शनिवार, 28 जून 2014

'माँ' और 'भगवान'

सड़क के किनारे घूरे से पेट भरती काली गाय और वहां से अपने कुपोषित नन्हे भाई को गोद में उठाये गुज़रता इमलीपारा का रहवासी अर्जुन,ने मुझे हिला दिया,,बच्चे तो भगवान का रूप होते हैं ,गाय तो माँ ,फिर 'माँ' और 'भगवान' की ये दशा ..!!

ये मतलबी और स्वार्थी दुनिया, न जाने शहर में कितने लोग हैं जिन्होंने गाऊ माता को पाला है,जब तक दूध देती है माता घर में बंधी रहती है, अच्छा दाना-पानी ताकि दूध अधिक मिले,पर दूध देना बंद तब माँ को घर से बाहर सड़क पर खुला छोड़ दिया जाता है ,वो चाहे घूरे से कचरा खाए अथवा,सब्जी बाजार में दुकानों पर झपटा मारे और दुकानदार की लाठी खाए .शाम घर आये तब बांध दिए ताकि सुबह गोबर से उपले तो बन जायेगे ,,! आखिर वो माँ है ,,!! फिर जन्मी तो दूध दोहन चालू ..जो आदमी आज जन्म देने वाली माँ के साथ अपना व्यवहार बदले बैठा है, उससे गाय माता के प्रति यथोचित व्यवहार की उम्मीद अब व्यर्थ है..ये सब उन शहर और कस्बों में है जहाँ आज भी घरों में गाय पालने का रिवाज बाकी है ,,गौशाला में गाय की दशा कल 'गिरीश पंकज' की वाल में पढ़ा था,वो अभी दिमाग में बैठा है,,!

बालक अर्जुन और उसके गोद के भाई की दशा देख मैं हिल गया, मुझे तो इसमें भगवान नहीं दिखा अपितु आदमी द्वारा आदमी के शोषण के सब निशान दिखे, फटी गन्दी कमीज, रूखे बाल,गोद में उठाये भाई के भूरे बाल बता रहे की कुपोषण के कारण ये हाल है, उसके हाथ में रोटी का इक टुकड़ा ..! उफ़,,इन दिनों तो स्कूल खुल गए है और छतीसगढ़ में नव प्रवेशी बच्चों के प्रवेश का शालाओं में उत्सव मनाया जा रहा है ,,क्या अर्जुन स्कूल जा पायेगा ,,! न जाने कितने 'अर्जुन' और होगे जो 'नकुल' 'सहदेव' को उठाये ये सवाल शिक्षा के आभियान से पूछ रहे होंगे ..! इनकी महाभारत जीवन के लिए गरीबी से जारी है,,! पर अशक्त अर्जुन में एक बात ऐसी दिखी जो मुझको अब कहीं नहीं दिखता है वो है भ्रात-प्रेम जो प्रतिकूलता में अडिग खड़ा था,,! अनुकूलता के बावजूद वो आज मुझमें तो बिलकुल नहीं,,जो कभी था..! मैंने अर्जुन को कुछ पैसे' दिए पर मन में चोर बोला जब से सब विदेशी करते है तो तुमको बुरा को लगता है ,तुमने भी तो फोटो खींचने के बाद दिए हैं..!

गुरुवार, 26 जून 2014

आम और आडू ,को छतीसगढ़ से जोड़ें


''छतीसगढ़ में आम अब चला-चली की बेला में है और हिमांचल का आडू बाज़ार पंहुचा है.
मेरे मित्र बजरंग केडिया ने आम और सूरजपुर में रोशनलाल अग्रवाल ने आडू ली पैदावार लेकर ये साबित कर दिया है की ये 'छोटा राज्य' फल उत्पादन के मामले में विपुल मुनफे कीसंभावना से परिपूर्ण है,उसका प्रमुख कारण ही यहाँ की आबो-हवा का इन दोनों फसलों के लिए माकूल होना,,!

