सोमवार, 30 मई 2016

अरपा उदगम से संगम तक






दुर्दिन को जीते अरपा नदी के उदगम् को पेंड्रा में दफन कर दिया गया है। और संगम मंगला पसीद पर शिवनाथ नदी बह रही अरपा सूखी है।
बीच भैंसाझार बैराज का ढांचा खड़ा हो रहा है। बिलासपुर शहर की जीवन रेखा अरपा की रेत का उत्खनन पोकलेंन जैसी दैत्याकार मशीन से किया जा रहा है। कई वो जगह है जहाँ रेत नही जमीन नदी की दिखती है।
अरपा बचाओ यात्रा का ये सातवां साल रहा। और इस जत्थे ने इस बार नदी की सबसे बुरी दशा देखी। नदी पर हो रहे अत्याचार की पराकाष्ठा, पेंड्रा में इस बलात्कार की खिलाफत,पर तब जब पानी सर से ऊपर हो गया है। बिलासपुर स्मार्ट सिटी की लाइन में खड़ा है और सपना दिखाया जा रहा है अरपा नदी को लन्दन की टेम्स नदी सा सुंदर बन रहे है।पर फ़िलहाल नदी कूड़ादान है। और सालिड वेस्ट मेनेमेट का कोई पता नहीं। स्वछता अभियान का जिम्मा मोदी जी ने जिनको दिया था वो अपना बाजार समेट चुके। नई दुनिया नई ने सरोवर को धरोहर मान अलख जगाई है पर नदी के मामले शायद उसकी नज़र में नहीं।
रतनपुर कलचुरियों की प्राचीन राजधानी है। यहां के तालाब सूखे रहे, बेजाकब्जा हो रहा पहल कौन करे, सवाल वोट का सबसे बड़ा है।
बिलासा कला मंच के झण्डे तले 14 जिन्दा दिल जनो के इस जत्थे की आस अभी बाकी है और दीवानगी भी। डा सोमनाथ यादव इसके सूत्रधार हैं। गाँव गाँव सन्देश दिया गया, किसान भाइयो अपने खेत विरासत मानो इसे अधिक दाम मिल रहा ये लालच कर न बेचें। पानी बचाये, रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम घरों में लगाये।
अब सवाल उन तमाम सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के जिम्मेदार अधिकारियों से--?
नदी की इस दशा के लिए जिम्मेदार कौन है ?
चलो ये मान लिया जाये की आप तो आज आये हैं। पर आज क्या कर रहे हैं? ये जवाब मुझे नहीं चाहिए आप अपने को दीजिये। जनता तो गूंगी है। साहब,कुछ करें नहीं तो आपके बाद आने वाला कहेगा मेरे से पहले वाला चाहता तो कुछ कर सकता था पर उसने कुछ किया नहीं।