दैनिक भास्कर के आज 65 संस्करण हैं और 13
राज्यों में विराट रूप है,बिलासपुर से 20 सित. 1993 को जब इसका 7 वां संस्करण
प्रकाशित हुआ तब ये इसका वामन स्वरूप था, पर उसके विराट होने की संभावना रमेश अग्रवाल सोच में और उनके सुपुत्र सुधीर अग्रवाल की
कार्यशैली में साफ दिखती थीं.
पिता-पुत्र के जोड़ी एक पर एक ग्यारह लगती ,ये वो समय था, जब रमेशजी अपने पुत्र
सुधीरजी को जिम्मेदारी देते हुए समूह को आगे बढ़ाते जा रहे थे. मैं नवभारत बिलासपुर
से जुड़ा हुआ था. दैनिक भास्कर ने पाठकों
के लिए सर्व शुरू किया हुआ था. तभी एक दिन सुधीरजी ने मुझे होटल में बुलाकर
सम्पादक पद का प्रस्ताव रखा, मैंने कहा, ‘जब प्रवेशांक का काम शुरू होगा मैं आ
जाऊंगा. और फिर एक दिन सुधीरजी ने मुझे बुलाया और जानकारी दी की २० सितम्बर से दैनिक
भास्कर का प्रकाशन होना है अब आप आ जाओ, उनके साथ रमेश नैयर जी भी थे.. रामबाबू
सोनथालियाजी और कुछ साथी पहले जुड़ चुके
थे.
अगले दिन सुबह मैं, सुधीरजी और सोंथलियाजी
महामाया देवी के दर्शनार्थ रतनपुर गए, और वापस आ मैं कुर्सी पर बैठ गया. समाचार
सम्पादक अरुण पाण्डेय थे. प्रवेशांक का काम चल पड़ा. फिर अजित सिंह, सूर्यकान्त
चतुर्वेदी, सुनील गुप्ता, संजय दीक्षित,श्रीपति वाजपेयी ,संजय चन्देल ,अमित
मिश्रा,राकेश श्रीवास्तव,केशव शुक्ल,अशोक व्यास ,अमिताभ तिवारी,दिलीप तिवारी स्नेहा
जैन,फोटोग्राफर गुड्डा नागरवाला सहित सभी ने मिल कर समय पर प्रवेशांक तैयार कर
लिया. इस टीम में सुभाष ,धन्वेद्र जायसवाल,सुभाष तिवारी भी जुड़ गए. इस बीच
सुधीरजी नवविवाहित पत्नी ज्योति के साथ आते-जाते रहे. सुधीरजी जब काम देखते तब
ज्योति जी मोटी किताबों में डूबी रहती. रायपुर से भास्कर की सवा सौ प्रतियाँ
बिलासपुर आतीं थीं,जिसका वितरण नगर में बंद कर दिया गया. सुधीरजी बिलासपुर के
पाठकों की अपेक्षा के अनुरूप चाहते थे. इसके लिए वो शून्य से शुरुआत करने तैयार
थे.
प. नेहरू प्रतिमा चोराहे पर बने विशाल पंडाल में प्रवेशांक का विमोचन 20 सितम्बर को हुआ,श्री विद्याचरण शुक्ल,वैदिक जी,महेश श्रीवास्तव,रमेश नैयर,अशोकराव,बी.आर.यादव,लखीराम जी सहित अनेक प्रबुद्ध जनों की गरिमामयी उपस्थिति रही. सुधीरजी की कार्यशैली नवभारत से अलग थी.वो जिन-जिन से बात करते या कार्य की अवधि तय करते, सब लिखित उनको देकर कापी सभी प्रमुखजनों को भी कापी दे जाते, जिससे किसी को कोई भ्रम की स्थिति न बने न ही कोई अधिकार क्षेत्र को ले कर विवाद की पैदा होती . ये नवभारत मैंने नहीं दिखा था. शुरू में वे एक माह यहाँ रहने की बात करते थे, मगर दस दिन बाद भोजन करते समय मुझसे कहा - 'जो काम आप करा रहे हो, वही तो मैं भी कराता,जयपुर का काम डिले हो रहा है. मैं जा रहा हूँ.'' फिर वे एक माह बाद आए और मेरा परिचय जगदीश पोद्दारजी से कराया. सुधीरजी ने कहा ‘राजस्थान में काम बढ़ रहा है,अब पोद्दार जी रायपुर संस्करण के साथ बिलासपुर का प्रभार देखेंगे .आप ये समझना कि वे मेरी जगह हैं.