छतीसगढ़ में आबोहवा के कारण यूपी से पहले आम और हिमांचल से पहले आडू की पैदावार हो जाती है,इस दोनों किसानों न ये साबित कर दिया है,,ये बाजार का दस्तूर है, जो पैदवार पहले बाजार पहुँचती ही उसका मोल अधिक होता है ..वो भी एक माह पहले..! बिलासपुर के केडियाजी के बागन से तो इस बार करीब पन्द्रह लाख के आम निकले ,,सूरजपुर में स्वीट कार्न स्ट्राबेरी की व्यवसायिक खेती करने वाले रोशनलाल जी भी अब आडू के पेड़ बढ़ाने में लगे हैं,,!

अगर डा.रमन सिंह जी की सरकार आबोहवा के मुताबिक फलों उत्पादन पर जमीनी काम करे तो निश्चित है की इसका लाभ कृषि और किसानों को मिलेगा,,भारत आबोहवा में विभिन्नता का देश है अगर ये सोच केंद्र में विकसित हो जाये. देश की समस्त कृषि यूनिवर्सिटी भी इसमें सहभागी ही जाये तो किसानों और देश का आर्थिक स्वस्थ और सुधरेगा ,,!

मोदी के नाम राजू की पाती


नरेंद्र मोदी fb में दोस्त बने, सुबह फ्रेंड रिक्वेस्ट मिली और मैंने ओके कर दी मित्रों आपको भी मिली होगी या मिलेगी..!!

मेरे पत्रकार मित्र,राजू तिवारी से किडनी प्रत्यारोपण बाद गुजरात से बिलासपुर वापस आये हैं,उन्होंने वहां किडनी में मरीजों को प्रत्यारोपण में आने वाली क़ानूनी दिक्कतों को देखा और मोदीजी के नाम एक पाती लिखी है,, उसकी मूल भवना इस मध्य से प्रधानमंत्री के समाने पेश है,,!

पत्रकार राजू तिवारी ने लिखा है- आपके मुख्यमंत्रित्व काल में गुजरात में किडनी के मरीजों और डोनर को निशुल्क नोटरी सुविधा हुई ,किन्तु अन्य राज्यों में खानापूर्ति के लिए दस कागजत बनाते डायलिसिस तक पहुंचा अशक्त मरीज दम तोड़ देता है,,ऐसे समय गुजरात हेल्थ आर्गेनाइजेशन ने गुजरात के बाहर से पहुंचे मरीजों के लिए जनवरी से पासपोर्ट जरूरी  कर दिया है,,सम्भवतः पहचान के लिए,जिसके लिए वक्त और लम्बी प्रकिया से  मरीज को नाहक गुजरना पड़ता है..!

 अपने पत्र में उन्होंने लिखा है- देश में किडनी के मरीजों को बचने मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम में सरलीकरण संसोधन की जरूरत है ताकि किडनी पीड़ितों का समय और बेहिसाब पैसे  बच जाये और कई की जान ,,इस उम्मीद के साथ ,,!

