नर्मदाजी का ये कुण्ड आस्था से जुड़ा है, यहाँ अनुष्ठान होते
रहते है. याद होगा कि उमा भारती न यहाँ विधिवत सन्यास लिया था उन्होंने इस कुण्ड में पवित्र डुबकी
लगाई थी. यहाँ उनका नाम उमाश्री घोषित किया गया. इस बार मैं जब पहुंचा तो अनुष्ठान
चले रहे थे पर कुण्ड की दशा बदलती दिखी.
अमरकंटक में कभी हम कमलाबाई और अहिल्या बाई की धर्मशाला
में रुकते आज हाटल से लेकर पांच सितारा आश्रम मौजूद हैं.महाकवि कालिदास का आम्रकूट
का रूप बदल गया है. बदलाव तो होना ही था पर इस सुंदर स्थल को देख अब लगता है ये को
तपोभूमि नहीं पर्यटन स्थल हो रहा है..नदी के किनारे जिस बेरहमी से कंक्रीट का जंगल
बना है वो न जाने भविष्य में क्या गुल खिलायेगा, लगता है मानो रोकने के
जिम्मेदारों ने आँखे बंद कर रखी थीं/है.
जिस कुण्ड में दूर से पहुँच आस्था की डुबकी जगाई जाती रही है, उस स्थल की
देखरेख में कार्पोरेट बनी रही यहाँ की
धार्मिक संस्थाओं की जवाबदारी क्यों नहीं निर्धरित कर दी जाती.मगर आज अमरकंटक में नींव का पत्थर उपेक्षा में है और कलश का पूजन हो रहा है.
यदि पर्यावरण के नाम पर कुछ किया है तो वो है
अमरकंटक में नर्मदाजी के सरोवर बना दिए गए हैं पर ये उंगली दे कटा कर शहीदी में
नाम लिखाने सा लगता है. जहाँ के खनिज का व्यावसायिक दोहन रोप-वे बना कर वर्षो हुआ
हो, जहाँ के जंगल का वितान झीना हो गया हो उस पर अब रहम करने की जरूरत है. जो बचा
गया है उसे बचाओ. बायोस्फियर बनाने से पहले इस नगरी को ‘हेरिटेज सिटी’ का दर्जा
मिल जाना था. पर इस और न पहले प्रयास किया गया न अभी किसी की सोच है.
अमरकंटक के पुराने प्रतीक पर कैसी की नज़र नहीं,
माई की बगिया में गर्मी के दिनों दलदल बना रहता मैं उसमें लकड़ी डालता तो खींच के
निकलना मुश्किल होता, पर अब गर्मी के दिन दलदल सूख जाता है.गर्मी के दिनों दोपहर
लू महसूस होने लगी है..जब-जब जाता हूँ निर्माण कार्य होते देखता हूँ. उसकी
नैसर्गिता से खिलवाड़ मप्र का शासन दूर है. नर्मदा नदी के पहले जलप्रपात कपिल धारा
के कुछ पहले वृहद निर्माण ठीक किनारे पर हो चुका है इसके पहले डेल्टा में आश्रम बन
गया है..माँ नर्मदा पर बोझा बढ़ाते जा रहा है. सब आँखे बंद कर माँ नर्मदा की आरती
कर रहे है,अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं.क्या ये नजरिया बदलेगा...लगता तो नहीं..!
कुछ और- नर्मदा नदी अमरकंटक से गुजरात तक करीब
1310 किमी का सफर तय कराती है. ये देश की पांच बड़ी नदियों में एक है,सर्व पुण्य
दयानी इस नदी को रेवा या मेकल सुता भी कहा जाता है,जब तक साधना पूरी नहीं होती माँ
नर्मदा के दर्शन अमरकंटक में न करे, साथ कबीर और गुरुनानक भी यहाँ मिले थे,इसकी
परिक्रमा का विशेष महत्व है.
2 टिप्पणियां:
नर्मदा की लंबाई 1312 किलोमीटर बताई जाती है.
एक बरसात में ही काई जम जाती है. बाकी तो सिर्फ नोट खेंचो खेंचो है.
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