पाठकों की खोज के लिए किया गया सर्वे सही
न था .सोलह हजार का प्रिंट आर्डर एक माह बाद
दस हजार रह गया. विज्ञापन बड़ी मुश्किल से
तीन लाख मासिक पहुंचा दो मैनेजर बदलने के बाद सुधीर जी ने कहा- इस पोस्ट के लिए दस
हजार माह में और खर्च करना नहीं चाहता ,आप में प्रबंधन की रूचि है ,आप ये काम भी
देखिये .कोई तीन साल तक मैंने संपादक के साथ प्रबंधन का काम भी देखा, और भी मैनजेर
आये, पर उनका कार्यकाल अल्प रहा. इस बीच
कार्यालय प. नेहरू चौक कमला कम्प्लेस से बेहतर स्थान गुम्बर कम्प्लेस में आ गया
.प्रसार 27 हजार कापी के करीब हो गया.रीलांच करके अख़बार को नया कलेवर किया गया और
मैनेजर [जीएम] पद का भार मनीष तिवारी को सौंपा गया.
दैनिक भास्कर पत्रकारिता का स्कूल है,
जहाँ समय-समय पर कुछ दिनों के बैठक ले कर संपादकों को नई चुनौतियों के निपटने और
स्टाफ को और प्रशिक्षित करने के गुर बताये जाते हैं.जिससे ये अख़बार पाठकों की
जरूरत को जानता है, और उनकी नब्ज पर हाथ बना रहता है.संस्करण अधिक होने और आयडिया शेयर का लाभ मिला है . पाठकों की क्या चाहिए और उनकी राय को अहमियत दी जाती है.अख़बार में कोई चूक न हो और दूसरे दिन यदि कोई गलती हुई तो उसकी जवाबदेही तय होती है ,रोज अख़बार की तुलनात्मक समीक्षा की जाती है.
कुछ और-
*महामाया का दर्शन करने गये सुधीर
अग्रवाल ने गुप्तदान दिया, बाद पता चला कि ये फर्श के लिए करीब दो ट्रक
संगमरमर था.
*प्रकाशन के पहले हमारी दशा ये थी कि अख़बार के बण्डल जाने
तथा कुछ पदों पर नियुक्तियों के लिए लोकस्वर में
विज्ञापन दिए जाते ,नवभारत और देशबन्धु तो ये विज्ञापन लेने से रहे.!
* सेवाकाल में अनुभव किया कैसे ये घराना
सारा काम बाँट का कर करता है,-पिता श्री
रमेश अग्रवालजी सलाहकार और सामाजिक कार्य,सुधीर जी सम्पदीय और दीगर काम ,गिरीश जी
मार्केटिंग और अन्य पवन जी मशीनरी और विकास ,सभी हर काम में विज्ञ और उर्जावान
हैं!
.
.
* नवभारत में पूरा काम मानदेय पर करता
रहा ,जो मेरे अलग होने के पहले पांच सौ से बढ़ कर एक हज़ार कर दिया गया. मैंने
भास्कर में अपना वेतन पांच हजार मासिक देख कर सुधीर जी से 501 रूपये मानदेय की बात
कही ,पर उनने इसमें दो और जोड़ कर 2501 रु.दिया और कहा –आपका बाकी ये पैसा मेरे पास जमा रहेगा कभी भी ले सकते
हैं. कुछ साल यही मानदेह लेते रहा फिर
सुरेन्द्र गुम्बर ने पोद्दार जी को ये बात बताई .तो उनने दो हजार मासिक वृद्धि जोड़
दी.बाद मेरे लम्बे सेवाकाल में मेरे वेतन तीस हजार मासिक तक चला गया.सेवानिवृति के
बाद मुझे तीन साल और काम का अवसर मिला.ये कम को ही मिला होगा.
*अब मैं दैनिक भास्कर मैं नहीं,पर मेरे
चयन किये साथी यश अर्जित कर रहे हैं वे मेरी पूंजी हैं ,मैं केशव शर्मा और सुशील
पाठक को कभी नहीं भूल सकता,जिनके असामयिक निधन के साथ उनमें निहित असीम संभावना का
अंत हो गया.
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