मंगलवार, 24 जून 2014

किडनी दे कर बेटी ने पिता को बचाया





ये सच्ची मानवीय कहानी है, जिसमें बेटी ने अपनी के किडनी दे कर अपने पत्रकार पिता राजू तिवारी को मौत के मुंह से खींच लिया,,राजू तिवारी ने मौत से एक साल जंग लड़ने की बाद गुजरात से वापस बिलासपुर में अपने परिवार के साथ हैं..!
राजू तिवारी छतीसगढ़ के पत्रकार जगत में सशक्त हस्ताक्षर है, नवभारत बिलासपुर में राजू तिवारी और मैंने कोई आठ साल काम किया फिर में दैनिक भास्कर में सम्पादक हो गया,अलग अलग अख़बार पर हमारी दोस्ती बनी रही,उसके भाई भी मुझे बड़े भाई से चाहते,,राजू तिवारी ने नवभारत में करीब अठाईस साल काम किया,इस बीच देश की समस्त जानीमानी पत्रिका में उसके लेख मैं पढ़ता रहा,,राजू भाई खुद की एक सुंदर मेग्जिन भी नौ साल से प्रकाशित कर रहे है..जीवन की गाड़ी भली चल्र रही थी पर जिस्म में रोग पनप रहा था,वो भी किडनी का .
.
चार साल पहले राजू तिवारी को क्रिएटिमिन टेस्ट से पता चल गया था की किडनी कम काम कर रही है,पहले बिलासपुर फिर रायपुर में इलाज हुआ पर थकावट, बैचेनी, काम में मन न लगाना के साथ भूख न लगने की शिकायत बन गई,जब नागपुर में टेस्ट हुआ तो साफ हो गया की किडनी 90 फीसद ख़राब हो चुकी हैं, अब दवा के बस की बात नहीं थी, करीब ग्यारह माह पहले उसने गुजरात में एशिया के जानेमाने किडनी रोग के मूलाजी भाई पटेल यूरोलाजिकल हास्पिटल नाडियाद का रुख किया,,!
अब ये तय हो चुका था की जीवन बचाने का एक ही विकल्प है की एक किडनी का ट्रांसप्लांट किया जाये,,तब तक सप्ताह में तीन बार डायलिसिस जरूरी है,अस्पताल के करीब वहां बाहर से आये लोगों के लिए भाड़े पर मकान सुलभ है, हर बार डायलिसिस के लिए चौदह सौ रुपए लगते और तीन बाद डायलिसिस अतिरिक्त खर्च होता, राजू के परिवार ने हिम्मत न हारी,किडनी देने के लिए सभी चार भाई,और पत्नी पहुंचे,पर दुर्भाग्य ये रहा कि किसी की किडनी मैच नहीं की..अब वक्त कम था, किडनी पाने के लिए 'केडेवर' भी एक जरिया है, दुर्धटना में मरणासन्न किसी की किडनी दान पर ये भी संभव न हो पाया,जीवन के लिए मौत से संघर्षरत राजू के जीने के दिन शेष रहे और तब जीवन देने पहुंची उसकी बाईस साल की बेटी स्वेच्छा तिवारी,,!
उसकी किडनी पिता की किडनी से मैच कर गई..स्वेच्छा ने बताया- किडनी देने के पहले डाक्टर देसाई ने अलग पूछा की क्या तुम किसी दबाव में अथवा भय से किडनी तो नहीं दे रही हो,जब डाक्टर उसके जवाब से पूरी तरह संतुष्ट हो गए तब प्रत्यारोपण के लिए 16 अप्रेल का दिन तय किया गया,डा. महेश देसाई की अगुवाई में डा, उमापति हेगड़े और डा मोहन राजपुरकर ने किडनी की सफल प्रत्यारोपण हो गया..!

स्वेच्छा सीवी रमन विवि कोटा [बिलासपुर]में एमबीए की छात्रा है वो स्वस्थ है उसे इस बात की ख़ुशी की पापा चंगे घर वापस आ गए हैं. किडनी देने के बात उसे शरीर में कमी नहीं लगती. राजू तिवारी जीवन की इस लम्बी लड़ाई में दुबला हुआ पर कमजोर नहीं,उसका हौसला फिर खड़ा हो गया है,,! वहाँ डाक्टरों और स्टाफ के स्नेह और दक्षता की वो तारीफ करते थकता नहीं,इस पूरे समय भाई सुनील उसका संबल बना रहा,सचमुच राजू ने मौत को हौसले से जीता है, बेटी स्वेच्छा को सलाम जो पिता को मौत के मुंह से वापस खीच लाई है.
मोदी को पाती ..
पत्रकार राजू तिवारी ने अपनी पत्रिका ‘आधी रात का रिपोर्टर में एक पाती पीएम् नरेंद्र भाई मोदी के नाम लिखा कर मानव अंग प्रत्यारोपण कानून को व्यावहारिक बनाने का निवेदन किया है जिसमें किडनी पीड़ितों की जान बचे समय व धन का दुरूपयोग भी न हो सके ,,!

शनिवार, 21 जून 2014

पौधरोपण का अनुष्ठान

बारिश के साथ नेताओं को प्रसन्न करने अधिकारीयों का अनुष्ठान शुरू हो जायेगा, इसका सरकारी नाम है वृक्षारोपण. जबकि लगाये जाते हैं.. पौधे,जो पेड़ कभी बनेगे ये संदिग्य ही होता है..मुस्काते हुए नेताजी 'पुत्र्न्जीवा' का पौधा लगते है..माना जाता है इसके लगाने से पुत्र सदा जीवित रहता है,! कैमरा मुस्कान और फिर क्लिक,,नेताजी बताते है.. पेड़ो का महत्व, तालियाँ..! मीडिया में खबर..! 

