सोमवार, 25 जुलाई 2016

टाइगर रिजर्व का गाँधी

वो जो झुके कांधों जंगल,
की सड़क पर चल रहा है
यकीन कीजिये उसका कद,
साल के पेड़ों से भी बड़ा है।।
ये हैं, दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर पीडी खेरा, जो उम्र के चौथे पड़ाव पर अचानमार टाइगर रिजर्व के कोर एरिया के गांव लमनी में रहते हैं और आदिवासी उत्थान के लिए कार्यरत हैं।
वो सन् 1982 के पहले विवि के छात्रों के दल को लेकर बैगा आदिवासियों के सामाजिक अध्ययन के लिए छत्तीसगढ़ के इस इलाके से जुड़े और बाद वो इस जंगल के गांव में कच्चे मकान में वानप्रस्थ बिताने यहां पहुंच गए।
अकेले लमनी गाँव में रहते है और 87 साल की इस उम्र में जीवट हैं। रोज बस से दो घाट पार कर छपरवा जाते है और वहां के छात्र छात्रों को अंग्रेजी और अन्य विषय पढ़ाते है। उनकी मेहनत लगन का फल है की बैगा आदिवासी छात्र अंग्रेजी में अच्छे नम्बर से पास होते हैं जो नौकरी में मददगार भी होती है।
गाँधीवादी खेरा,इस बार मैं और शिरीष गुरुपूर्णिमा पर जब अमरकंटक जा रहे थे तब छपरवा गाँव में एक महिला के कच्चे से होटल में अख़बार पढ़ते और लमनी के लिए बस की प्रतीक्षा में दिखे,गुरुवर को देख हमने कार में साथ ले लिया,पर होटल की मालकिन को ये न भाया, वो क्यों ले जा रहे हैं,इस पर नाराज हो गई, मुझे लगा कि खेरा सर अखबार पढ़ कर उसे दुनिया में क्या हो रहा है उससे अवगत करते होंगे और बस के पहले हम साथ उनके जाने से वो इस ज्ञान से वंचित रह गयी है।
गांधीवादी प्रो खेरा अपने अतीत पर अधिक बात नहीं करते पर सब जानते हैं कि उनके पढ़ाये बच्चे ऊँचे पदों पर दिल्ली में कार्यरत हैं और उनकी एक पाती से वो जंगल और आदिवासी हितार्थ सक्रिय हो जाते हैं। सन्ध्या से रात तक वो थैले में चना,मुर्रा आदिवासी बच्चों को वितरण करते बेरियर के आसपास दिखते हैं, इस तरह बात कर उनको पढ़ने से प्रेरित करते हैं, और गाँवो के दुःख सुख का पता लगा लेते हैं। वानप्रस्थ व्यतीत कर रहे, गुरु पीडी खेरा को मेरा कोटि कोटि नमन।