कोई नहीं बताता की कुछ सालों पहले इस भूमि पर पहले भी समारोह पूर्वक पेड़ लगे थे..!
तुलसी ने बरसों पहले लिखा था-
तुलसी बिरवा बाग़ का, ज्यों सिंचत कुम्हलाय ,
रहे भरोसे जो राम के ,पर्वत पर हरियाय ..!!


मुझ्र लगता है. समारोहपूर्वक लगाये पौधे बाद अपनी उपेक्षा के दंश से मर जाते होंगे..कुछ जगह तो इतने बार पौधे लगाये गए वो स्थली मुझे कब्रिस्तान से कम नहीं दिखती..बाद वहां मकान या सरकारी भवन बना दिए गए जाते हैं ..!
राजधानी रायपुर के समीप तो कमाल हुआ,दावा किया गया यहाँ पौधे लगने का रिकार्ड बनेगा..बड़े पैमाने पर पेड़ लगने का अनुष्ठान सम्पन्न हुआ,फिर एक दो साल बाद उस स्थल की फोटो सहित पत्रकार मनोजव्यास की रपट आई पौधे लगाने का नहीं मरने का रिकार्ड बना ..बोर्ड पुराना पर कोई पौधा जीवित न था,,!


हमें ये नहीं पता की आज कौन से पेड़ शहर से कम हो रहे, तारों के करीब नीचे कौन से पेड़ लगाये जो बाद कटना न पड़े, लगा दो फिर काटो,पंछी को छाया नहीं और फल तो कभी लगते नहीं,फूल भी खिलते नहीं,क्या लगाया जाये ये किसी से पूछते भी नहीं ,,पूरा काम सरकारी ..अंत भी ..!

शनिवार, 14 जून 2014

छतीसगढ़ का किसान परेशान



किसान कर्ज में पैदा होता ही,कर्ज में जीता है और कर्ज छोड़ जाता है,लगता है ये उक्ति उसकी तक़दीर में लिख दी गई है, विपुल धान उत्पादन करने वाला किसान इस बार छतीसगढ़ सरकार की नीतियों में फंस गया है .दुर्भाग्य है की उसके पास कोई 'टिकैत' भी नहीं.! किसान नेता जो पैदा हुए वो राजनीति में जा कर विलीन होता गए.और किसानों का न रहा गए .

धान की समर्थन मूल्य बढ़ने की राजनीतिक दलों ने चुनाव के पहले की थी,सरकार बनते ही डा,रमन सिंह ने केंद्र को धान प्रति कुंतल 2100 करने केंद्र को पाती लिखी पर केंद्र में भाजपा सरकार बनाने के बाद भी ये मामला ठन्डे बस्ते में हैं..!

चुनाव तक सब ठीक था अब नया फरमान जारी हुआ है कि जिन किसानों का पम्प फाईव स्टार रेटिग का नहीं उनको मुफ्त बंद,अब किसानों के सर पर तीस चालीस हजार रुपये का खर्च आ गया है. जिन्होंने आदेश दे पहले पम्प लगाये है वो तो कर्जा भी अदा नहीं कर सके हैं. यदि ये पम्प जरुरी है जो नए कनेक्शन के साथ इस आदेश को प्रभावी किया जाता,अथवा पुराने पम्पों को मिलाने वाली मुफ्त बिजली में दस या पंद्रह फी सदी कमी कर दी जाती ..!

किसान तो गरीब की गाय है पहले वोट बैंक बना कर दूहा,फिर बिजली का रेट बढ़ा कर इस बार जो बिजली के दामो में बढ़ोतरी हुई है उसमे सर्वधिक कृषि के में जहाँ 76 फीसद तक दरें बढ़ा दी हैं..डीजल और खाद के मूल्य में गाहे-बगाहे बढ़ोतरी होती रहती है ,,काश छतीसगढ़ में कोई शुद्ध किसान नेता होता ..![फोटो नेट से]

गुरुवार, 12 जून 2014

कबीर की धरोहर उपेक्षित

महान सूफी संत और विचारक,कबीर की विरासत अमरकंटक से पांच किमी दूर कबीरचबूतरा में के कच्चे मकान में रखी हैं,बिलासपुर से सौ किमी दूर इस स्थली में संत कबीर और गुरुनानक देव जी मिले थे, माना जाता है माँ नर्मदा के दर्शन बिना कोई साधना पूरी नहीं होती..! महान संतो की मिलन का ब्यौरा ब्रिटिश म्यूजियम लन्दन में है. जब चरणदास महंत मप्र,में पब्लिसिटी मंत्री थे तब उन्होने कबीर पर एक पुस्तिका प्रकाशन की थी, जिसमें इसका सन्दर्भ था.

कबीर चबूतरे का जीर्णोद्धार के नाम पर कुछ सरकारी तर्ज पर काम किया है.कुछ समय पहले मैं अपने ब्लागर मित्र ललित शर्मा के साथ पंहुचा,घाटी में सड़क और कुछ पक्के मकान बन दिए गया है,,कबीरपंथी आगंतुकों का स्वागत करते है,,पर जहाँ कबीर की धरोहर है वहाँ की दशा ठीक नहीं ..!
समाज में फैली कुरीतियों पर लेखन से तीखा प्रहार करने वाले संत करीब 600 साल बाद भी प्रासंगिक है- सूफी आबीदा परवीन की गायकी में कबीर को सुनो तो ध्यान लगा जाता है,इससे गुलजार परिचय कराया है -
...दो दोहे उनकी याद में -- तेरा तुझको अर्पण क्या लगे मेरा-
;;जब मैं था तो गुरु नहीं,अब गुरु है मैं नहीं !
प्रेम गली अति सांकरी,तामें दी न समाहिं..!!

तुरुवर पात से यौ कहै ,सुनो पात इक बात !
या घर की यही रीति है,इक आवत एक जात !!

शनिवार, 7 जून 2014

चातक की आस


''प्रिय चातक तुम वापस
घर आ जाओ तुम्हे कोई 
कुछ नहीं कहेगा..!
हर साल मानसून के पहले दूर देश से आने वाला चातक[पपीहा] अब तक नहीं पहुंचा है,मुझे याद है मेरे गाँव मंगला के फार्म में तूं 25 मई के आसपास हर साल पहुँच जाता और जब में खेत जाता तब मुख्तियारिन कोनाहिन्' बताती- बाबूल के पेड़ से उड़ना भरती हुई दो चिड़िया शहतूत के पेड़ पर आई है,मैं जान जाता पावस की मेहमानी करने तुम पहुँच गए हो..!

खेत के और लोग भी बताते की उन्होंने भी देखा है, मैं सबको कहता बरसात आने में अब देर नहीं,फिर छ सात दिन में राहत की फुहार पड़ती.!
तुम पेड़ के ऊपर से बादलों को देख कर हर्षित होते आर पीपीपी,पियू की रट लगाते,मैं सोचंता की क्या यही स्वाति की  पहली बूंद के लिए रटन है..!

चातुर्यमास मेरे खेतों में बिताने आ जाओ,कोयल परिवार की भांति दूजे के घोंसले में अंडे देने के लिए..! मैं जानता हूँ, अभी तुम छतीसगढ़ नही पहुंचे हो,अगर पहुँचते तो इन दोनों कैमरा ले कर दीगर परिंदों के पीछे पड़े राहुल सिंह या फिर संजय शर्मा के कैमरे में कैद हो फेसबुक में पहुंच गए होते..! यहाँ तुम्हारी लड़खड़ाती उड़ान को देख लगता है ये किसे दूर देश वापस जाएगा ..पर चार माह बाद वापसी के पहले गगन को छूती उड़ान देख मैं हैरत में पड़ विदाई देता हूँ..!

तुम्हारे प्रवास से किसानों को मानसून आगमन पर कृषि काम शुरू करने की प्रेरणा मिलेगी,बादलों को चाहने वाले विरह के अग्रदूत, हे मेघदूत, कविवर भी तुम्हे याद कर रहे होगे..आ गए हो और लम्बे सफ़र की थकान हो तो प्रकट हो जाओ कोई तुम्हे कुछ नहीं कहेगा ,,! बस तुम आ जाओ,तुम्हारी रटन सुनने को मन व्याकुल है .!!
कविवर हरिवंश बच्चन जी ने लिखा है-
यह न पानी दे बुझेगी,
यह न पत्थर से दबेगी,
यह न शोलों से डरेगी,
यह वियोगी की लगन है,
यह पपीहे की रटन है..!!

[फोटो गूगल की हैं]